योग >> योग निद्रा योग निद्रास्वामी सत्यानन्द सरस्वती
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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।
नींद और समाधि
सांख्य तथा वेदांत दर्शन में नींद और समाधि को एक अवस्था कहा गया है। नींद और समाधि में कई अवस्थायें एक-सी हैं, जैसे - समाधि में समय, दूरी और दश्य का ज्ञान नहीं रहता, क्योंकि अहं समाप्त हो जाता है। नींद में भी अहं की दूरी के कारण यही अवस्था रहती है। नींद में शांति व आनन्द की प्राप्ति होती है, लेकिन वहाँ अंतर है।
समाधि में अहं समाप्त हो जाता है, नींद में यह कुछ समय के लिए मन से हट जाता है। नींद में अहं कुछ देर के लिए एकांतवास करता है, लेकिन समाधि में यह टुकड़े-टुकड़े हो जाता है। समाधि के बाद अहंकार पुनः नहीं उदित होता, नींद के बाद अहंकार बराबर बना ही रहता है।
समाधि और नींद में मूलभूत अंतर यह है कि समाधि में मनुष्य की आंतरिक सजगता बनी रहती है। व्यक्ति का चेहरा कांतिमय, तेजोमय हो उठता है। नींद में केवल आंतरिक चेतनता का आभास मात्र रहता है। इसमें आत्मतत्त्व की पहचान का कोई चिह्न नहीं रहता, इसलिए नींद एक शीत-स्वप्न की अवस्था है और समाधि चैतन्य की, चिदानन्द की अनुभूति है।
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