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योग निद्रा

स्वामी सत्यानन्द सरस्वती

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :320
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 145
आईएसबीएन :0

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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।


शवासन


योग निद्रा का अभ्यास शवासन में ही करना चाहिये। यह शरीर की बहुत ही सरल अवस्था है। इसमें सम्पूर्ण शरीर को मृत शरीर की भाँति जमीन पर चित व ढीला छोड़ देते हैं (बिहार योग विद्यालय द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'आसन प्राणायाम मुद्रा बंध' देखिये)। वैज्ञानिक प्रयोगों से यह सिद्ध किया जा चुका है कि योग निद्रा में विश्राम पाने के लिये शवासन ही सर्वोत्तम है। विश्राम कई विधियों से प्राप्त किया जा सकता है, जैसे - श्वास का ख्याल (मानसिक प्राणायाम), ध्वनि (अंतर्मोन), ॐ ध्वनि (मंत्र एवं नादयोग) पर चेतना या जागरुकता बनाये रखकर। ऐसे ही हम अपनी चेतना को शरीर के विभिन्न अंगों पर घुमाकर योग निद्रा का अभ्यास कर सकते हैं।

योग निद्रा के लिये व्यक्ति को जमीन पर एक कंबल बिछाकर शवासन में चित लेट जाना चाहिये। इसमें रीढ़ की हड्डी एकदम सीधी रहे, दोनों हाथ शरीर के बगल में व हथेलियाँ ऊपर की ओर खुली रहें। हाथ कमर के बगल में करीब एक फुट दूर रहें जिससे शरीर से उनका स्पर्श न हो। हथेलियाँ, हाथ और भुजाएँ एकदम शिथिल छोड़ दीजिये। दोनों पैर सीधे तथा एक-दूसरे से एक फुट के अन्तर में रहें। आँखें बन्द रखें। सिर, पैर और धड़ एक सीध में रहें तथा कम्बल पर ही रहें तो अच्छा है। यदि आपको कुछ असुविधा अनुभव हो तो हल्के तकिये का प्रयोग कर सकते हैं। तकिया अधिक मोटा होने से सिर और गर्दन की नसों में तनाव आ सकता है जिससे श्वास प्रक्रिया में बाधा पड़ेगी एवं ऐसी ही अनेक बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं। आपका सम्पूर्ण शरीर पूर्ण शिथिल होना चाहिये।

यदि हाथों में चोट लगी हो और अपने हाथ सीधे रखने में असुविधा या दर्द का अनुभव करते हों तो हाथों को छाती पर भी रख सकते हैं, परन्तु यह ख्याल रखें कि इस स्थिति में भी केहुनियाँ जमीन को छूती रहें। इस प्रकार से लेटने से प्रमुख कर्मेन्द्रिय हाथ का सम्पर्क शरीर से रहता है।

शवासन में ही योग निद्रा करने का विशेष महत्त्व है। इसमें शरीर के सभी अंग विशेष रूप से ज्ञानेन्द्रियाँ अलग रहती हैं जिससे मन को भटकने और शरीर को हिलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। इस समय कपड़े भी कम से कम, ढीले तथा हल्के होने चाहिये। योग निद्रा में विश्राम मिलने से शरीर का तापमान कम होता है, इसलिये कम्बल पर सोने से आराम मिलता है।

तैयारी


योग निद्रा के अभ्यास में सबसे बड़ी कठिनाई दर्द, शरीर का कड़ापन और स्नायविक तनाव है। यह समस्या योग के कुछ शारीरिक अभ्यास करने से दूर हो सकती है। घर में आप सुविधानुसार विभिन्न आसनों का अभ्यास कर सकते हैं, जैसे, बीस मिनट प्रारम्भिक आसनों का अभ्यास उपयुक्त रहता है। इसी प्रकार आप क्रमानुसार पवनमुक्तासन, शवासन, सर्वांगासन, हलासन, मत्स्यासन, पश्चिमोत्तानासन, भुजंगासन, शलभासन, फिर अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन, भूपादमस्तकासन, शीर्षासन तथा शवासन करें।

यदि आप सूर्य नमस्कार के लिये केवल दस मिनट का समय दें तो आपके शरीर में चमत्कारिक परिवर्तन आ जायेगा, सारा शरीर लचीला हो जायेगा। शरीर के प्रत्येक भाग की मांशपेशियों की अच्छी मालिश हो जायेगी। इस गतिशील अभ्यास को विशेष रूप से प्रातः स्नान के बाद ही पाँच से दस मिनट तक करना चाहिये। यदि आपके पास इतना भी समय नहीं है तो आपको नौकासन का ही अभ्यास तीन से पाँच बार करना चाहिये। इसको आपको काफी लाभ होगा।

कुशल निर्देशक की आवश्यकता


योग निद्रा के प्रारम्भिक अभ्यासियों को किसी योग्य शिक्षक के निर्देशन में अभ्यास करना चाहिये। योग निद्रा का अभ्यास करते समय निर्देशों पर पूरा ध्यान रखना चाहिये, जिससे आप अकेले अभ्यास के समय उनको ध्यान में रख सकें। सबसे अच्छा यह होगा कि इस अभ्यास के लिये आप किसी योग्य शिक्षक के निर्देशन में प्रतिदिन योग निद्रा का अभ्यास करें, जिससे विश्राम की गहरी अवस्था में चले जाने पर निर्देशों के उतार-चढ़ाव से अर्द्ध-चेतन मन पर उनका प्रभाव अच्छी तरह से पडे और आप अपने को परी तरह से विश्राम की स्थिति में रख सकें। अपने आप योग निद्रा करने से उसका प्रभाव तो पड़ता है, लेकिन पूरा लाभ नहीं मिल पाता। स्वयं अभ्यास से नींद भी आ जाती है और निर्देश भी पूरी तरह से नहीं दिये जा सकते।

शिक्षक को अभ्यासी के आवश्यकतानुसार ही निर्देश देना चाहिये। यह सामूहिक कक्षा तथा व्यक्तिगत अभ्यास, दोनों पर ही लागू होता है। यदि कक्षा में अधिक लोगों को तनाव हो तो केवल विश्राम के लिये उचित निर्देशन देना चाहिये। यदि सभी लोग जल्दी से विश्राम की स्थिति में पहुँच जायें तो ध्यान की कक्षा में अच्छी उन्नति हो सकती है।

आमतौर पर योग निद्रा में सोने के साथ ही साथ एक प्रकार से ध्यान भी किया जाता है। हाल की एक वैज्ञानिक खोज में मंत्र-योग के शिक्षकों ने अनुभव से बताया है कि पश्चिम में दस से पचास प्रतिशत लोग मंत्र जप तथा ध्यान के समय सोते रहते हैं। इसी प्रकार से ध्यान करते समय आप थोड़ी देर में स्वतः ही सो जायेंगे और आपको इसका ख्याल भी नहीं रहेगा। परन्तु योग निद्रा में आप ऐसा नहीं कर सकेंगे, क्योंकि आपको निर्देशों के प्रति सजग रहना होगा।

आपको बराबर निर्देश भी प्राप्त होते रहेंगे कि आपको सोना नहीं है। दूसरी ओर जो लोग अनिद्रा के शिकार हैं वे शिथिलीकरण करते ही गहरी नींद में चले जायेंगे। यदि आप योग निद्रा में सो जाते हैं तो इसका तात्पर्य है कि आपको नींद की आवश्यकता है, अन्यथा आप गहरे ध्यान में जा सकते हैं और उसमें विकास कर सकते हैं। योग निद्रा के लिये सबसे उत्तम है - कुशल निर्देशक या टेपरिकार्डर में शिक्षक के आदेशों का संकलन। यदि यह भी उपलब्ध न हो तो किसी सहयोगी या सम्बन्धी से निर्देशों को पढ़ने और बोलने को कह सकते हैं।

निर्देश देने की गति


योग निद्रा में निर्देश देने की गति एक ताल में और लययुक्त होनी चाहिये, जिससे मन उसको पकड़ने तथा कार्यान्वित करने में व्यस्त रह सके। साथ ही यह व्यक्ति की मनःस्थिति के अनुसार होनी चाहिये। प्रारंभ में इसकी गति कुछ धीरे होगी और जैसे-जैसे व्यक्ति योग निद्रा में आगे बढ़ता जायेगा, इस विधि से परिचित होता जायेगा, वैसे-वैसे इसकी गति बढ़ती जायेगी। साधारण तौर पर 'चेतना को घुमाने' और 'दृश्यों को तेजी से देखने' का अभ्यास कराना होगा। चेतना की पकड़ को निरंतर बनाये रखने के लिये निर्देशों की गति को थोड़ा तेज करना होगा, जिससे मन दैनिक क्रियाकलापों से सम्बन्धित विचारों में न भाग पाये। जैसे-जैसे विश्राम की अवस्था आने लगे, चेतना को धीरे-धीरे घुमाना चाहिये। आमतौर पर उच्च अभ्यास में निर्देश लम्बे समय तक दिये जाते हैं। निर्देश देते समय बीच-बीच में रुकना, अधिक रुकना और कुछ अवधि तक चुप रहना आदि बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है। योग निद्रा में कभी-कभी निर्देशों को दोहराना भी आवश्यक होता है। इस प्रकार निर्देश मन की गहराई में उतर जाते हैं।

लाभ


योग निद्रा का अभ्यास प्रत्येक व्यक्ति के साथ अलग-अलग समय के आधार पर चलता है। यह व्यक्ति के सामर्थ्य तथा योग्यता पर भी आधारित होता है। योग निद्रा से आप अचेतन मन की गहराईयों में उतरकर अपने जीवन का सही मूल्यांकन कर सकते हैं। जीवन के पूर्व संचित सभी संस्कारों, बुराईयों और कुण्ठाओं को सरलता से बाहर निकालने में समर्थ हो सकते हैं। अपने जीवन को नई दिशा, नई प्रगति, नये मोड़ की ओर ले जा सकते हैं। जीवन के निराशावादी विचारों को आशा की किरण के रूप में बदलकर आत्मोन्नति की ओर अग्रसर हो सकते हैं। मन में नया विश्वास, नया जोश व उत्साह भर जीवन के चरमोत्कर्ष पर पहुँच सकते हैं। शारीरिक, मानसिक, आधिदैविक दुःखों से परे अनन्त को पाने में सफल हो सकते हैं। यही योग निद्रा के चमत्कारी प्रभाव हैं। हम सभी योग निद्रा के अभ्यास द्वारा परम शक्ति को पाने की दिशा में कदम बढ़ायें।

योग निद्रा अभ्यास 1


तैयारी - कृपया अब आप योग निद्रा के लिये तैयार हो जाइये। जमीन पर शवासन में लेट जाइये। इस अवस्था में आपका शरीर सिर से पैर तक एक ही सीध में रहेगा। पैर एक-दूसरे से थोड़े अंतर पर रहेंगे। दोनों हाथ कमर के बगल में सीधे रखें। हथेलियाँ ऊपर की ओर खुली रहेंगी। (विराम) एक बार अच्छी तरह अपने शरीर की स्थिति को व्यवस्थित कर लीजिये। अब शरीर को आराम की स्थिति में ले आइये। योग निद्रा का अभ्यास शुरू हो जाने के बाद शरीर को किसी तरह हिलाना-डुलाना नहीं है। (विराम) आँखें बन्द रखिये; जब तक खोलने को न कहा जाये। अब गहरी श्वास लीजिये और अनुभव कीजिए कि शारीरिक एवं मानसिक थकान दूर हो रही है। (विराम)

अब अभ्यास करते समय अनुभव कीजिए कि आपका शरीर विश्राम करने जा रहा है। शरीर को हिलाना-डुलाना अथवा मांसपेशियों को स्वेच्छया शिथिल करना आवश्यक नहीं है। केवल विश्राम की भावना को जगाइये। (विराम) ठीक वैसा ही अनुभव कीजिए मानो आप रात्रि में सोने के लिये बिस्तर पर जा रहे हैं...जब शरीर शिथिल हो जाता है तब नींद आने लगती है। आपको सोना नहीं है; पूर्णत: जागरूक रहना है। यह बहुत ही आवश्यक निर्देश है। अब आप संकल्प कीजिए, 'मैं सोऊँगा नहीं; मुझे पूरे अभ्यास में जागते रहना है।' (विराम)

अब आपको निर्देशक की आवाज को सुनना है और उसे मानसिक रूप से क्रियान्वित करना है। अपनी चेतना को आवाज के साथ जोड़ देना है और उसी प्रकार चलाना है। (विराम) निर्देशों का बौद्धिक विश्लेषण अथवा विचार नहीं करना है। केवल आदेश का पालन करना है, अन्यथा आप मानसिक रूप से विश्राम नहीं पा सकेंगे। यदि अभ्यास के बीच में विचार आते हैं तो आने दीजिए, निर्देशों का पालन करते जाइये। (विराम) अपने आपको शांत और स्थिर रखिये...योग निद्रा के अभ्यास से पूर्व पाँच मिनट तक अपने को पूरी तरह से शांत और स्थिर बनाइये। योग निद्रा का अभ्यास लेटने के बाद तुरन्त ही करना प्रारम्भ मत कीजिए। (विराम)

विश्राम - अब सारे शरीर को आंतरिक रूप से शिथिल करने की भावना कीजिए...अपने अवधानं को शरीर पर केन्द्रित कीजिए और पूर्ण शारीरिक स्थिरता के प्रति सजग रहिए। (विराम) अपनी चेतना को सिर से पैर तक घुमाइये और मानसिक रूप से ओ...ऽ...ऽ...म् का उच्चारण कीजिए। पूर्ण स्थिरता के साथ सम्पूर्ण शरीर के प्रति जागरूक बने रहिए, फिर ओ..........म् बोलिए। सम्पूर्ण शरीर का ध्यान कीजिए, सम्पूर्ण शरीर, सम्पूर्ण शरीर...। अब आप ध्यान रखिये कि आप योग निद्रा का अभ्यास करने जा रहे हैं। मानसिक रूप से कहिये, "मैं सजग हूँ और मैं योग निद्रा का अभ्यास करने जा रहा हूँ।" इसे पुन: दोहराइये। पूर्ण रूप से सजग रहिए। अब योग निद्रा का अभ्यास शुरू होता है।

संकल्प - इस समय अपने संकल्प को दोहराना चाहिये। संकल्प बहुत ही छोटा और सरल हो। कोई एक संकल्प चुनिये। संकल्प आपके विकास एवं रचनात्मक भाव से प्रेरित हो। यह संकल्प आपके स्वभाव व प्रकृति के अनुकूल छोटा, सरल और स्पष्ट भाषा में होना चाहिये। इस संकल्प को तीन बार मन ही मन दोहराइये। योग निद्रा में किया गया संकल्प निश्चित ही फलीभूत होता है। इसके लिये पूर्ण : आत्मविश्वास की आवश्यकता है।

चेतना को घुमाना - अब हम चेतना या सजगता को क्रमशः शरीर के विभिन्न भागों में तेजी से घुमायेंगे। जितना सम्भव हो सके उतनी शीघ्रता से चेतना को शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में घुमाना है। शरीर के इन अंगों का नाम मानसिक रूप से दोहराइये, साथ ही शरीर के उस भाग के प्रति सजग बनिये। अपने आपको सजग बनाये रखिये, अधिक एकाग्रता का प्रयास नहीं करना है। अपने दाहिने हाथ पर अपनी मानसिक सजगता को ले जाइए। (विराम)

दायीं ओर - दायें हाथ का अँगूठा, पहली अंगुली, दूसरी अंगुली, तीसरी अंगुली, चौथी अंगुली, हथेली, हथेली के प्रति सजग बनिये, हथेली के पीछे का भाग, कलाई, केहुनी से नीचे की भुजा, केहुनी, ऊपर की भुजा, कंधा, काँख या बगल, दायीं कमर, दायाँ नितम्ब, दायीं जाँघ, दायाँ घुटना, दायीं पिण्डली, टखना, एड़ी, दाएँ पैर का तलवा, पैर का पंजा, अँगूठा, पहली अंगुली, दूसरी अंगुली, तीसरी अंगुली, चौथी अंगुली...

बायीं ओर - बायें हाथ पर अपनी मानसिक सजगता को ले जाइए। बायें हाथ का अँगूठा, पहली अंगुली, दूसरी अंगुली, तीसरी अंगुली, चौथी अंगुली, वायीं हथेली, हथेली के पीछे का भाग, कलाई, नीचे की भुजा, केहुनी, ऊपर की भुजा, कंधा, बायीं बगल, वायी कमर, बायीं जाँघ, बायाँ घुटना, बायीं पिण्डली, टखना, एड़ी, वाएँ पैर का तलवा, पैर का पंजा, अँगूठा, पहली अंगुली, दूसरी अंगुली, तीसरी अंगुली, चौथी अंगुली...

पीठ - अपनी पीठ के प्रति सजग हो जाइए – दायाँ पुट्ठा, दायाँ नितम्ब, बायाँ पुट्ठा, बायाँ नितम्ब, रीढ़ की हड्डी, पीठ का पूरा भाग...

सामने - अपनी चेतना को सिर के ऊपर के भाग पर लाइए। सिर का ऊपरी भाग, ललाट या माथा, सिर के दोनों पार्श्व, दायीं भौंह, बायीं भौंह, भ्रूमध्य, दायीं आँख, बायीं आँख, दायाँ कान, वायाँ कान, दायाँ गाल, बायाँ गाल, नाक, नासिकाग्र, ऊपर का होठ, नीचे का होंठ, ठुड्डी, गला, दायी छाती, बायीं छाती, छाती का मध्य भाग, नाभि, पेट...

मुख्य अंग - पूरा दायाँ पैर...पूरा बायाँ पैर...दोनों पैर एक साथ। (विराम) पूरा दायाँ हाथ...पूरा बायाँ हाथ...दोनों हाथ एक साथ। (विराम) पूरा पीठ का भाग, नितम्ब, रीढ़, कन्धों के पीछे का भाग...पूरा सामने का भाग, पेट, छाती...पूरा सामने तथा पीछे का भाग एक साथ...पूरा सिर...पूरा शरीर एक साथ...पूरा शरीर एक साथ...पूरा शरीर एक साथ। इसी प्रकार से एक या दो बार गति को क्रमश: धीमा करते हुए दोहराइये। कृपया सोयेंगे नहीं...पूर्ण जागरूक रहिए...सोना नहीं है और हिलना भी नहीं है। (विराम) आपका सारा शरीर जमीन पर लेटा हुआ है। इस लेटे हुए शरीर के प्रति अपनी जागरुकता बनाये रखिए। (विराम) आपका सारा शरीर इस कमरे में जमीन पर लेटा हुआ है। उसे ध्यान से देखने की कोशिश कीजिए। यह शरीर पूरी तरह से शिथिल और स्थिर पड़ा हुआ है, इसे मानसिक रूप से देखिए। (दीर्घ विराम)

श्वास - अपनी श्वास-प्रक्रिया के प्रति जागरूक बनिए। (विराम) फेफड़ों से जो श्वसन क्रिया आप कर रहे हैं, उसका अनुभव कीजिए। (विराम) आप श्वास ले रहे हैं और छोड़ रहे हैं। श्वास की लय को बदलिए नहीं। स्वाभाविक श्वसन क्रिया करते जाइए। आप इसमें अपना कोई प्रयास मत कीजिए। (विराम) अपनी श्वास को देखते जाइए। अपनी चेतना को श्वास-प्रश्वास पर ही लगाए रहिए। देखते जाइये, देखते जाइए...श्वास के प्रति पूर्ण सजगता। (दीर्घ विराम)

अब आप अपनी सजगता को अपने उदर-क्षेत्र में ले आइये...अपनी नाभि के उतार-चढ़ाव का ख्याल कीजिए। (विराम) प्रत्येक श्वास-प्रश्वास के साथ आपकी नाभि ऊपर और नीचे होती है; हर श्वास-प्रश्वास के साथ यह फैलती और संकुचित होती है...अपनी श्वास-प्रश्वास के साथ इस संकुचन तथा प्रसारण की क्रिया को देखते जाइए। (विराम) इसका अभ्यास करते जाइए। ध्यान रखिये कि आप सजग हैं। (दीर्घ विराम)

अब अपनी श्वास को 27 से 1 तक उल्टा गिनना शुरू कीजिए - नाभि के ऊपर उठने के साथ 27 गिनिए, नाभि के नीचे आने के साथ 27 गिनिए; नाभि के ऊपर उठने के साथ 26, नाभि के नीचे आने के साथ 26; नाभि के ऊपर उठने के साथ 25, नाभि के नीचे आने के साथ 25 गिनिए। इस प्रकार गिनते जाइए। गिनती मानसिक रूप से गिननी है, जोर से नहीं। आपकी पूरी सजगता गिनती में लगी रहे। गिनने में गलती नहीं करनी है और गिनती भूलना भी नहीं है। यदि गिनती भूल जायें तो फिर-से 27 से ही गिनना शुरू कीजिए। (दीर्घ विराम) गिनती गिनते हुए पूर्ण रूप से सजग बने रहिए और देखते रहिए कि मैं गिनती गिन रहा हूँ, मैं 27 से 1 तक की गिनती गिन रहा हूँ। (दीर्घ विराम) इस प्रकार से लगातार अभ्यास करते जाइए...गिनती में गलती न हो। (दीर्घ विराम)

अब नाभि की गति के साथ श्वास की गिनती गिनना बन्द कीजिए और अपने ध्यान को छाती पर ले आइए। छाती की तरफ आइये। (विराम) हर श्वास-प्रश्वास के साथ आपकी छाती ऊपर-नीचे होती है। इसके प्रति सजग बनिए। (विराम) छाती की गति पर एकाग्रता बनाये रखिए और पुनः उसी प्रकार 27 से 1 तक गिनती गिनिये। छाती उठने के साथ 27, नीचे आने के साथ 27; छाती उठने के साथ 26, नीचे आने के साथ 26; उठने पर 25, नीचे आने पर 25, इसी प्रकार से गिनते जाइये। गिनती मानसिक रूप से हो। (दीर्घ विराम) गिनने के प्रति सचेत रहिए। गलती होने पर फिर 27 से गिनना शुरू कीजिए। (दीर्घ विराम) अभ्यास के साथ अपनी चेतना को जोड़ दीजिए, सजगतापूर्वक गिनते जाइये। (दीर्घ विराम)

अब छाती में श्वास को गिनना रोक दीजिए। अपनी चेतना को गले में ले आइए। (विराम) श्वास के आवागमन को देखिए, श्वास के आने-जाने को गले में देखिए। (विराम) एकाग्रता के साथ पुनः 27 से 1 तक उल्टी गिनती पूर्वानुसार गिनिये। श्वास की गिनती के प्रति पूरी तरह सजग तथा सचेत रहना है। (दीर्घ विराम) सोना नहीं है, आप गिनती गिन रहे हैं, इसके प्रति पूर्ण सजगता बनी रहे। (दीर्घ विराम) अभ्यास करते जाइये। गले में आती-जाती श्वास-प्रश्वास को ही गिनते और देखते जाइए। (दीर्घ विराम)

अब गिनती गिनना रोक दीजिए और नासिका छिद्रों में चेतना को ले आइए। जो श्वास-प्रश्वास आप नाक से ले रहे हैं और छोड़ रहे हैं उसके प्रति सजग हो जाइए। (विराम) नासिका से आती-जाती श्वास की गति पर एकाग्रता बनाइए और पहले की तरह 27 से 1 तक की गिनती गिनते जाइए। पूर्ण सजग रहिए, गिनती गिनते जाइए। गलती नहीं होने पाये। (दीर्घ विराम) इस प्रकार अभ्यास करते जाइए...(दीर्घ विराम)

काल्पनिक अवलोकन - अब श्वास गिनना बंद कीजिए। अब हम श्वास की सजगता का त्याग कर मानस दर्शन करेंगे। (विराम) हम आपको विभिन्न वस्तुओं और प्रतीकों के नाम बोलेंगे। आपको उन प्रतीकों का दर्शन अपने अनुभव सजगता, भावना, कल्पना, आदि सभी स्तरों पर जितना सम्भव हो सके, करना है। (विराम) यदि आप दृश्य देखने में समर्थ हो जाते हैं तो आपको विश्राम अच्छी तरह से प्राप्त होगा। यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो आपको कुछ अधिक अभ्यास की आवश्यकता होगी। इसलिए सजगता को बढ़ायें। (विराम) ।

जलती हुई मोमबत्ती...जलती हुई मोमबत्ती...जलती हुई मोमबत्ती... रेगिस्तान...असीम रेगिस्तान...असीम रेगिस्तान...मिश्र के पिरामिड... मिश्र के पिरामिड...भयंकर वर्षा...भयंकर वर्षा...भयंकर वर्षा...बर्फ से ढंके हुए पहाड़...ढंके हुए पहाड़...ढंके हुए पहाड़...सूर्योदय के समय का सुन्दर दृश्य...सूर्योदय के समय का सुन्दर दृश्य...सूर्योदय के समय का सुन्दर दृश्य...कब्र के पास कफन...कब्र के पास कफन...कब्र के पास कफन...सूर्यास्त के समय उड़ते पक्षी...सूर्यास्त के समय उड़ते पक्षी...सूर्यास्त के समय उड़ते पक्षी...लाल बादल चल रहे हैं...लाल बादल चल रहे हैं...लाल बादल चल रहे हैं...रात में आकाश में तारे...रात में आकाश में तारे...रात में आकाश में तारे...पूरा चन्द्रमा...पूरा चन्द्रमा... पूरा चन्द्रमा...मुस्काते हुए बुद्ध की प्रतिमा...मुस्काते हुए बुद्ध की प्रतिमा...मुस्काते हुए बुद्ध की प्रतिमा...समुद्री हवा...समुद्री हवा...समुद्री हवा... लहरें रेतीले किनारे को काट रही हैं...लहरें रेतीले किनारे को काट रही हैं...लहरें रेतीले किनारे को काट रही हैं...अनन्त तूफानी समुद्र...अनन्त तूफानी समुद्र...अनन्त तूफानी समुद्र।

संकल्प - अब अपने संकल्प को दोहराइये...उसी संकल्प को दोहराइये जिसे आपने अभ्यास के पूर्व में लिया था। संकल्प बदलना नहीं है... पूर्ण जागरुकता के साथ अपने संकल्प को तीन बार दोहराइये। उसके साथ ही आपकी भावना भी प्रबल होनी चाहिये। (विराम)

समाप्ति - सभी प्रयासों को शिथिल करिये। अपने मन को बहिर्मुखी बनाइये। अपनी श्वास-प्रश्वास के प्रति सजग बनिये। (विराम) आपका शरीर पूर्ण विश्राम की स्थिति में जमीन पर लेटा हुआ है। आप धीरे-धीरे शान्तिपूर्वक श्वास ले रहे हैं। (विराम) अपनी मानसिक चेतना को सिर से पैर तक घुमाइए। अब मन ही मन ओ...ऽ...ऽ..ऽ..म् बोलिये। ॐ का उच्चारण दो बार और कीजिए। (विराम) जमीन और अपने लेटे हुए शरीर के प्रति सजग हो जाइये। मानसिक रूप से कमरे को देखिये, अपने चारों ओर के वातावरण के प्रति जागरूक हो जाइए। (विराम) कुछ समय तक शांत लेटे रहिए, अपनी आँखें बन्द ही रखिए। (विराम) अब अपने शरीर को धीरे-धीरे हिलाइये और पूरे शरीर को तानिये। जल्दबाजी नहीं कीजिये। (विराम) जब आप पूरी तरह जागरूक हो जायें तो धीरे से उठकर बैठ जाइये और अपनी आँखें खोल लीजिये। योग निद्रा का अभ्यास अब पूरा होता है।

हरि ॐ तत्सत्

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