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परिमल
परिमल
प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2008 |
पृष्ठ :205
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 14123
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आईएसबीएन :9788126705092 |
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महाकवि ‘निराला’ की युगांतरकारी कविताओं का अति विशिष्ट और सुविख्यात संग्रह है-परिमल।
महाकवि ‘निराला’ की युगांतरकारी कविताओं का अति विशिष्ट और सुविख्यात संग्रह है-परिमल। इसी में है तुम और मैं, तरंगो के प्रति, ध्वनि, विधवा, भिक्षुक, संध्या-सुन्दरी, जूही की कलि, बदल-राग, जागो फिर एक बार-जैसी श्रेष्ठ कविताएँ, जो समय के वृक्ष पर अपनी अमिट लकीर खिंच चुकी हैं। परिमल में छाया-युग और प्रगति-युग अपनी सीमाएँ भूलकर मनो परस्पर एकाकार हो गए हैं। इसमें दो-दो काव्य-युगों की गंगा-जमनी छटा है, दो-दो भावधाराओं का सहजमुक्त विलास है।
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