जीवन कथाएँ >> मेरी भव बाधा हरो मेरी भव बाधा हरोरांगेय राघव
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कवि बिहारीलाल के जीवन पर आधारित रोचक उपन्यास...
बिहारी मना नहीं कर सका।
प्रवीणराय ने ताली बजाई। ब्राह्मण शर्बत ले आया जिसे पीकर बिहारी ने कहा,
“मुझे गाना सिखाएंगी आप?"
"जरूर सिखाऊंगी। मुझे न जाने क्यों लगता है, न जानती, क्यों लगता है कि
बिहारी! एक दिन तू बड़ा आदमी हो जाएगा। तेरे गुरु के साथ तुझे भी लोग याद
करेंगे।"
जब वे उठकर उपवन में गए महाकवि संगमरमर के आसन पर बैठे कुछ पढ़ रहे थे। एक
सेवक पीछे खड़ा बड़े ताल पंखे से हवा कर रहा था। मीठे स्वर से पक्षी कलरव कर
रहे थे।
महाकवि के बाग में तरह-तरह के पेड़ थे। उन्होंने एक आयुर्वेदाचार्य को पेड़
चुनकर लगवाने का आदेश दिया था। इसी के फलस्वरूप वे वन और उपवन का भेद भूल
चुके थे। दोनों ने प्रणाम किया। देखकर मुस्कराए। प्रवीणराय सामने की
चौकी पर बैठ गई और उसने बंकिम दृष्टि से देखकर कहा, “कविराइ! बिहारी को आप
काव्य का रस पिला रहे हैं, मैं इसे संगीत की शिक्षा दूंगी।"
कवि ने देखा और कहा, “प्रवीण! पता है इस काव्य-संगीत से क्या लाभ होगा?"
उनकी चिंतित भ्रू ऊपर उठ गई। प्रवीणराय चौंक उठी। उसके कानों में हीरे चमक
उठे, क्योंकि वह झुक गई और उन पर प्रकाश की झलमलाहट दिखाई देने लगी। उसका
मुंह कुछ खुला हुआ था, जिसमें उसके मिस्सी लगे मसूड़ों में से पान की ललाई से
रंगे दांत अधचमक रहे थे। आंखों का काजल करीब-करीब कान तक खिंच गया था। बाल
बड़े ही कसे से गौंध लगाकर माथे पर चिपकाए हुए थे। हाथों के बड़े-बड़े
रत्नजटित कंगनों पर भी प्रकाश स्थिर-सा हो गया था।
उसने धीरे से कहा, "क्यों आचार्य?"
महाकवि इस सम्बोधन से जैसे प्रसन्न हो उठे। परन्तु अधिक प्रकट रूप में यह भाव
नहीं आया। बोले, “काव्य को कौन समझता है। ब्रज प्रदेश से यह सम्वाद आया है कि
केशव ने राम के लिए 'चितवन उलूक ज्यों' लिखकर अन्याय किया है। काव्य का
सौन्दर्य समझते हैं वे लोग? मैंने संस्कृत साहित्य की महान् काव्य-परम्परा को
मथकर भाषा को एक महान ग्रन्थ दिया है, परन्तु उसे देखता कौन है? आचार्यत्व
समझनेवाले हैं ही कितने? सूर और तुलसी-हां, भावपक्ष ठीक परन्तु ग्राम्यत्व
कितना है इनके काव्य में।"
महाकवि के स्वर में एक हल्का-सा व्यंग्य झलक आया। और वे फिर बोले, "गंग को
छोड़ दो। रहीम भी अच्छा है, परन्तु वह जायसी-पदमावत् पढ़ा है उसका? कितना
ग्राम्यत्व है। चन्द्र के साथ ही कविता उठ गई। सच है! काल ही सब कुछ करता है।
अन्यथा इस देश में क्या नहीं था! राजा भोज के समय में कितने महान् कवि थे।
राजा भी गुणज्ञ होते थे। फिर क्या हुआ? तुर्कों के आक्रमण से सब जैसे नष्ट हो
गया। लोग घर-घर में जोगियों के गीत गाने लगे।"
वृद्ध ने मुस्कराकर कहा, “कबीर के गीत।"
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