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योग निद्रा

स्वामी सत्यानन्द सरस्वती

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :320
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 145
आईएसबीएन :0

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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।


मस्तिष्क की बनावट एक बौने की तरह है


शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क की बनावट को एक छोटे आदमी की संज्ञा दी है। शरीर का प्रत्येक अंग मस्तिष्क के अंदर स्पष्ट देखा जा सकता है, जिससे उन अंगों को चेतना प्राप्त होती है, जैसे -

दाहिने हाथ का अंगूठा, दूसरी अंगुली, तीसरी अंगुली, चौथी अंगुली, पाँचवी अंगुली, हथेली, पंजा, कलाई, केहुनी, कंधा, बगल, दाहिनी ओर की कमर, दाहिनी ओर की जाँघ, घुटना, पिण्डली, टखना, एड़ी, तलवा, पैर का अंगूठा, दूसरी अंगुली, तीसरी अंगुली, चौथी अंगुली पाँचवीं अंगुली आदि।

मस्तिष्क सम्बन्धी विज्ञान में अंगुलियाँ, होठ और नाक, जिन्होंने मस्तिष्क के ऊतकों में ज्यादा से ज्यादा स्थान घेर रखा है; अधिक शक्तिशाली एवं आवश्यक अंग हैं। इन अंगों के द्वारा ही योग निद्रा में दिये गये आदेशों को ग्रहण कर चेतन मस्तिष्क में पहुँचाया जाता है।

मस्तिष्क के ये अंग अपनी लम्बाई-चौड़ाई में शरीर का बहुत बड़ा भाग घेर लेते हैं। बाकी भाग में पूरे शरीर (कलाई से लेकर पैर की अंगुलियों तक) को स्थान मिल जाता है। शारीरिक दृष्टि से यह छोटा आदमी एक विषम, विसंगत से रूप-आकार का दिखाई देता है, जिसके हाथ आवश्यकता से अधिक बड़े हैं तथा अंगुलियाँ और चेहरे के अन्य अंग शारीरिक माप से छोटे अथवा बड़े आकार के हैं। यह आकार शरीर से एकदम पृथक्, किन्तु सार रूप में अपनी सत्ता बनाये रखता है। मस्तिष्क के इस स्नायु-संस्थान और चेतन मन के केन्द्र में प्रवेश करने के लिए मोटर कॉर्टेक्स को दर्शाते हुए मस्तिष्क की अनुप्रस्थ काट, जिसमें शरीर के अंगों को जाइरस के समानान्तर रेखांकित किया गया है।

यह मस्तिष्क एक बौने की तरह है - मस्तिष्क के भीतर निहित एक प्रतीकात्मक मनुष्य।

1. पैरों की अंगुलियाँ

2. टखना

3. घुटना

4. नितम्ब

5. धड़

6. कंधा

7. केहुनी

8. कलाई

9. हाथ

10. कनिष्ठिका

11. अनामिका

12. मध्यमा

13. तर्जनी

14. हाथ का अँगूठा

15. गर्दन

16. भौंह

17. नेत्रों की पलकें एवं गोलक

18. चेहरा

19. होठ

20. जबड़ा

21. जिह्वा

22. निगलना

प्राणिक शक्ति और नाड़ियों के विभिन्न केन्द्र हैं जो सम्पूर्ण शरीर को शक्ति देकर संतुलित बनाये रखते हैं।

मस्तिष्क की इस अद्भुत बनावट और उसके कार्यों का संचालन करने वाली रक्त वाहिकाओं की जानकारी से व्यक्ति अच्छी तरह योग निद्रा के प्रभाव के बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकता है। अभ्यास के लिए यह जानना भी आवश्यक है कि निर्देशक की आज्ञा किस प्रकार से शरीर द्वारा चेतन में प्रवेश करती है। इसलिए एक बार जो परम्परा का विशेष ढंग बना लिया जाता है, उसे बदलना ठीक नहीं रहता, क्योंकि यही परम्परा मस्तिष्क के हर अंग में, नाड़ी संस्थानों में प्राणिक शक्ति को भरती रहती है। यही प्रवाह विश्राम के स्वानुभूतिमूलक अनुभवों में परिणत हो जाता है। 'छोड़ो या जाने दो' की स्वाभाविक प्रतिक्रिया के फलस्वरूप चेतन अन्य ज्ञानेन्द्रियों से अलग हो जाता है और फिर अनुभवों का ज्ञान अपने आप घटता रहता है। प्रतिदिन के अभ्यास के प्रभाव भीतर के चेतन मन में जाते रहते हैं और सजग मन को व्यर्थ की विचारधारा से दूर रखते हैं।

पतंजलि के अनुसार इन्द्रियों से चेतना को हटाना प्रत्याहार कहलाता है जो कि राजयोग की पाँचवीं तथा धारणा, ध्यान एवं समाधि की प्रारंभिक अवस्था है।

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