रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी घर का भेदीसुरेन्द्र मोहन पाठक
|
|
अखबार वाला या ब्लैकमेलर?
"चिटखनी की आंख के दो पेच यूं ढीले कर दिये गये हए हैं कि देखने में उनमें
कोई नुक्स नहीं दिखाई देता लेकिन बाहर से धक्का देने पर वो अपनी जगह से उखड़
जाते हैं।"
"ऐसा कोई इन्तजाम चोपड़ा कैसे कर सकता था?"
"इसका साफ ये मतलब ये है कि कोठी में उसके नौकरों में, मालिकान में या
मेहमानों में उसका कोई हिमायती था जिसने कि उसके लिये ये काम किया। लिहाजा
खिड़की खुली मिलती तो बात ही क्या थी, बंद मिलती तो वो वाहर से धक्का खाकर
खुल सकती थी।"
“इतने कम वक्त में वो वहां कोई हिमायती कैसे पैदा कर सकता था?"
“हिमायती पहले से ही वहां उपलब्ध होगा। उसने तो बस उसे खबर की होगी कि उससे
क्या काम अपेक्षित था।"
"कब? कैसे?"
"जाहिर है कि क्लब से बतरा के पीछे रवाना होने से पहले। बीच रोड से नेपियन
हिल पहंचने में आधे घन्टे से ज्यादा वक्त लगता है। इतने वक्त में उस खिड़की
की चिटखनी के दो पेच ढीले । कर देना क्या बड़ी बात थी?"
"तुम्हें कैसे मालूम है कि वो पेच ढीले थे?"
"वो अभी भी ढीले हैं। जा के देख लो।"
“ये जरूर इसकी कोई खास सुनीलियन पुडिया है।" - प्रभुदयाल बोला--"कोई बड़ी बात
नहीं कि वो पेच इसने वारदात के बाद कभी खुद ढीले किये हों।"
. "क्यों भला?"-सुनील बोला।
"वजह तुम बताओ।"
"कोई वजह नहीं है। कृपानिधान, न निरंजन चोपड़ा मेरा कोई सगेवाला है और न बतरा
से मेरी कोई दुश्मनी थी। ऐसे किसी काम को कत्ल के बाद अंजाम देने से मुझे
क्या हासिल था?"
“वो भी तुम बताओ।”
"ये आप की ढिठाई है, बेजा जिद है कि..."
"शट अप! मैं क्या तुम्हें जानता नहीं!"
"तुम्हारी"-चानना बोला-"निरंजन चोपड़ा से कोई अदावत हो सकती है जिसकी वजह से
तुम्हारी मंशा बतौर कातिल उसे 'फोकस में लाने की हो सकती है।" .
"मेरी उससे कोई अदावत नहीं। मैं तो उसे ठीक से जानता तक नहीं।"
"तुम्हारा किसी दूसरे शख्स को बतौर कातिल पेश करना बेकार है-चांदी, सोने लौंग
के साथ भी बेकार है क्योंकि कातिल हमारी मुट्ठी में है।"
"कौन?"
"संजीव सुरी।" .. .. "वो कातिल नहीं हो सकता क्योंकि...."
"तुम तो ऐसा कहोगे ही। भावना इस बाबत तुम्हें शीशे में उतारने में कामयाब जो
हो चुकी है।"
"मैं कबूल करता हूं कि मेरी भावना से इस बाबत बात हुई है-अलबत्ता मुझे हैरानी
है कि वो वात तुम्हें क्योंकर मालूम है-लेकिन ये बात नहीं हुई है कि संजीव
सूरी गुनहगार भी हो तो मैं उसे बेगुनाह साबित करके दिखाऊं। इन्स्पेक्टर
प्रभुदयाल मेरे गवाह हैं कि मैंने आज तक कभी किसी कातिल की हिमायत नहीं की।"
“तुम्हें भरमाया तो जा सकता है कि वो कातिल नहीं है। भावना तुम्हारे जैसों को
उंगलियों पर नचा सकती है।"
"वहम है तुम्हारा । जो बात खुद तुम्हारे पर फिट बैठती है, उसे मेरे पर लागू
करने की कोशिश मत करो। मैं क्या भावना से तुम्हारी पुरानी आशनाई की बाबत
जानता नहीं!"
चानना का चेहरा कानों तक लाल हो गया। उसने खा जाने वाली निगाहों से सुनील की
तरफ देखा और दांत पीसता हुआ बोला- “क्या चीज है भई तू?"
"बहुत नायाब चीज हूं।"-सुनील बोला-"खांसी-जुकाम में बेजोड़, घिस कर लगाने से
जोड़ों का दर्द भी ठीक हो जाता है।"
"ठहर जा, साले।"
“चानना!"-तत्काल प्रभुदयाल तीखे स्वर में बोला "कन्ट्रोल युअरसैल्फ।" .
सुनील पर झपटने को तैयार चानना बड़ी कठिनाई से अपने सीनियर के आदेश का पालन
कर पाया।
“अब मुझे भावना का ये अन्देशा सच निकलता दिखाई दे रहा है"-सुनील बोला-"कि
अपनी कोई जाती खुन्दक निकालने के लिये तुम संजीव सूरी के पीछे पड़ सकते थे।"
"अरे, ईडियट ।"-चानना कलप कर बोला- "मेरी सूरी से कोई जाती खन्दक नहीं है।
यहां किसी जाती खुन्दक का कोई दखल नहीं है।"
"तो क्या बीवी से फोकस हटाने के लिये सूरी को कातिल करार देने की जिद ठाने
बैठे हो?"
"नहीं। हरगिज नहीं। मैं सपने में ऐसी कोई हरकत नहीं कर सकता। ऐसे मामलों में
मैं अपने सगे बाप की हिमायत नहीं करने वाला।"
"चानना ठीक कह रहा है।"-प्रभुदयाल सख्ती से बोला "इसलिये अपनी नुक्ताचीनी
बन्द करो।"
"तुम्हारी तफ्तीश में ये बात आड़े नहीं आने वाली"-सुनील चानना से सम्बोधित
हुआ- "कि तुम भावना के भूतपूर्व प्रेमी हो? तुम्हें इस बात से कोई गिला नहीं
कि जिस औरत के लिये तुम अपने दिल में आज भी मुहब्बत की शमा जलाये बैठे हो,
उसके दिल में पहले से कोई बसा हुआ है? उसके बेवा होने से पहले से बसा हुआ
है?"
"बहुत सख्त गिला है।"-इस बार चानना भड़क कर बोलने की जगह बड़े सुसंयत स्वर
में बोला-"इतना ज्यादा गिला है कि मुझे ये तक फैसला करना पड़ा है कि वो औरत
मेरी तवज्जो के काबिल थी ही नहीं। अब मेरे दिल में भावना बतरा नाम की औरत के
लिये कोई शमा नहीं जल रही। संजीव सूरी को मैं जानता था, ये भी जानता था कि वो
कमीना एक जिगोलो था। इसलिये मैं ये सोचकर अपने दिल को तसल्ली दिया करता था कि
वो ही भावना के पीछे पड़ा हुआ था क्योंकि भावना जैसी औरतों के पीछे पड़ना
उसका कारोबार था। हद तो तब हुई जब अभी कल मुझे पता चला कि वो लेखक, वो सागर
संतोषी भी उसका दीवाना है और भावना उसकी दीवानगी को शह देती है। अभी पता
नहीं' कि उसका कोई तीसरा, चौथा या पांचवां एडमायरर भी हो। मैं । किस-किस से
खुन्दक निकाल सकता हूं? खुन्दक निकालने से क्या ये आसान तरीका नहीं कि मैं
खुन्दक की वजह ही निकाल फेंकू? मैंने ऐन ऐसा ही किया है। इन्स्पेक्टर साहब की
वजह से मैंने ये सफाई दी है वरना सफाई देने की जगह तुम्हारा तो मैं ऐसा मुंह
बन्द करता कि दस-बीस दिन खुल न पाता।"
|