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उपन्यास >> चार आँखों का खेल

चार आँखों का खेल

विमल मित्र

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 13082
आईएसबीएन :9788180316234

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दो मनुष्य देखने में एक जैसे नहीं होते-शायद दो फूल भी नहीं! जीवन के अनुभव भी विभिन्न और विचित्र होते हैं

दो मनुष्य देखने में एक जैसे नहीं होते-शायद दो फूल भी नहीं! जीवन के अनुभव भी विभिन्न और विचित्र होते हैं। एक के लिए जो सत्य है, वह दूसरे के लिए नहीं। इसीलिये जीवन के बहुत-से पहलू अछूते और अनदेखे रह जाते है। उनको छूना और देखना भी जोखिम से खाली नहीं है। -लील- अश्लील का सवाल आड़े पड़ता है।
मिसेज डी'सा बड़ी भली औरत है। लेकिन पति की मृत्यु के बाद वह अपने बेटे के बराबर एक लड़के से शारीरिक संबंध स्थापित करती है। आदिम जैविक शुहग के आगे उसकी वह हार क्या सत्य नहीं है? है। उसी कटु सत्य को बिमल बाबू ने सुंदर बनाया है। चहेते लड़के, के हाथ अपने बेटे की हत्या के बाद भी मिसेज डी'सा उस सत्य से नहीं डिग सकी। न्यायाधीश के सामने .अंतिम गवाही के वक्त भी उस चहेते लड़के की तरफ देखते ही वह हत्या का आरोप अपने ऊपर ले लेती है।
नारी भी .आखिर मनुष्य है। नारीत्व मनुष्यत्व से अलग कोई चीज नहीं है। इसलिए नारीत्व के आगे मातृत्व की हार स्वाभाविक है। लेकिन उस स्वाभाविकता का बयान कितना मुश्किल है। इसे बिमल बाबू ने स्वीकार किया है।

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