योग >> योग निद्रा योग निद्रास्वामी सत्यानन्द सरस्वती
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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।
योग निद्रा और मस्तिष्क
आधुनिक स्नायु-शरीर-वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि मस्तिष्क और शरीर के बीच गहरा और स्पष्ट सम्बन्ध है। इसी दिशा में प्राचीन काल के योगियों ने हजारों वर्षों पूर्व योग निद्रा द्वारा अवचेतन मन से सीधा सम्बन्ध जोड़ने का उपाय ढूँढ लिया था। नाड़ी विज्ञान के चिकित्सकों ने मस्तिष्क की भलीभाँति परीक्षा करने के लिए विद्युत तारों द्वारा उसके किनारों को उत्तेजित कर यह सिद्ध कर दिया है कि शरीर का प्रत्येक अंग अपने संक्षिप्त, किन्तु यथार्थ रूप में मस्तिष्क की तहों में निहित है। इन अंगों का संचालन ध्वनि-तरंगों द्वारा होता है।
शरीर के शिथिलीकरण से मन का विश्राम
योग निद्रा में मन का विश्राम ही शरीर का विश्राम माना गया है। यहीं पर 'न्यूरोसर्जरी' के सिद्धान्त और प्राचीन तंत्रों में वर्णित ध्यान तथा योग निद्रा के अभ्यास में समानता है। योग निद्रा के अभ्यासी को वे स्थान ज्ञात हो जाते हैं जहाँ से श्रवणेन्द्रियाँ ध्वनि द्वारा शरीर को आज्ञा देती हैं जिनसे व्यक्ति की चेतना में सजगता बनी रहती है।
मस्तिष्क चेतना के शारीरिक रूप को मन, शरीर एवं भावनात्मक रूप से जोड़ता है तथा उनमें एकता पैदा करके जीवन को संतुलित करने का कार्य करता है। नाड़ी विज्ञान मस्तिष्क में हलचल पैदा करके शरीर पर उसका प्रभाव देखता है, लेकिन योग निद्रा का अभ्यासी बिल्कुल इसके विपरीत अपने अभ्यास की प्रक्रिया को प्रारंभ करता है। वह अपना अभ्यास स्नायु-पथ को उत्तेजित कर शरीर की सजगता बनाये रखने से प्रारंभ करता है एवं मस्तिष्क में हलचल पैदा करता है।
शरीर पर सजगता बनाये रखने की यह विधि केवल शारीरिक विश्राम . ही नहीं प्रदान करती, वरन् मस्तिष्क तक जाने वाली सभी संवेदनशील नाड़ियों के रास्ते भी स्वच्छ करती चलती है। इससे मस्तिष्क और भी सशक्त होकर शारीरिक क्रियाओं का ही संतुलन नहीं रखता, अपितु जो विचार आते-जाते हैं, उनको भी संतुलित करता है। इस प्रकार यह विधि मस्तिष्क के सभी रास्तों को स्वच्छ करती है। व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को निखारने में सफलता प्राप्त करता है।
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