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उपन्यास >> तितली

तितली

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :219
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13339
आईएसबीएन :0

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वर्तमान हिंदी उपन्यास के समझने में ही नहीं बल्कि आधुनिक चेतना तथा सत्याग्रह कालीन दृष्टि के संतुलन और वैषम्य की दृष्टि से भी यह उपन्यास महत्वपूर्ण है

तितली 'मनुष्य बनाम समाज' के संघर्ष का ही उपन्यास न होकर मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा का भी उपन्यास है। इसमें तितली, शैला, माधुरी, श्यामकुमारी, राजकुमारी आदि नारी चरित्रवर्ग चरित्र न होकर ऐसी नारियाँ हैं जो अपनी कमजोरियों के कारण टूटती भी हैं और उसी से शक्ति अर्जित करके सामाजिक जीवन को बदलती भी हैं। इस उपन्यास में महात्मा गाँधी कि मूल्य चेतना के साथ ही साथ उस महत्त्व की भी खोज की गई है जिससे एक वैश्विक सामरस्य का सृजन संभव हो सकता है। पुरुष सत्तात्मक व्यवस्था के प्रति विद्रोह के साथ ही साथ संभव बराबरी का लक्ष्य इस उपन्यास से निरंतर बना हुआ है। त्याग, प्रेम, समता और करुणा के साथ-साथ इसमें इन मूल्यों के कारण मनुष्य में होने वाली हलचलों का संकेत औपन्यासिक शिल्प के विकास और क्षमता का भी प्रमाण प्रस्तुत करता है। अर्थमय जगत में आत्म संस्कार की आवश्यकता महात्मा गाँधी की ही तरह इस उपन्यास में सृजनात्मक आदर्श की तरह संरचना के साथ बुनी हुई है। सेवा भावना निश्कमना के साथ जुड़कर वाटसन और स्मिथ आदि चरित्रों का निर्माण कर सकी है। वर्तमान हिंदी उपन्यास के समझने में ही नहीं बल्कि आधुनिक चेतना तथा सत्याग्रह कालीन दृष्टि के संतुलन और वैषम्य की दृष्टि से भी यह उपन्यास महत्वपूर्ण है।

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