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डॉ. भीमराव अम्बेडकर : व्यक्तित्व के कुछ पहलू

मोहन सिंह

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :140
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13097
आईएसबीएन :9788180312380

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डॉ. भीमराव अम्बेडकर के व्यक्तित्व के कुछ पहलुओं की झाँकी प्रस्तुत करनेवाली महत्त्वपूर्ण कृति

डॉ. भीमराव अम्बेदकर डॉ. भीमराव अम्बेदकर आधुनिक भारत के थोड़े से नेताओं में से एक हैं जिन्होंने चिन्तन और संघर्ष के द्वारा हमारे देश को हर क्षेत्र में प्रभावित किया। वे अपने जीवनकाल में और उसके बाद भी बौद्धिक बहस व राजनीतिक वाद-विवाद के विषय बने रहे। उनकी जीवनी लिखने के बहाने कतिपय लेखकों ने संगठित प्रयास से यह बात सिद्ध करना चाहा कि डॉ. अम्बेदकर एक सामान्य व्यक्ति थे, उन्होंने भारतीय जीवन को सही दिशा नहीं दी। किन्हीं भ्रांत धारणाओं के वशीभूत इस समाज के एक वर्ग के लोग एक फर्जी भगवान की पूजा करते हैं। कतिपय लेखकों ने उनके कर्म और विचार से उन्हें देवदूत की कोटि में रखने की कोशिश की। ऐसी परिस्थिति में इस पुस्तक में यह प्रयास किया गया कि उनका जो भी पक्ष समाज को प्रेरणा देनेवाला है, उसे पाठकों के समक्ष उजागर किया जाए। वे न तो भगवान या भगवान की ओर से भेजे गए कोई संदेश- वाहक थे और न तो इतने निरीह-निर्जीव जन जिनके योगदान की उपेक्षा की जाये। यह तो उनको भारतीय समाज का एक विशिष्ट व्यक्ति स्वीकार करने के बाद ही अपने को श्रेष्ठ, बुद्धिजीवी तथा लेखक घोषित करने वालों ने विशेष प्रयास करके उनके उचित पक्ष पर भी कालिख पोतने की कोशिश की। आखिर ऐसे लोगों के लिए भी विचारणीय प्रश्न अवश्य होना चाहिए कि कुछ वर्ग विशेष के लोगों द्वारा उन्हें बार-बार नीचा दिखाने की भावना से इतना कठिन श्रम क्यों करना पड़ता है? उनके सारे प्रयासों के बावजूद हिन्दू समाज अथवा भारतीय समाज के पाँचवें हिस्से में वे देवता का स्थान क्यों ग्रहण कर लिए हैं? एक तो यह कहना कि उनका सार्वजनिक जीवन 1924 से प्रारंभ होता है, यह सरासर गलत है। वे तो 5 वर्ष की उम्र से ही सामाजिक तिरस्कार झेलते हुए व्यवस्था से विद्रोही बनने लगे थे। प्रखर प्रतिभा होने के बावजूद एक अबोध बालक को जिसे सामाजिक छुआछूत अथवा अन्य सामाजिक व्यवस्थाओं के बारे में अल्प ज्ञान भी न हो, उसे वर्णव्यवस्था के दुष्परिणामस्वरूप कक्षा में पठन-पाठन हेतु प्रवेश न मिले; उसे सारी कसौटियों पर खरा उतरने के बावजूद पढ़ाई कक्षा से बाहर बैठकर पढ़ने के लिए विवश किया जाये; ब्लैक बोर्ड पर प्रश्न हल करने का प्रयास करते समय कक्षा के सभी बाल सहपाठी अपना भोजन पैकेट एक अछूत बालक के हाथ से छू न लिया जाए, इसलिए अपना सामान लेकर भाग खड़े हों; अछूत परिवार में पैदा होने के दण्ड-स्वरूप कोई बाल-सखा बनने को तैयार न हो तो क्या ऐसा बालक विद्रोही नहीं होगा?
डॉ. भीमराव अम्बेडकर के व्यक्तित्व के कुछ पहलुओं की झाँकी प्रस्तुत करनेवाली महत्त्वपूर्ण कृति।

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