योग >> योग निद्रा योग निद्रास्वामी सत्यानन्द सरस्वती
|
545 पाठक हैं |
योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।
आत्मा की अंधेरी रात
हिन्दू दर्शन के अनुसार शून्य एक महत्त्वपूर्ण इकाई है। जिन्होंने गणित का अध्ययन किया है, वे सिफर का मूल्य अच्छी तरह जानते हैं। सिफर और शून्य एक ही प्रकार के चिह्न हैं। इसलिए शून्य एक महत्त्वपूर्ण इकाई है। गणित की दृष्टि से भी एवं सांसारिक दृष्टि से भी। जो साधक आत्मिक अंधेरे में झाँककर अवचेतन की शक्ति से परिचित होना चाहता है, उसे एक प्रतीक का सहारा लेना ही पड़ेगा।
शिवरात्रि को ही आत्मा का अंधकार कहा जाता है। खेद है कि जिन्होंने शिवरात्रि के महात्म्य का वर्णन किया है, उन्होंने इसका अनुभव नहीं किया। यह कोई आलोचना नहीं है, यह सत्य है। जब तक अनुभव न हो तब तक 'शिवरात्रि' का महत्त्व समझाया नहीं जा सकता है। भारतवर्ष में यह उत्सव वर्ष में एक दिन शिव-विवाह के रूप में मनाया जाता है, अर्थात् आत्मा के इस अंधेरे रास्ते पर शिव का प्रकाश आने दो। अपने अंदर छिपे हुए शिव-तत्त्व को जगाओ, तुम्हारी शक्ति स्वयं उजाले को प्राप्त कर लेगी।
इस तरह प्रत्येक प्रतीक का अपना अलग ही महत्त्व है। इसे कल्पनात्मक नहीं कहा जा सकता। जो नहीं समझते, वही ऐसा कहते हैं। जैसे एक फूल को देखते हो, वैसा ही एक फूल अंदर भी दिखता है, तो क्या वह केवल कल्पना है? यह ठीक है कि फूल अंदर नहीं हो सकता, लेकिन चित्त द्वारा उसी प्रकार का एक फूल अंदर बसाया जा सकता है। यदि आप अपने चित्त को और भी शक्तिशाली बना सकते हैं तो वह वस्तुतः अपने भीतर छिपे हुए फूल को देख सकता है। व्यक्ति जब आंतरिक दर्शन के इस मोड़ पर पहुँचता है जहाँ उसे अपने अंदर फूल के दर्शन स्पष्ट होने लगते हैं तब चेतना अवचेतन के समतल पर आ जाती है। जब साधक अपने अंदर छिपे फूल को उसके सही मापदण्ड, रूप, रंग, आकार सहित देखने में सक्षम हो जाता है, तब वह रूप, आकार, काल, स्पर्श, ज्ञान की पहुँच से बाहर होकर वास्तविक फूल के दर्शन करता है। यही अंधेरे से जाग्रति की ओर प्रस्थान है।
यह जागृति प्रतीकों के माध्यम से ही अवचेतन का पथ प्रदर्शित करती है, क्योंकि वहाँ कोई रूप, कोई आकार नहीं है। यही समाधि की अवस्था है, जहाँ कोई प्रतीक चिह्न नहीं रह जाता। चेतना एकरस, एक-सम होकर चिदानन्दमय हो जाती है। चूंकि नींद और समाधि में अंतर नहीं है, अत: योगी जान लेते हैं कि वे किस अवस्था में हैं। सांख्य और योग में नींद को 'निद्रा' कहा गया है तथा इस अवस्था से बाहर आने को योग निद्रा कहा गया है। आप अभी जिस योग निद्रा का अभ्यास कर रहे हैं, वह बिल्कुल प्रारंभिक है।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book