योग >> योग निद्रा योग निद्रास्वामी सत्यानन्द सरस्वती
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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।
योग निद्रा 'ब्रेनवाशिंग' नहीं
योग निद्रा का अभ्यास बुरी आदतों तथा बुरे स्वभाव को बदलने में सक्षम है, किन्तु यह मस्तिष्क का संशोधनीकरण है, न कि ब्रेनवाशिंग की क्रिया। वस्तुतः ब्रेनवाशिंग की क्रिया तो राजनैतिक 'ब्लैकमेलर' के लिए बनाई गई थी। अगर योग निद्रा का अर्थ ब्रेनवाशिंग है तो शायद संसार की सभी क्रियाएँ ब्रेनवाशिंग ही कही जायेंगी। टेलीविजन, रेडियो, विज्ञापन, अखबार, पत्रिकाएँ, उपन्यास आदि सभी ब्रेनवाशिंग की ही पंक्ति में आते हैं, किन्तु योग निद्रा उससे अच्छी ब्रेनवाशिंग है, क्योंकि इसकी उपलब्धियाँ अधिक क्रियात्मक, स्पष्ट एवं प्रभावकारी हैं।
जब योग निद्रा में मन की ग्रहणशक्ति जाग्रत हो जाती है तो निर्देशक व्यक्ति के मन की निराशाजनक विचारधाराओं को सही दिशा में ले जाने का कार्य करता है। जैसे, कोई लड़की भयाक्रांत है और डॉक्टर अपनी प्रत्येक प्रकार की चिकित्सा उस पर आजमा चुके हैं, लेकिन लड़की के मन से भय नहीं जाता है। अगर योग निद्रा की क्रिया उसे भयमुक्त कर देती है तो इसे ब्रेनवाशिंग भले ही कह लें, लेकिन यह एक सशक्त सकारात्मक क्रिया भी है, इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है।
योग में साधक को ज्ञान की उस दिशा से परिचित कराया जाता है जहाँ वह व्यक्ति को पीड़ा, दु:ख, त्रास आदि से राहत दिला सके, पीड़ित मानवता की कराह को हँसी के कहकहे में बदल सके। चूँकि व्यक्ति स्वयं अपनी पीड़ा से मुक्ति पाने में असमर्थ है, इसलिए उसे योग निद्रा की आवश्यकता है जो उसे दु:ख, जलन, ताप से मुक्ति दिलाने में समर्थ है। संसार में सभी सुख की खोज में संलग्न हैं, यह भी एक प्रकार की ब्रेनवाशिंग ही है। किन्तु सुख तभी प्राप्त होगा जब समाधि की अवस्था आयेगी। यह समाधि सबके लिए संभव नहीं है। पीड़ित मानवता की योग निद्रा द्वारा सेवा सर्वोत्तम सेवा है जहाँ दुःख, पीड़ा, भय, त्रासदी से छूटने का रास्ता व्यक्ति स्वयं खोजता है, निर्देशक तो उसका पथ-प्रदर्शक बनता है, बस।
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