महान व्यक्तित्व >> सम्राट अशोक सम्राट अशोकप्राणनाथ वानप्रस्थी
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प्रस्तुत है सम्राट अशोक का जीवन परिचय...
वहां की राजपुत्री के बुलावे पर लंका देश में धर्म-प्रचार के लिए सम्राट् अशोक की पुत्री संघमित्रा बोधि-वृक्ष की एक शाखा लेकर गई। राजपुत्री के साथ 500 देवियों ने बौद्ध धर्म में प्रवेश लिया।
यहां के राजा ने भी बौद्ध-धर्म स्वीकार किया। अब क्या था, सारे लंकाद्वीप में जिधर देखो, भगवान् गौतम बुद्ध के ही गीत गाए जाने लगे। चालीस सहस्र लोग बौद्ध बन गए।
उत्तरापथ या हिमालय प्रदेश में चौरासी हजार लोगों ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया।
मैसूर के आसपास चालीस सहस्र लोगों ने बौद्ध धर्म माना।
बनवास प्रदेश में साठ सहस्र लोगों ने बौद्ध धर्म माना और सैंतीस सहस्र ने भिक्षु बनकर पीले कपड़े पहन लिए।
कोंकण प्रदेश में अट्ठाईस सहस्र लोगों ने बौद्धधर्म में प्रवेश किया।
महाराष्ट्र में चौरासी सहस्र लोग बौद्ध बने और तेरह सहस्र भिक्षु बने।
कश्मीर के राजा के साथ अस्सी सहस्र लोग बौद्ध बने और एक लाख भिक्षु बने।
भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर यवन देश में सत्तर हजार लोग बौद्ध बने और दस हजार ने भिक्षु जीवन का व्रत लिया।
इस तरह बौद्ध-भिक्षुओं ने धर्म का डंका बजा दिया। पूरा-पूरा इतिहास नहीं मिलता, लेकिन तभी से हमारे पड़ौसी महान देश चीन और जापान बौद्धधर्म को मानते चले आए हैं।
ऐसा मालूम होता है कि बौद्ध धर्म की उन्नति सम्राट् अशोक के हाथों ही हुई।
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- जन्म और बचपन
- तक्षशिला का विद्रोह
- अशोक सम्राट् बने
- कलिंग विजय
- धर्म प्रचार
- सेवा और परोपकार
- अशोक चक्र