जीवन कथाएँ >> मेरी भव बाधा हरो मेरी भव बाधा हरोरांगेय राघव
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कवि बिहारीलाल के जीवन पर आधारित रोचक उपन्यास...
नई रानी की भौंहें सिकुड़ गईं। महाराज की ओर ऊबकर देखा।
महाराज मुस्कराए।
खबासिन से कहा, "ले लो।"
द्वार तनिक खुला।
दोहा भीतर गया।
"तू पढ़।"
"महाराज, मैं क्या जानू?" खबासिन हंसी।
'रानी पढ़ें।"
"नहीं महाराज।"
महाराज ने पढ़ा।
एक बार।
फिर वे चौंक उठे।
एक चमत्कार!
कैसी विलक्षण-सी उक्ति! और तब अपनी रानी की ओर देखा।
एकाएक मस्तिष्क में कौंध-सी व्याप गई।
दिल्ली और आगरे का भेदिया है।
बोले, “कहो, मैं मिलूंगा।"
"अन्नदाता की जय!" चोबदार ने कहा, “आज्ञा हो तो मैं खबर दे दूं।"
"दे दो। दरबार में आता हूं।"
दरबार!
रानी चौंक उठी।
खबासिन मुंह मोड़कर मुस्कराई।
महाराज ने कहा, “कहो, अभी कविराइ यहीं मिलें।"
खबासिन चली गई। उसने दूसरे एक सेवक को आज्ञा सुना दी। उसे भी सुनकर आश्चर्य
हुआ।
तब खबासिन ने नखरे से कहा, “जाओ! खबर दो।"
महाराज बाहर आ गए। आमेर में सनसनी मच गई।
'महाराज बाहर आ गए!!'
'कैसे!!"
'बिहारीलाल ने दोहा भेजा था!!'
'अद्भुत!!'
'कवि जो ठहरे!!'
'कवि की वाणी में महान शक्ति होती है!!'
बिहारी ने सिर झुकाकर प्रणाम किया।
महाराज ने कहा, “क्या करते हैं ब्राह्मण देवता! मेरा अधिकार छीनकर मुझे
देवताओं के सामने पाप का भागी न बनाएं।"
चोबदार पीछे हट गए।
अब उन्होंने भी हाथ बांध लिए। अभी तक वे बिना प्रणाम किए खड़े थे।
बिहारी ने कहा, “जोधपुर से लौट रहा था, दर्शन करने आ गया।"
महाराज ने कहा, "दिल्ली में, आगरे में सब कुशल तो है?"
वे समझे कि बिहारी यात्रा पर नहीं निकला था। कौन नहीं जानता कि शाहजहां ने
उससे खिलअत देकर, एकांत में बातें कीं। यह व्यक्ति अवश्य राज्यों की टोह लेता
डोल रहा है।
बिहारी ने कहा, “शाहंशाह भगवान की दया से सकुशल हैं।"
महाराज ने कहा, "कल दरबार का आयोजन है।"
इसके बाद बिहारी के निवास स्थान पर आमेर की भीड़ें टूट पड़ीं। बिहारी का
दर्शन करना चाहते थे सब। बड़े-बड़े लोग मिलने वैसे आए। सुशीला देखती रही।
चन्द्रकला ने भी सुना। बांके ने मूंछों पर हाथ फेरा।
महारानी ने भेंट भेजी। मामा लाए।
महाराज ने भेंटों का ढेर लगा दिया।
महाराज ने दरबार में बहुत कुछ दिया।
और पूछा, “कविराइ यहीं रहेंगे?"
"महाराज! आगरा जाऊँ, जो आज्ञा मिले।"
कहा, “कविराइ अभी कहीं नहीं जाएंगे।"
यों उन्होंने खतरा रोक दिया।
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