योग >> योग निद्रा योग निद्रास्वामी सत्यानन्द सरस्वती
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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।
प्रकारान्तर - संक्षिप्त अभ्यास योग निद्रा का अभ्यास अपने
कार्य-स्थल पर या सोने के पूर्व अल्प विश्राम के लिए भी किया जा सकता है।
कार्य-स्थल पर अल्प विश्राम के लिए - विश्राम के लिये योग
निद्रा में सबसे आवश्यक तत्त्व अपनी चेतना को घुमाना तथा श्वास को गिनना है।
इसका अभ्यास आसानी से कार्यालय या घर में जब भी 5 से 10 मिनट का अवकाश हो,
स्वयं किया जा सकता है। श्वास की गिनती का अभ्यास आप आवश्यकतानुसार नाभि, छाती,
गले या नाक से कर सकते हैं। कार्यालय या घर पर अथवा जहाँ कहीं थोड़ा एकान्त मिल
सके, वहाँ अभ्यास के लिए योग निद्रा का एक उदाहरण यहाँ दिया जा रहा है।
दरवाजा बन्द कर दीजिए, बत्ती बुझा दीजिए, पर्दे गिरा दीजिए। अपने आप मानसिक रूप
से एक रूपरेखा बना लीजिये कि मुझे इतने समय के अन्दर अपनी योग निद्रा समाप्त कर
लेनी है (जैसे 10 मिनट)। कम्बल पर या जमीन पर आँखें बन्द कर लेट जाइए। शवासन
में कुछ समय तक शांत लेटे रहिये और शरीर को शिथिल करना प्रारम्भ कीजिए। अभी
आपका मन बाहरी वातावरण में घूम रहा है। बाहर से आने वाली आवाजों को सुनिये।
आवाजों का विश्लेषण या उन्हें पहचानने का प्रयास नहीं करना है। केवल सजग बनिये
कि बाहर से कुछ आवाजें आ रही हैं। अब अपने ध्यान को शरीर पर ले आइए, गहरी श्वास
लीजिए और जैसे ही आप श्वास बाहर छोड़ते हैं, महसूस कीजिए कि आपका शरीर शिथिल
होता जा रहा है। अपनी चेतना को शरीर और जमीन के सम्पर्क स्थानों पर ले जाइये और
कुछ समय तक जमीन और शरीर के स्पर्श को महसूस कीजिये।
अब अपनी चेतना को जल्दी-जल्दी शरीर के सभी भागों पर घुमाइये। सम्पूर्ण शरीर में
दायीं ओर, बायीं ओर, पीछे, सामने, मुख्य भागों में। अपनी स्वाभाविक श्वास के
प्रति सजग हो जाइए। अपनी चेतना को नासिका (अथवा गले, छाती या नाभि) से आती-जाती
श्वास पर केन्द्रित कीजिए। कुछ समय तक आप इसके प्रति जागरूक रहिए। अब 11 से 1
तक उल्टी गिनती गिनने का अभ्यास कीजिए (यदि समय हो तो 27 से 1 तक गिनती गिनिए)।
अब गिनना बन्द कीजिए और एक लम्बी गहरी श्वास लीजिए। कुछ समय तक शांत लेटे रहिए
और शरीर को धीरे से तानिए। अब आँखें खोलिये और उठ जाइये। यह एक पूरा अभ्यास है।
योग निद्रा का अभ्यास बैठकर अथवा खड़े होकर भी किया जा सकता है। किन्तु इस
स्थिति में उसका सुझाव नहीं दिया जाता है। इस प्रकार के शिथिलीकरण की प्रमुख
विशेषता है पूरे शरीर में चेतना को घुमाना और इसके उत्तम परिणाम लेटी हुई
अवस्था में ही प्राप्त होते हैं। यदि शीघ्र मानसिक शिथिलता की जरूरत है, जैसे,
ऑफिस में काम करते समय, रसोई में खाना बनाते समय या बस में सफर करते समय, जहाँ
लेट पाना सम्भव नहीं, बैठकर शिथिलीकरण का अभ्यास करना हो तब केवल श्वासों के
प्रति सजगता का अभ्यास बेहतर है। विशेषतः एकान्तर नासिका श्वसन (अनुलोम-विलोम)
का अभ्यास किया जा सकता है।
बैठकर योग निद्रा का अभ्यास करने की विधि उपर्युक्त अभ्यास की तरह ही है। एक
बार पुन: अपने शरीर को स्थिर करके ढीला छोड़ दीजिए। फिर शीघ्रता से जाँच कीजिए
कि शरीर के कुछ विशेष भागों में किसी प्रकार का तनाव तो नहीं और उनको शिथिल
करने का प्रयास कीजिए। क्या आपकी भौंहे तनी हुई हैं? क्या आपकी गर्दन कड़ी है?
क्या आपकी मुट्ठियाँ बंधी हुई हैं? आंतरिक रूप से अपने शरीर की मांसपेशियों को
तानिए, फिर तुरन्त ढीला छोड़ दीजिए। इस क्रिया को दुहराइए।
अब अपनी नाक से आती-आती श्वास को देखिए और कुछ क्षणों तक इस क्रिया के प्रति
सजग बने रहिए। कल्पना कीजिए कि आप एकान्तर नासिका श्वसन का अभ्यास कर रहे हैं,
श्वास एक नासिका से अन्दर जा रही है और दूसरी नासिका से बाहर आ रही है। जैसे -
बायीं से अन्दर, दायीं से बाहर, दायीं से अन्दर, बायीं से बाहर। इसी प्रकार
श्वास अन्दर लेते तथा बाहर छोड़ते समय 27 से 1 तक (अथवा उपलब्ध समय के अनुसार
जितनी संख्या तक गिनना आपको ठीक लगे) उलटी गिनती गिनते जाइए। जितनी देर चाहें
इस अभ्यास को कर सकते हैं। जब आप इसे समाप्त करना चाहें तो गिनती गिनना बन्द कर
अपने शरीर के प्रति सजग हो जाइए। उठने से पहले गहरी श्वास लीजिए और अपने को
तानिए, फिर उठकर बैठ जाइए। यह अभ्यास पूरा हुआ।
निद्रा के पूर्व - अनिद्रा के रोग या अति उत्तेजना की स्थिति
में योग निद्रा का अभ्यास नींद लेने के लिये भी किया जा सकता है। कमरे की बत्ती
बन्द कर दीजिए। बिस्तर पर शवासन में लेट जाइए। सिर के नीचे छोटा-सा तकिया रख
लीजिए, वह बहुत ऊँचा न हो। अपने हाथों को पूरी तरह शिथिल कीजिए। अच्छी तरह
आरामदायक स्थिति में आ जाइए। हथेलियों की दिशा नीचे की ओर भी कर सकते हैं। यदि
आपका बिछावन इतना नरम हो कि शरीर उसमें धंस जाता हो, तो उसके नीचे लकड़ी का
तख्त रख लेना बेहतर रहेगा। यह अभ्यास भी पूर्व के संक्षिप्त अभ्यास की तरह ही
है। बाहर की आवाजों को सुनने से अभ्यास शुरू करेंगे। अब अपनी सजगता को शरीर और
बिछावन के मिलन-बिन्दुओं पर ले जाइए। इस प्रकार अपनी चेतना को क्रम से इन मिलन
बिन्दुओं पर ले जाते हुए पूरे शरीर में दो-तीन बार घुमाइये। इतने अभ्यास से
सामान्यतः आपको नींद आ ही जायेगी। यदि आवश्यक हो तो मानसिक रूप से एकान्तर
नासिका श्वसन का अभ्यास करेंगे और श्वासों के साथ 54 से 1 तक उल्टी गिनती
गिनेंगे। यदि फिर भी नींद नहीं आती हो तो अच्छा होगा कि सोने से पहले कुछ
अभ्यास, जैसे, 15 मिनट तक सूर्य नमस्कार कीजिए या टहलिये।
तैयारी - योग निद्रा के लिये तैयार हो जाइए। शवासन में लेट
जाइए। अपने आपको जितना सम्भव हो सके उतनी आरामदायक स्थिति में लाइये। पैर
एक-दूसरे से दूर रहें। दोनों हाथ शरीर के बगल में थोड़ी दूरी पर तथा हथेलियाँ
ऊपर की ओर खुली रहें। अपने शरीर, कम्बल आदि को अच्छी तरह से व्यवस्थित कर
लीजिये जिससे आपको योग निद्रा के अभ्यास में शरीर को हिलाना न पड़े और कोई
शारीरिक असुविधा न हो। आँखें बन्द कर लीजिए और उन्हें बन्द ही रखिये। अब योग
निद्रा में केवल आप सुनने और विचार करने की क्रिया के प्रति जागरूक रहेंगे।
इसमें आप श्रवणेन्द्रिय तथा चेतना के स्तर पर कार्यरत रहेंगे। नींद में आप जो
स्वप्न देखते हैं उन पर आपका नियंत्रण नहीं रहता है, परन्तु योग निद्रा में आप
स्वप्नों को उत्पन्न करते हैं। मानसिक रूप से स्वयं से कहिये, 'मैं सोऊँगा
नहीं। मैं केवल निर्देशों को सुनूँगा।' मन में इसे दोहराइए...। अब आप शांत तथा
स्थिर हो जाइये...। एक लंवी तथा गहरी श्वास लीजिए। जैसे ही आप श्वास लेते हैं;
अपने आपको पूर्ण विश्राम की स्थिति में ले आइए...। जैसे ही आप श्वास बाहर
निकालते हैं; मानसिक रूप से कहिए, 'मैं शिथिल हो रहा हूँ...।'
विश्राम - अपनी सजगता को दूर से आने वाली आवाजों पर ले जाइये।
अधि कतम दूरी से आने वाली आवाज, जिसे आप सुन सकते हैं, उसके प्रति सजग बनिए।
अपने कानों को एकदम चौकन्ना कर लीजिए। दूर से आती हुई आवाजों के प्रति कुछ समय
तक सजग बने रहिए। एक आवाज से दूसरी आवाज की ओर ध्यान को लगाइए, बिना जाने कि
आवाज किस चीज की है, केवल आवाज को सुनते जाइए। धीरे-धीरे अपना ध्यान पास की
आवाज पर लगाते जाइए। आस-पास की आवाज को ही सुनते जाइए। अब अपनी सजगता को कमरे
की ओर ले आइए। बन्द आँखों से अपने कमरे की दीवारों, छत और जमीन को देखिए। आपका
लेटा हुआ शरीर, अपने शरीर को जमीन पर लेटा हुआ देखिए। अपनी शारीरिक स्थिति के
प्रति सजग बनिये। आपका शरीर जमीन पर लेटा है, आपकी पूरी सजगता आपके शरीर की
स्थिरता पर रहे। शरीर बिल्कुल ही शांत तथा स्थिर है। अपने शरीर को देखिए, पूरी
चेतना के साथ देखिए। आपका शरीर जमीन पर लेटा हुआ है। अब आप अपने शरीर के उन
भागों को देखिए जो जमीन से स्पर्श कर रहे हैं। अपनी स्वाभाविक श्वास-प्रश्वास
के प्रति सजग बनिये। श्वास गहरी, स्वाभाविक और सहज है। इस श्वास पर मन को
एकाग्र कीजिए। अब हम योग निद्रा का अभ्यास प्रारंभ करने जा रहे हैं। आप मन ही
मन कहिये, "मैं योग निद्रा का अभ्यास करने जा रहा हूँ, मैं सोऊँगा नहीं। मुझे
नींद नहीं लेनी है, मैं योग निद्रा का अभ्यास कर रहा हूँ।"
संकल्प - अब संकल्प लेने का समय है। अपने संकल्प को स्पष्टता
से पूर्ण आत्मविश्वास और सजगता के साथ तीन बार दोहराइए।
चेतना को घुमाना - अब अपनी चेतना को शरीर के विभिन्न भागों
में घुमायेंगे। जितनी शीघ्रता से सम्भव हो उतनी शीघ्रता से चेतना को शरीर के एक
भाग से दूसरे भाग में घुमायेंगे। मेरे बाद शरीर के उन भागों का नाम मानसिक रूप
से दोहराना है, साथ ही साथ उस भाग के प्रति सजग होना है। यह अभ्यास हमेशा शरीर
के दायें हाथ से शुरू करते हैं।
दायाँ भाग - दायें हाथ का अँगूठा, पहली अंगुली, दूसरी अंगुली,
तीसरी अंगुली, चौथी अंगुली, हथेली, कलाई, केहुनी, कंधा, पुठ्ठा, कमर, नितम्ब,
दायीं जाँघ, घुटना, पिंडली, टखना, एड़ी, तलवा, दायाँ पंजा, अंगूठा, पहली
अंगुली, दूसरी अंगुली, तीसरी अंगुली, चौथी अंगुली...।
बायाँ भाग - बायें हाथ का अँगूठा, पहली अंगुली, दूसरी अंगुली,
तीसरी अंगुली, चौथी अंगुली, हथेली, हथेली के पीछे का भाग, कलाई नीचे की भुजा,
केहुनी, ऊपर की भुजा, कंधा, बगल, कमर, नितम्ब, बायीं जाँघ, घुटना, पिंडली,
टखना, एड़ी, तलवा, बायें पैर का पंजा, अँगूठा, पहली अंगुली, दूसरी अंगुली,
तीसरी अंगुली, चौथी अंगुली...।
पीठ - दायाँ कन्धा, बायाँ कन्धा, दायाँ पुट्ठा, बायाँ
पुट्ठा, दायाँ नितम्ब, बायाँ नितम्ब, रीढ़ की हड्डी, पूरी पीठ, पूरी पीठ...।
सामने - सिर का ऊपर का भाग, मस्तक, दायीं भौंह, बायीं भौंह, भ्रूमध्य, दायी
आँख, बायीं आँख, दायाँ कान, बायाँ कान, दायाँ गाल, बायाँ गाल, दाहिना नासिका
छिद्र, बायाँ नासिका छिद्र, नासिकाग्र, ऊपरी होठ, निचला होठ, ठुड्डी, गला,
दायीं छाती, बायीं छाती, छाती के बीच का भाग, नाभि, पेट, पेट का निचला भाग...।
मुख्य अंग - पूरा दायाँ पैर, पूरा बायाँ पैर, दोनों पैर एक
साथ, पूरा दायाँ हाथ, पूरा बायाँ हाथ, दोनों हाथ एक साथ, पूरी पीठ, पूरा सामने
का भाग, पूरा सिर एक साथ, पैर, हाथ, पीठ, सामने का भाग, सम्पूर्ण शरीर,
सम्पूर्ण शरीर, सम्पूर्ण शरीर, सम्पूर्ण शरीर एक साथ। इसी प्रकार से
दो आवृत्तियाँ और कीजिए...।
शरीर, जमीन एवं उनके स्पर्श बिन्दुओं पर सजगता - शरीर में
एक-सी ही चेतना बनाये रखिए। इसके साथ ही साथ शरीर ने जो स्थान घेर कर रखा है,
उसके प्रति भी अपनी चेतना को बनाये रखिए। शरीर के प्रति सजग रहिए, शरीर ने जो
जगह घेर रखी है, उसके प्रति भी सजग रहिए। पूरे शरीर के साथ जमीन का भी ध्यान
रखिये, साथ ही साथ शरीर के वे भाग जो जमीन से स्पर्श कर रहे हैं उनके प्रति भी
सजग रहिए। अपने सिर के उस भाग को देखने की कोशिश कीजिए जो जमीन को छू रहा है।
पुढे तथा जमीन, केहुनी और जमीन, हाथ का पीछे का हिस्सा और जमीन, नितम्ब और
जमीन, जाँघ और जमीन, पिंडलियाँ और जमीन, एड़ी और जमीन, शरीर के जमीन से छूने
वाले सभी अंगों को ध्यान से देखिए। साथ ही साथ जमीन की अनुभूति भी कीजिए।
अलग-अलग हर भाग के स्पर्श की अनुभूति कीजिए। सोइये नहीं, अपनी पलकों की ओर
चेतना को ले आइए, ऊपर-नीचे की पलकें जहाँ परस्पर मिलती हैं उस बिन्दु का अनुभव
कीजिए। अपनी चेतना को पलकों के बीच में ले आइये, उसके बाद होठों पर। जहाँ दोनों
होठ परस्पर मिलते हैं, वहाँ अपने ध्यान को लगाये रखिए। होठों के बीच में चेतना
को लगाये रखिए...।
श्वास - अब अपनी चेतना को होठों से श्वास की ओर ले जाइए। अपना
ध्यान स्वाभाविक रूप से आती-जाती श्वासों पर लाइए। श्वास के आवागमन को गले से
नाभि तक के मार्ग में महसूस कीजिए। श्वास लेते समय यह नाभि से गले तक ऊपर उठती
है तथा श्वास छोड़ते समय गले से नाभि तक नीचे उतरती है। नाभि से गले ओर गले से
नाभि तक श्वासों के प्रति पूरी तरह सजग बनिये। प्रयास नहीं करना है, केवल सजग
बनिये। अपनी सजगता को बनाये रखते हुए श्वासों के साथ उल्टी गिनती को जोड़िये।
जैसे, 54 से 1 या 27 से 1 तक की उल्टी गिनती। गले से नाभि तक श्वासों के आवागमन
के साथ गिन सकते हैं - मैं श्वास अन्दर ले रहा हूँ 54; मैं श्वास छोड़ रहा हूँ
54, मैं श्वास ले रहा हूँ 53; मैं श्वास छोड़ रहा हूँ 53, इस प्रकार 54 से 1 तक
वापस आइए। आप 27 से 1 तक और 1 से 27 तक भी गिनती गिन सकते हैं। श्वास लेते समय
नाभि से गले तक और छोडते समय गले से नाभि तक इसी प्रकार गिनते चलिए। परी चेतना
श्वास और श्वास की सजगता पर रहेगी। श्वास धीमी और शांत है। गिनती जारी रखिये।
संवेदना - मानसिक कल्पना भारीपन - शरीर में भारीपन की भावना
को जगाइए, भारीपन की भावना जगाइए, शरीर के प्रत्येक भाग में भारीपन की भावना के
प्रति सचेत रहिए, भारीपन की भावना इतनी गहरी कर लीजिए कि जैसे आप जमीन में
धंसते जा रहे हैं। भारीपन के प्रति जागरूकता बनाए रखिए, भारीपन के प्रति सचेत
रहिए...।
हल्कापन - अब अपने अन्दर हल्केपन की भावना कीजिए, हल्केपन के
भाव को जगाइए। हल्केपन व भारहीनता का अनुभव कीजिए। शरीर का प्रत्येक भाग हल्का
और भारहीन हो रहा है। ऐसा अनुभव कीजिए कि आपका शरीर इतना हल्का हो गया है कि वह
जमीन के ऊपर तैर रहा है। इस प्रकार से हल्केपन की भावना के प्रति सचेत
बने रहिए...।
ठण्ढ - अब अपने शरीर में ठण्ढक का अनुभव कीजिए। कड़ी ठण्ड के
मौसम के अनुभव को जगाइए। कल्पना कीजिए कि आप अत्यधिक ठण्ड के मौसम में जमीन पर
चल रहे हैं। अपने पैरों में ठण्ढ का अनुभव कीजिए। आपका पूरा शरीर ठण्ड से ठिठर
रहा है। इस ठण्ड के प्रति सजग रहिए। ठण्ड के प्रति सजगता...!
गर्मी - गर्मी की भावना को जगाइए, गर्मी के मौसम की अनुभूति
कीजिए। आपका पूरा शरीर गर्म है। सारा शरीर गर्म है, आप सब तरफ गर्मी की अनुभूति
कर रहे हैं। कल्पना कीजिए कि आप कड़ी धूप में खड़े हैं, पूरे शरीर पर धूप लग
रही है, शरीर के चारों ओर धूप ही धूप है, भयंकर गर्मी लग रही है, इस गर्मी के
प्रति सजग रहिए, सचेत रहिए...।
दर्द- अब दर्द की अनुभूति कीजिए, अपने दर्द के अनुभव को याद
कीजिए और उस पर ध्यान एकाग्र कीजिए। आपके जीवन में कभी कोई मानसिक या शारीरिक
दर्द हुआ हो तो उसकी अनुभूति को ध्यान में लाइए... खुशी - जीवन में किसी खुशी
के अवसर को याद कीजिए। किसी भी प्रकार की खुशी हो; भौतिक या मानसिक, उस समय की
याद को चेतना में लाइए, उसे सजीव बनाइए। अब स्वयं का निरीक्षण कीजिए कि आप जगे
हुए हैं या आपको नींद आ रही है। यह निश्चय कीजिए कि आप सो नहीं रहे हैं, पूरी
तरह से जागरूक हैं, अपने आप से कहिए कि मैं जाग रहा हूँ...।
चिदाकाश - अब अपने मन को बन्द आँखों के सामने के स्थान में ले
आइये, इसे हम चिदाकाश कहते हैं। कल्पना कीजिए कि आपके सामने एक पारदर्शक फिल्म
है जिसमें आप अनन्त आकाश देखते हैं। जहाँ तक आपकी दृष्टि जाती है, आप जगह का
विस्तार ही विस्तार देखते हैं। इस अंधेरी जगह में मन को एकाग्र कीजिए और जो कुछ
भी इसमें दिखाई देता है, वह आपके मन की ही स्थिति है। इस चिदाकाश में देखते
जाइए। हो सकता है, आपको पूर्व संस्कार या भावी संकेत भी दिखाई पड़ें। उनमें लीन
मत होइए, लेकिन साक्षी भाव से देखते जाइए और सचेत, जागरूक रहिए...।
बगीचे या मंदिर का अवलोकन - कल्पना कीजिए कि आप प्रात: किसी
बगीचे में घूम रहे हैं। सूर्योदय नहीं हुआ है और उस बगीचे में एकमात्र आप ही
हैं। यह बगीचा बहुत सुन्दर और एकदम शांत है। उस ओस वाली घास पर चलिए। पक्षियों
की चहक और उनकी मधुर बोली को सुनिए जो नये दिन की अगवानी में बोल रहे हैं। उस
बगीचे में सुन्दर फूल लगे हैं - गुलाबी, पीले, लाल। गुलाब की खुशबू दूर तक महक
रही है और उन फूलों की पंखुड़ियों पर जो ओस की बूंदें हैं, उन्हें आप देख रहे
हैं। पास में ही एक तालाब है जिसमें मछलियाँ हैं। ये मछलियाँ तैर रही हैं। उनका
इस प्रकार से तैरना देखते जाइए। आप सुन्दर पेड़ों के नीचे से गुजर रहे हैं। कुछ
पेड़ पत्तेहीन हैं और कुछ पेड़ों पर पत्तियाँ हैं। बड़े-बड़े, ऊँचे-ऊँचे पेड़ों
के नीचे, बीच से आप चलते जा रहे हैं। थोड़ी दूरी पर आप देखते हैं कि पेड़ों के
बीच में एक साफ जगह है जिसके बीचों-बीच एक सुन्दर मन्दिर है। उसके चारों ओर
बत्तियाँ लगी हुई हैं, उस द्वार पर जाइए, यह ठण्ढा है. मन्दिर के अन्दर धुंधला
प्रकाश है। आप अन्दर जाते हैं तो आपको कई संतों के चित्र दीवार पर लगे दिखाई
देते हैं। उस मन्दिर की जमीन पर बैठ जाइए। अपनी आँखें बन्द कर लीजिए और स्थिर
हो जाइए। उस स्वस्थ, शान्त एवं आध्यात्मिक वातावरण में शान्ति का अनुभव कीजिए।
कल्पना कीजिए कि बाहर दूर से कोई हल्की-सी आवाज सुनाई देती है। उस मन्दिर में
ध्यान का अभ्यास करते जाइए। जब तक वहाँ आपको शान्ति मिलती है तब तक वहीं बैठे
रहिए।
चिदाकाश धारणा - अब अपनी चेतना को वन्द आँखों के सामने ललाट
पर चिदाकाश में ले आइए। बन्द आँखों से उसमें देखने की कोशिश कीजिए। वास्तविक
रूप से तो यह जगह आपके माथे में निहित है। इसलिए इसे विस्तृत करने के लिये
थोड़ा-सा ऊपर की ओर देखना चाहिए, आँखों पर जोर या तनाव न पड़े। उस अंधेरी कोठरी
में सावधानी से देखिए। साक्षी भाव से अलग होकर देखिए। उसमें अपने को लीन नहीं
कीजिए। चिदाकाश में शान्त भाव से देखते जाइए। यदि कोई दृश्य, रंग या रूप दिखाई
देता है तो सजग होकर उसे देखते जाइए। यदि विचार आते हैं तो उन्हें भी साक्षी
भाव से देखते जाइए। साथ ही साथ उस अंधेरी जगह को भी सजग होकर देखते जाइए।
संकल्प - अपने संकल्प को याद कीजिए। संकल्प वही होना चाहिए
जिसे आपने प्रारम्भ में किया था। उसी भावना से अपने संकल्प को तीन बार दोहराइए।
समाप्ति - अपनी श्वास के प्रति सजग बनिए। अपनी स्वाभाविक सहज
श्वास के प्रति सजग रहिए। श्वास के प्रति जागरूक रहिए और विश्राम की स्थिति के
प्रति भी सजग रहिए, शारीरिक शिथिलीकरण के प्रति चेतना बनाए रखिए। अपने शरीर के
प्रति सजग रहिए। अपनी भुजा और पैरों के प्रति, और जमीन पर लेटे अपने पूरे शरीर
के प्रति सजग बनिये। शरीर जिन बिन्दुओं पर जमीन का स्पर्श कर रहा है, उनके
प्रति सजग बनिये। अब कमरा, छत, उसकी दीवारों को मानसिक रूप से देखिए। कमरे के
अन्दर और बाहर के शोरगुल को सुनते जाइए। अपने मन को पूरी तरह से बाहरी आवाजों
की ओर लगाइए। कुछ समय तक शान्त, आँखें बन्द करके पड़े रहिए। अव शरीर को हिलाइए
व तानिए, कुछ समय लगाइए, जल्दी नहीं कीजिए। जब आप पूरी तरह से यह जान लें कि आप
अच्छी तरह से जाग चुके हैं तब धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलिए और उठ कर बैठ जाइए।
हरि ॐ तत्सत्
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