नाटक-एकाँकी >> दरिंदे दरिंदेहमीदुल्ला
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आधुनिक ज़िन्दगी की भागदौड़ में आज का आम आदमी ज़िन्दा रहने की कोशिश में कुचली हुई उम्मीदों के साथ जिस तरह बूँद-बूँद पिघल रहा है उस संघर्ष-यात्रा का जीवन्त दस्तावेज़ है यह नाटक
अपना-अपना दर्द
अ.भा. प्रतियोगिता में 1973-74 में प्रथम पुरस्कार प्राप्त एकांकी
पात्र-परिचय
मधु: अठारह वर्षीय अनुभवहीन युवती। जीवन के प्रति छटपटाहट, उदासीनता और
घुटन।
बिहारी: पैंतीस वर्ष का घाघ व्यक्ति। चेहरे पर कांइयापन।
मालती: अधेड़ उम्र की सन्तानहीन विधवा, जिसे अभी भी अपने सुन्दर होने का अहसास है। शराब की इतनी शैक़ीन कि पीने के बाद होश ही नहीं रहता कि उसके साथ क्या हो रहा है, क्या किया जा रहा है।
वीरेन: डॉक्टर, जिसे उसकी पत्नी छोड़कर चली गयी है। अपने को टूटा हुआ और अकेला महसूस करता है। फिर भी पत्नी से आज भी लगाव है। पत्नी के साथ बिताये क्षणों की मार्मिकता को याद करके जीता है।
बिहारी: पैंतीस वर्ष का घाघ व्यक्ति। चेहरे पर कांइयापन।
मालती: अधेड़ उम्र की सन्तानहीन विधवा, जिसे अभी भी अपने सुन्दर होने का अहसास है। शराब की इतनी शैक़ीन कि पीने के बाद होश ही नहीं रहता कि उसके साथ क्या हो रहा है, क्या किया जा रहा है।
वीरेन: डॉक्टर, जिसे उसकी पत्नी छोड़कर चली गयी है। अपने को टूटा हुआ और अकेला महसूस करता है। फिर भी पत्नी से आज भी लगाव है। पत्नी के साथ बिताये क्षणों की मार्मिकता को याद करके जीता है।
मंच-व्यवस्था
मंच चार भागों में विभक्त। मंच पर नितान्त आवश्यक वस्तुएँ।
भाग ‘क’: मालती का ड्राइंगरूम। सोफ़ा। कुरसियाँ।
भाग ‘ख’: पार्क। हरी दूब। लम्बी बेंच। फूलों के गमले।
भाग ‘ग’: साधारण कमरा।
भाग ‘घ’: अस्पताल का कमरा। स्ट्रेचर। बेड।
[मंच-व्यवस्था इस प्रकार कि कोई भाग किसी अन्य भाग को दर्शकों की दृष्टि से अलग नहीं करता। जब एक भाग में कार्य-व्यापार चल रहा हो, तो अन्य तीन भागों में प्रकाश नहीं होता।]
[परदा उठने पर-मंच पर एकदम अँधेरा। भाग ‘क’ में प्रकाश आता है। एक युवती बैलबॉटन पहने जॉज की धून पर नृत्य कर रही है। अचानक दरवाज़े की घण्टी बजती है। युवती नृत्यु-मुद्रा में अदृश्य दरवाज़ा खोलती है।]
मधु: तुम !
बिहारी: हाँ, मधु। तुम्हें मुझे यहाँ आया देखकर ताज्जुब हो रहा है ?
मधु: नहीं बिहारी बाबू, बिल्कुल नहीं। मैं जानती थी, तुम आण्टी से मिलने आओगे। आज छुट्टी है न।
(रिकॉर्डर पर बजता जॉज संगीत बन्द करती है।)
बैठिए ! इस तरह घूर क्यों रहे हैं ?
बिहारी: मालती कहाँ है ?
मधु: आण्टी बाहर गयी हैं ? शायद अभी लौट आयें। नहीं भी।
बिहारी: तुम बेहद खुश दिखाई दे रही हो ?
मधु: अर्थहीन भटकाव में खुशी का कोई स्थान नहीं। जी बहला लेती हूँ जब आण्टी घर में नहीं होतीं।
बिहारी: ऐसा क्यों है ?
मधु: मैं डायन जो हूँ, उनके शब्दों में।
बिहारी: डायन ?
मधु: मामा अमेरिका में रहते थे। अच्छा-खासा बिज़नेस था उनका। मुझे गोद लिया उन्होंने। मैं मुम्बई से अमेरिका गयी। अचानक कार-दुर्घटना में उनकी मौत हो गयी। आण्टी उनका सब कुछ बटोरकर यहाँ वापस हिन्दुस्तान चली आयीं। बम्बई हेडक्वार्टर बनाया। मुझे मामा ने गोद लिया, फिर भी आण्टी हरेक को अपने लिए कहती हैं- सन्तानहीन विधवा।
बिहारी: छोड़ो इन बातों को।
मधु: मेरे लिए इन बातों का बड़ा महत्त्व है।
बिहारी: आजकल मालती परेशान क्यों है ?
मधु: ठीक से कह नहीं सकती।
बिहारी: क्यों ?
मधु: मुझसे सीधे मुँह बात नहीं करती। दरअसल उन्हें मुझसे बात करने को वक़्त ही कहाँ मिलता है। दिन-भर घर से बाहर रहने का अच्छा बहाना है उनके पास। घर का खर्च चलाने के लिए उन्हें नौकरी करनी पड़ती है। शाम को क्लब गये बिना उन्हें चैन नहीं। शराब पीने की लत। रात एक बजे से पहले घर नहीं लौटती। और जब लौटती हैं, तो शराब के नशे में इतनी चूर कि उन्हें घर तक लानेवाले को अकसर उन्हें उठाकर लाना पड़ता है। रात को उनके सोनेवाले कमरे में अकसर झाँककर देखा है- उन्हें होश नहीं रहता कि उनके साथ क्या हो रहा है, क्या किया जा रहा है- सुबह देर से उठती हैं और खोयी-खोयी दफ़्तर चली जाती हैं। ऐसे में बात करने का मौक़ा ही नहीं मिलता।
बिहारी: लेकिन तुम्हारे मामा तो काफी पैसा छोड़ गये होंगे। तुम कहती हो, अच्छा-खासा बिज़नेस था उनका।
मधु: घर का खर्च पूरा करने के लिए आण्टी को नौकरी की इतनी ज़रूरत नहीं शराब का खर्च निकालने की।
बिहारी: ओह ! यानी तुम अपनी आण्टी से और आण्टी तुमसे दुखी हैं। मधु, यहाँ मेरे पास बैठो सोफ़े पर। तुम बिल्कुल फ़िक्र मत करो। मैं सब ठीक कर दूँगा।
बिहारी: प्यार करता हूँ ?
मधु: हाँ।
बिहारी: मुझे उस विधवा स्त्री से बस लगाव-भर है। प्यार नहीं। लगाव भी इसीलिए कि ऐसी औरतों से अदातन मुझे हमदर्दी है।
मधु: आण्टी के सामने कह सकोगे यह ?
बिहारी: अभी नहीं।
मधु: क्यों ?
बिहारी: क्योंकि मालती भावुक है। उसे यह जानकर धक्का लगेगा। इससे मुझे तकलीफ़ होगी।
मधु: बेचारी तुम्हारे इस लगाव के सहारे अपनी ज़िन्दगी के दिन काट रही हैं।
बिहारी: मधु, यू आर ए.फाइन गर्ल !
मधु: आण्टी ?
बिहारी: मालती को सहारा चाहिए। मैं हूँ उसके लिए।
मधु: आण्टी बेहद भावुक हैं।
बिहारी: भावुक कौन नहीं होता। मैं भी हूँ। सभी होते हैं। न भी होते हों।
मधु: मेरे लिए तो पहेली है यह कि भावुक होना अच्छा है या बुरा; या इन दो समानान्तर सीमा रेखाओं के बीच इन्सानी अहसास की कीमत क्या है ?
बिहारी: आज ऐसे सवाल क्यों उठा रही हो ?
मधु: इसलिए कि एक सवाल कई-कई सवालों की तरफ़ ले जाता है।
बिहारी: तुम मुझपर विश्वास कर सकती हो। मैं तुम्हें धोखा नहीं दूँगा। तुम मुझे अच्छी लगती हो, मधु। बहुत अच्छी।
मधु: बाहर बरामदे में क़दमों की आहट हुई है। शायद आण्टी आ रही हैं। हाँ, वहीं हैं शायद।
(मधु बिहारी के पास के उठ खड़ी होती है। मालती का प्रवेश।)
बिहारी: आओ मालती। आज छुट्टी के दिन भी दोपहर कहाँ कर ली ? बड़ी देर से तुम्हारा इन्तज़ार कर रहा हूँ यहाँ।
मालती: इसने बताया नहीं तुम्हें ?
भाग ‘क’: मालती का ड्राइंगरूम। सोफ़ा। कुरसियाँ।
भाग ‘ख’: पार्क। हरी दूब। लम्बी बेंच। फूलों के गमले।
भाग ‘ग’: साधारण कमरा।
भाग ‘घ’: अस्पताल का कमरा। स्ट्रेचर। बेड।
[मंच-व्यवस्था इस प्रकार कि कोई भाग किसी अन्य भाग को दर्शकों की दृष्टि से अलग नहीं करता। जब एक भाग में कार्य-व्यापार चल रहा हो, तो अन्य तीन भागों में प्रकाश नहीं होता।]
[परदा उठने पर-मंच पर एकदम अँधेरा। भाग ‘क’ में प्रकाश आता है। एक युवती बैलबॉटन पहने जॉज की धून पर नृत्य कर रही है। अचानक दरवाज़े की घण्टी बजती है। युवती नृत्यु-मुद्रा में अदृश्य दरवाज़ा खोलती है।]
मधु: तुम !
बिहारी: हाँ, मधु। तुम्हें मुझे यहाँ आया देखकर ताज्जुब हो रहा है ?
मधु: नहीं बिहारी बाबू, बिल्कुल नहीं। मैं जानती थी, तुम आण्टी से मिलने आओगे। आज छुट्टी है न।
(रिकॉर्डर पर बजता जॉज संगीत बन्द करती है।)
बैठिए ! इस तरह घूर क्यों रहे हैं ?
बिहारी: मालती कहाँ है ?
मधु: आण्टी बाहर गयी हैं ? शायद अभी लौट आयें। नहीं भी।
बिहारी: तुम बेहद खुश दिखाई दे रही हो ?
मधु: अर्थहीन भटकाव में खुशी का कोई स्थान नहीं। जी बहला लेती हूँ जब आण्टी घर में नहीं होतीं।
बिहारी: ऐसा क्यों है ?
मधु: मैं डायन जो हूँ, उनके शब्दों में।
बिहारी: डायन ?
मधु: मामा अमेरिका में रहते थे। अच्छा-खासा बिज़नेस था उनका। मुझे गोद लिया उन्होंने। मैं मुम्बई से अमेरिका गयी। अचानक कार-दुर्घटना में उनकी मौत हो गयी। आण्टी उनका सब कुछ बटोरकर यहाँ वापस हिन्दुस्तान चली आयीं। बम्बई हेडक्वार्टर बनाया। मुझे मामा ने गोद लिया, फिर भी आण्टी हरेक को अपने लिए कहती हैं- सन्तानहीन विधवा।
बिहारी: छोड़ो इन बातों को।
मधु: मेरे लिए इन बातों का बड़ा महत्त्व है।
बिहारी: आजकल मालती परेशान क्यों है ?
मधु: ठीक से कह नहीं सकती।
बिहारी: क्यों ?
मधु: मुझसे सीधे मुँह बात नहीं करती। दरअसल उन्हें मुझसे बात करने को वक़्त ही कहाँ मिलता है। दिन-भर घर से बाहर रहने का अच्छा बहाना है उनके पास। घर का खर्च चलाने के लिए उन्हें नौकरी करनी पड़ती है। शाम को क्लब गये बिना उन्हें चैन नहीं। शराब पीने की लत। रात एक बजे से पहले घर नहीं लौटती। और जब लौटती हैं, तो शराब के नशे में इतनी चूर कि उन्हें घर तक लानेवाले को अकसर उन्हें उठाकर लाना पड़ता है। रात को उनके सोनेवाले कमरे में अकसर झाँककर देखा है- उन्हें होश नहीं रहता कि उनके साथ क्या हो रहा है, क्या किया जा रहा है- सुबह देर से उठती हैं और खोयी-खोयी दफ़्तर चली जाती हैं। ऐसे में बात करने का मौक़ा ही नहीं मिलता।
बिहारी: लेकिन तुम्हारे मामा तो काफी पैसा छोड़ गये होंगे। तुम कहती हो, अच्छा-खासा बिज़नेस था उनका।
मधु: घर का खर्च पूरा करने के लिए आण्टी को नौकरी की इतनी ज़रूरत नहीं शराब का खर्च निकालने की।
बिहारी: ओह ! यानी तुम अपनी आण्टी से और आण्टी तुमसे दुखी हैं। मधु, यहाँ मेरे पास बैठो सोफ़े पर। तुम बिल्कुल फ़िक्र मत करो। मैं सब ठीक कर दूँगा।
बिहारी: प्यार करता हूँ ?
मधु: हाँ।
बिहारी: मुझे उस विधवा स्त्री से बस लगाव-भर है। प्यार नहीं। लगाव भी इसीलिए कि ऐसी औरतों से अदातन मुझे हमदर्दी है।
मधु: आण्टी के सामने कह सकोगे यह ?
बिहारी: अभी नहीं।
मधु: क्यों ?
बिहारी: क्योंकि मालती भावुक है। उसे यह जानकर धक्का लगेगा। इससे मुझे तकलीफ़ होगी।
मधु: बेचारी तुम्हारे इस लगाव के सहारे अपनी ज़िन्दगी के दिन काट रही हैं।
बिहारी: मधु, यू आर ए.फाइन गर्ल !
मधु: आण्टी ?
बिहारी: मालती को सहारा चाहिए। मैं हूँ उसके लिए।
मधु: आण्टी बेहद भावुक हैं।
बिहारी: भावुक कौन नहीं होता। मैं भी हूँ। सभी होते हैं। न भी होते हों।
मधु: मेरे लिए तो पहेली है यह कि भावुक होना अच्छा है या बुरा; या इन दो समानान्तर सीमा रेखाओं के बीच इन्सानी अहसास की कीमत क्या है ?
बिहारी: आज ऐसे सवाल क्यों उठा रही हो ?
मधु: इसलिए कि एक सवाल कई-कई सवालों की तरफ़ ले जाता है।
बिहारी: तुम मुझपर विश्वास कर सकती हो। मैं तुम्हें धोखा नहीं दूँगा। तुम मुझे अच्छी लगती हो, मधु। बहुत अच्छी।
मधु: बाहर बरामदे में क़दमों की आहट हुई है। शायद आण्टी आ रही हैं। हाँ, वहीं हैं शायद।
(मधु बिहारी के पास के उठ खड़ी होती है। मालती का प्रवेश।)
बिहारी: आओ मालती। आज छुट्टी के दिन भी दोपहर कहाँ कर ली ? बड़ी देर से तुम्हारा इन्तज़ार कर रहा हूँ यहाँ।
मालती: इसने बताया नहीं तुम्हें ?
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