लोगों की राय

जीवन कथाएँ >> मेरी भव बाधा हरो

मेरी भव बाधा हरो

रांगेय राघव

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1470
आईएसबीएन :9788170285243

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

147 पाठक हैं

कवि बिहारीलाल के जीवन पर आधारित रोचक उपन्यास...

   "सब कुछ अस्थिर है, सब कुछ। विपत्ति की कसौटी पर जो कसे जा सकें, वे ही सच्चे मित्र होते हैं। तुम इसे याद रखना। धन और वैभव कुछ नहीं, संयोग की बात है।" वृद्ध ने फिर कहा, “बस इतना ही जीवन का सत्य है :

 

"जो गरीब पर हित करें, ते रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।"


बिहारी का मन हिल उठा, राजकोष इतना भयानक होता है! इस संघर्ष का परिणाम क्या होगा!
वह चला आया।
सोचने लगा।
खुर्रम जीत लेगा?
नहीं जीता तो!
एकदम अंधेरा-सा छा गया! वृत्ति बंद। वैभव समाप्त और फिर?
बिहारी ने सोचा और सिर झुका लिया।
चन्द्रकला ने तम्बूरा छेड़ा।
बिहारी सुनता रहा, वह गाती रही। चांद ऊपर उठ आया। किन्तु बिहारी ने सोच लिया था, आग से दूर रहना होगा। पर कब? इसका वह अवसर देखेगा।
तब चिंता हट गई और वह फिर रस में डूब गया।
यह चन्द्रकला उसे बहुत भाती थी। इसी ने उसे नारी-जीवन के अनेक रूप दिखाए थे।
बांके बैठा-बैठा बाहर सो गया। चांद झुक गया। झरोखे से चांदनी आकर सोती चन्द्रकला के मुख पर गिर रही थी। दीपक का हल्का प्रकाश था। बिहारी
ने कलम उठा ली। वह अब एक और दोहा लिखना चाहता था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book