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महान व्यक्तित्व >> सम्राट अशोक

सम्राट अशोक

प्राणनाथ वानप्रस्थी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :46
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1492
आईएसबीएन :81-7483-033-2

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प्रस्तुत है सम्राट अशोक का जीवन परिचय...

नौ बड़े स्तम्भ-लेख इन स्थानों से मिले हैं : नेपाल की तराई में रुम्मनीदेई ग्राम में और निगलिवा ग्राम में, टोपरा (अम्बाला के निकट), मेरठ, कौशाम्बी (इलाहाबाद), रामपुरवा (चम्पारन), लौरिया (अरराज), लौरिया (नन्दनगढ़) चार छोटे स्तम्भ-लेख सारनाथ, साथी और कौशाम्बी में मिले हैं।

इस तरह 19 शिलालेख इन स्थानों में मिले हैं : ब्रह्मगिरि (मैसूर), रूपनाथ (जबलपुर), सहसराम (बिहार), वैराट (जयपुर), इरागुड़ी (हैदराबाद, दक्षिण), गुजरा (दतिया, मध्यप्रदेश), रामेश्वर-शाहबाजगढ़ी (पेशावर), मानसेहरा  (हजारा, सीमाप्रान्त), गिरनार (जूनागढ़), सोपरा (थाना), कालसी (देहरादून), धौली (पुरी) और जौगढ़ (गंजाम)।

इसी तरह सम्राट् अशोक ने धर्म का प्रचार करने के लिए धर्म-महामात्रों को एशिया के  कोने-कोने में भेजा। स्त्रियों के प्रचार करने के लिए स्त्री-महामात्रों को भेजा।

इस समय बौद्ध धर्म अठारह भागों में बंटा हुआ था। उसने तीसरी बौद्ध महासभा बुलाई। सात दिन के अन्दर ही अन्दर सहस्रों भिक्षु अशोकाराम में इकट्ठे हुए। इस सभा में सभापति बने भिक्षु उपगुप्त। पता लगा कि साठ हजार बौद्ध भिक्षु धर्म का पालन नहीं करते। इनको धर्म-संघ से निकाल दिया गया और गृहस्थ धर्म-पालन करने की इन्हें आज्ञा हुई। इसके बाद केवल तपस्वी और धर्म पर चलने वाले भिक्षु ही बचे। सम्राट् अशोक ने भिक्षुओं को रहने के लिए कुल मिलाकर 48,000 विहार (भवन) बनवाए।

आचार्य उपगुप्त ने धर्म-प्रचार करने के लिए नीचे लिखी भिक्षु-मंडलियों को भेजा :

मंडली के नेता का नाम - कहां भेजा
मज्झन्तिक - कश्मीर और गांधार
महेन्द्र  - लंका
महारक्षित - यवन देश
थेर सोण - स्वर्ण भूमि
महादेव - मैसूर
कस्यप - हिमालय प्रदेश
थेर रक्षित - उत्तरी कनारा
महाधम्म - महाराष्ट्र
योनक - कोंकण

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    अनुक्रम

  1. जन्म और बचपन
  2. तक्षशिला का विद्रोह
  3. अशोक सम्राट् बने
  4. कलिंग विजय
  5. धर्म प्रचार
  6. सेवा और परोपकार
  7. अशोक चक्र

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