महान व्यक्तित्व >> सम्राट अशोक सम्राट अशोकप्राणनाथ वानप्रस्थी
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प्रस्तुत है सम्राट अशोक का जीवन परिचय...
जन्म और बचपन
जिस समय का हम वृत्तान्त लिख रहे हैं, उस समय हमारे देश में रीति थी कि राजा लोग अपना इतिहास लिखते समय राजगद्दी पर बैठने के दिन से ही सब घटनाएं लिखते थे, इसलिए बहुत खोज करने पर भी अशोक के जन्मदिन का पता नहीं लगता।
अशोक के पिता सम्राट् बिन्दुसार की सोलह रानियां और एक सौ एक पुत्र थे। सबसे बड़ी रानी का नाम धर्मा का, जो मौर्यकुल के क्षत्रिय परिवार की संतान थी। अशोक की माता का नाम सुभद्रांगी था। यह देवी चम्पानगर के एक ब्राह्मण की पुत्री थी। इसके जन्म पर ज्योतिषियों ने कहा, ''यह कन्या दो पुत्रों की माता बनेगी, जिनमें से एक तो भारतवर्ष का सम्राट् बनेगा और दूसरा संन्यासी होगा।'' जैसे-जैसे इस कन्या की आयु बढ़ती गई, पिता को चिन्ता होने लगी कि मै पुत्री का जीवन कैसे बना सकूंगा। और कोई चारा न देख वह राजमहलों में गया और अपनी पुत्री को वहीं छोड़ आया। इस कन्या की सुन्दरता और गुणों को देख सभी रानियां इससे जला करतीं। इसे राजमहल में नाइन का काम दिया गया। गुण कहीं छिपाए से भी छिपते हैं? एक दिन सम्राट् का सामना इस कन्या से हो गया और वह इसके गुणों पर मोहित हो गया। उसने कन्या को बड़े प्रेम से अपने पास बुलाया और माता-पिता आदि के बारे में पूछा। जब सम्राट् बिन्दुसार को पता लगा कि यह देवी एक ब्राह्मण की कन्या है, तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने बड़ी धूमधाम से इस देवी को अपनी रानी बनाया।
समय पाकर इसके पुत्र हुआ। सम्राट् ने रानी से पूछा, ''देवी! इस पुत्र का नाम क्या रखा जाए?'' वह दोनों हाथ जोड़कर बड़ी नम्रता से बोली, ''महाराज! इस पुत्र के होने से मेरा शोक दूर हुआ है, इसलिए इसका नाम अशोक रखना चाहिए।'' सम्राट् ने बड़ी धूमधाम से वेदों और शास्त्रों में कही गई विधि के अनुसार बालक का नामकरण-संस्कार किया। वेद-मंत्रों के पवित्र गायन से आकाश गूंज उठा। घी और सुगन्धित सामग्री की लपटों से सारा नगर महक उठा। ब्राह्मण और गरीबों को खुले हाथों दान दिया गया।
समय पाकर रानी के दूसरा पुत्र हुआ, जिसका नाम 'वीतशोक' रखा गया। इसको इतिहास में कहीं-कहीं 'तिस्य' के नाम से भी पुकारा जाता है। यह राजपुत्र बड़ा होकर एक महान् संन्यासी बना, जिसने देश और विदेश में बुद्ध धर्म का डंका बजा दिया।
सम्राट् के सबसे बड़े पुत्र का नाम सुमन था। क्षत्रिय घरानों में सदा से यह रीति चली आई है कि बड़ा पुत्र ही राजगद्दी पर बैठता है। इसीलिए सम्राट् चाहते थे कि मेरा यह पुत्र योग्य बने और राज्य संभाले। बच्चों को योग्य बनाने के लिए माता-पिता जो कुछ अधिक-से-अधिक कर सकते हैं उसमें सम्राट् ने कोई कमी न उठा रखी। इस पुत्र को विद्वान् ब्राह्मणों की देखरेख में वेदों, शास्त्रों, राजनीति और युद्ध-विद्या की पूरी-पूरी शिक्षा दी गई।
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