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जीवन कथाएँ >> मेरी भव बाधा हरो

मेरी भव बाधा हरो

रांगेय राघव

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1470
आईएसबीएन :9788170285243

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कवि बिहारीलाल के जीवन पर आधारित रोचक उपन्यास...


विहंग बाज राजा जसवंतसिंह थे। पंछी हिन्दू राजा। पराया हाथ था औरंगजेब।
सहसा ही विचार-सा कौंधा।
क्या वह जयसाह के पराए हाथों नहीं पड़ा था। क्या वह सुकृत कर रहा था? मन घायल हो गया। वह उठा और चल पड़ा। महल की ड्योढ़ी पारकर जयसिंह के आगे बिहारी ने सिर झुकाया।
“आओ, पधारो कविराइ।"
"आज्ञा दें महाराज।"
"क्यों?"

“यह लें-

मेरी भवबाधा हरो राधा नागरि सोइ।
जा तन की झांई परे स्याम हरि दुति होइ।।"


बिहारी ने फिर कहा, “अब मैं जा रहा हूं, महाराज। राधा नागरि की पुकार है। सतसई पूरी हुई।" .
महाराज उठ खड़े हुए। “क्या कष्ट हुआ कविराइ?"
"कोई नहीं महाराज।"
"तो फिर क्यों जाते हैं? किसी ने कुछ कहा है? हम अभी आपके दुख का निवारण करेंगे।"
"ब्रज मुझे बुला रहा है महाराज! वह सांवला-सलोना बुला रहा है। बुला रही है वह राधिका।"

महाराज उसकी तन्मयता को देखते रह गए। आज बिहारी कैसा लग रहा था?
"निरंजन कृष्ण आपके पास आपकी शरण में रहे,” बिहारी ने फिर कहा।
महाराज ने कहा, “यदुराइ ? कविराइ को ले चले।"
बिहारी उतरने लगा। महलों में हल्ला मच गया। खबर बिजली की तरह दौड़ चली। महाकवि वैराग्य लेकर जा रहे हैं। आमेर के जैन साधु भी यह देखने को बाहर आ गए।

एक बार मुड़कर देखा बिहारी ने। सबको हाथ जोड़े।
भागा आया निरंजन कृष्ण। पुकार उठा, "दद्दा!"

बिहारी हंसा। कहा, “बहुत पापी हूं बेटा, बहुत पापी हूं। अब जाने दे।"
निरंजन रोने लगा। बिहारी नहीं रुका। उसने सिर झुकाया सब देखते रहे। और वह सब छोड़कर बाहर चला आया।

प्रजाजन देखते रहे। कोई व्यक्ति इतने वैभव को छोड़कर भी जा सकता है। रानियां रो पड़ीं। महाराज देखते रहे।
बिहारी आज मस्त-सा चला रहा था पैदल । बूढ़ा कितना मुक्त था। उसे गोपाल बुला रहे थे ।   

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