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अंत अनन्त
अंत अनन्त
प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2014 |
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 13713
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आईएसबीएन :9788126725939 |
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पाठक मानेगे कि यह कविता की एक नई दुनिया है, अधिक आत्मीय और प्रत्यक्ष, जिसे भाषा सजाती नहीं, बल्कि अपनी भीतरी शक्ति से खड़ी करती है।
यह संकलन संपूर्ण निराला-काव्य का परिचय देने के लिए नहीं, बल्कि इस उद्देश्य से तैयार किया गया है कि इससे पाठको को उसकी मनोहर तथा उदात्त झांकी-भर प्राप्त हो, जिससे वे उसकी ओर आकृष्ट हों और आगे बढे। निराला की खासियत क्या है ? वे प्रचंड रूमानी होते हुए भी क्लासिकी हैं, भावुक होते हुए भी बौद्धिक, क्रन्तिकारी होते हुए भी परम्परावादी तथा जहाँ सरल हैं, वहां भी एक हद तक कठिन। उनकी अपनी शैली है, अपनी काव्य-भाषा। अभिव्यक्ति की अपनी भंगिमाएं और मुद्राएँ। यह सर्वथा स्वाभाविक है कि उनके निकट जानेवाले पाठको से यह अपेक्षा की जाए कि उनका काव्यानुभव बच्चन, दिनकर या मैथिलीशरण गुप्त तक ही सीमित न हो। जब वे किंचित प्रयासपूर्वक उक्त कवियों से हटकर उनके काव्य-लोक में प्रवेश करेंगे, तो पायेंगे कि उनकी तुलना में वे उनके ज्यादा आत्मीय है। निराला के प्रसंग में सरलता का यह मतलब कतई नहीं है कि उनकी कविताएँ पाठकों के मन में बेरोक-टोक उतर जाएँ। कारन यह है कि उनके लिए काव्य-राचन सशक्त भावनाओं का मात्र अनायास विस्फोट नहीं था, बल्कि वे अपनी प्रत्येक कविता को किंचित आयासपूर्वक पूरी बौद्धिक सजगता के साथ गढ़ते थे। स्वभावतः उनकी सम्पूर्ण अभिव्यकि कलात्मक अवरोध से युक्त है, जिसे ग्रहण करने के लिए थोडा धैर्य और श्रम आवश्यक है। इस पुस्तक में निराला के काव्य-विकास की तीनों अवस्थाओं-पूर्ववर्ती, मध्यवर्ती और परवर्ती-की सौ चुनी हुई सरल कविताएँ संकलित की गई हैं, प्राय रचना-क्रम से। आरंभिक दोनों अवस्थाओं में सृजन के कई-कई दौर रहे हैं, कविता और गीत के, जिसकी सूचना अनुक्रम से लेकर पुस्तक के भीतर सामग्री-संयोजन तक में दी गई है। पाठक मानेगे कि यह कविता की एक नई दुनिया है, अधिक आत्मीय और प्रत्यक्ष, जिसे भाषा सजाती नहीं, बल्कि अपनी भीतरी शक्ति से खड़ी करती है।
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