उपन्यास >> उग्रतारा उग्रतारानागार्जुन
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इसमें एक नारी के प्रेम, बेबसी, विशाल-हृदयता और उसके अकुंठ जीवन-संघर्ष का मर्मस्पर्शी चित्रण हुआ है।
नागार्जुन के कथा-चरित्र साधारण होकर भी हमारे समाज के बहुत ही असाधारण हिस्से होते हैं। वे अपने समय और समाज के उन बुनियादी जिवनादर्शी को मूर्तिमान करते हैं, जिनके बारे में जन-साधारण सिर्फ सोचते रह जाते हैं और चाहकर भी अपनी चेतना के बंजर में कोई निर्णायक बूटा नहीं उगा पाते। नागार्जुन की 'उग्रतारा' ऐसे ही लोगों को राह दिखाती है। नारी होकर भी वह सामाजिक जड़ताओं से ऊपर है, यही कारण है कि उग्रतारा का अयाचित मातृत्व भी न तो उसे स्वार्थी बना पाटा है और न ही कुंठित कर छोड़ता है। वस्तुतः इसमें एक नारी के प्रेम, बेबसी, विशाल-हृदयता और उसके अकुंठ जीवन-संघर्ष का मर्मस्पर्शी चित्रण हुआ है। जीवन के निर्णायक क्षणों में उसकी यथार्थपरक दृष्टि हमें अभिभूत कर लेती है।
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