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नये पत्ते

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :111
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13225
आईएसबीएन :9788180317842

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श्री केशवचन्द्र वर्मा व्यंग्य लेखक के रूप में देश में सबसे पहले अपनी अलग पहचान बनाने वाले व्यक्तियों में हैं। वे हास्य व्यंग्य के श्रेष्ठ नाटककारों में तो गिने ही जाते हैं और उनके लिखे नाटक सारे देश में यत्र-तत्र खेले भी जाते रहे हैं

हिन्दी लेखक श्री केशवचन्द्र वर्मा व्यंग्य लेखक के रूप में देश में सबसे पहले अपनी अलग पहचान बनाने वाले व्यक्तियों में हैं। वे हास्य व्यंग्य के श्रेष्ठ नाटककारों में तो गिने ही जाते हैं और उनके लिखे नाटक सारे देश में यत्र-तत्र खेले भी जाते रहे हैं। वे उन विरल लेखकों में रहे हैं जिन्होंने लेखन के अलावा रंगकर्म से सीधे जुड़ने का भी दायित्व-निर्वाह किया है। यह पुस्तक उसी की साक्ष्य है। वे आकाशवाणी से भी पैंतीस सालों तक सक्रिय रूप से जुड़े रहे और कार्यक्रमों का संचालन करते रहे। रंगकर्म के क्षेत्र में उनके अनुभव तो अनूठे हैं ही, वे उस हिन्दी रंगकर्मी आन्दोलन के भी जागरूक द्रष्टा और महत्वपूर्ण रंगमंचीय आन्दोलनों के संयोजक भी माने जाते रहे हैं। उन्होंने संगीत के क्षेत्र में भी उसके व्यापक और विविध पक्षों को समेटते हुए कई पुस्तकें लिखी हैं जो हिन्दी के पाठकों को पहली बार सुलभ हो सकी हैं। उनकी प्रमुख उल्लेखनीय कृतियाँ निम्नांकित हैं : हास्य-व्यंग्य विषयक-काठ का उल्‍लू और कबूतर; आँसू की मशीन; मुहब्बत, मनोविज्ञान और मूँछदाढ़ी; (सभी उपन्यास)। कथा कहानी निबन्ध-लोमड़ी का माँस; अफलातूनों का शहर; मुर्गछाप हीरो; वृहन्नला का वक्तव्य; अगला स्टेशन आदि। नाटक -नाम बदल दो (सम्पूर्ण हास्य नाटक); चिड़ी के गुलाम; रस का सिरका; एवं कई ध्वनि नाटिकाएँ। कविता-वीणापाणि के कम्पाउण्ड में; उज्ज्वल नीलरस; समर्थारति। संगीत विषयक - भारतीय नृत्यकला; कोशिश; संगीत समझने की; राग और रस के बहाने; मनके : सुर के तथा ' सुरलोक '। निरन्तर पिछले पचास वर्षों से हिन्दी में लिखते रहने वाले थी केशवचन्द्र वर्मा का नाम इस कारण भी रेखांकित किया जाता है कि उन्होंने न केवल व्यंग्य-लेखन की हर विधा में सर्वप्रथम श्रेष्ठ उपलब्धियों वाली रचनाएँ कीं-चाहे हास्य व्यंग्य के उपन्यास हों, कहानियां हों, सम्पूर्ण नाटक और निबन्ध हों-परन्तु अन्य गंभीर रचना के क्षेत्र में अपनी कविताओं और संगीत विषयक अनेक कृतियों को हिन्दी में पहली बार प्रस्तुत करने का श्रेय भी पाया है। हिन्दी साहित्य के किताबी इतिहास से उसे मुक्त करके इधर केशव जी ने जिस तरह अपनी पुस्तकों-'ताकि सनद रहे' और उसी क्रम में 'निज नैनहिं देखी' को अपने प्रामाणिक निजी साक्ष्य के रूप में प्रकाशित किया है, वह निस्संदेह उन्हें इस क्षेत्र में भी यकता बनाती है। अपनी समकालीनों में तो उनकी पहचान नितान्त विशिष्ट है ही-वे स्वयं अपनी रचना प्रक्रिया को अपनी विविधता से चुनौती देते हैं। इसका साक्ष्य-केशव जी का लेखन जो देश के तमाम प्रमुख पत्रों और पत्रिकाओं में पिछले कई दशकों में छपकर उपलब्ध होता रहा है-वही पाठक दे सकेंगे।

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