योग >> योग निद्रा योग निद्रास्वामी सत्यानन्द सरस्वती
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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।
योग निद्रा द्वारा स्वास्थ्य की प्राप्ति
आज के युग में विज्ञान की शोधात्मक प्रणाली के निर्णयों को ठुकराया नहीं जा सकता। विज्ञान के मस्तिष्क सम्बन्धी शोध तथा योगियों व ऋषि-मुनियों ने जो सदियों पूर्व मस्तिष्क के विभिन्न अंगों पर नियंत्रण प्राप्त करने वाले दृश्य को मण्डलों व यंत्रों के माध्यम से अंकित किया है, उनका परिणाम एक ही है। यह आश्चर्यपूर्वक स्वीकार करना पड़ता है कि योग निद्रा का अभ्यास एक ऐसा अभ्यास है जो मस्तिष्क के सभी कार्यकलापों को नियंत्रित कर दृश्य को भी स्पष्ट करता है।
इसमें संदेह नहीं है कि सदियों पूर्व के इस तंत्र शास्त्र के नियम व उपनियम केवल स्वास्थ्य और रोगों के निराकरण के लिए नहीं बनाये गये थे, उनका उद्देश्य शरीर के अन्दर प्रसुप्त सूक्ष्म प्राण शक्तियों को जाग्रत कर उन्हें आत्मिक ज्ञान से परिचित कराना था, जहाँ व्यक्ति ऐन्द्रिय सुख से परे एक अनंत सुख का उपयोग कर अपने व्यक्तित्व को निखारने में समर्थ हो सके। यह ज्ञान सार्वजनिक था।
आज का व्यक्ति अनेक प्रकार के मानसिक रोगों से त्रस्त है। इनमें रोग के कारण की पहचान कर लेना ही बहुत संतोष का विषय है। जैसे, अधिक नशीले पदार्थों का सेवन, पीड़ा-निरोधन, औषधियों का सेवन मनुष्य के स्नायु तंतुओं को थका कर कमजोर बना देता है और मनुष्य एक दिन आखिरी मोड़ पर आकर स्नायु-विकार सम्बन्धी रोगों का शिकार हो जाता है। योग निद्रा में यह विनाशकारी मनोकायिक स्थिति इसके ठीक विपरीत ‘सोमेटोसाइकिक' विधि द्वारा दूर की जाती है। मस्तिष्क के असंतुलन का मुख्य कारण स्वाभाविक रूप से शक्ति व स्नायु तंतुओं का ज्ञानेन्द्रियों से सम्बन्ध विच्छेद कर स्वतंत्र हो जाना होता है। इस प्राण शक्ति तथा नाड़ियों की संवेदनशीलता को मस्तिष्क से पुन: जोड़ने के लिए प्रत्याहार द्वारा शरीर को संतुलित कर शरीर के सभी अंगों को कार्यशील बनाया जाता है। यह ऊर्जा स्वास्थ्य-लाभ हेतु एवं अत्यधिक कार्य कर चुके ऊतकों, ग्रंथियों और अंगों की ओर दिशांतरित की जाती है।
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