जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...
मैंमुश्किल से इतना कह पाया था कि मुझ पर तमाचो की वर्षा होने लगी, और वह गोरा मेरी बाँह पकड़कर मुझे नीचे खीचने लगा। बैठक के पास ही पीतल केसींखचे थे। मैंने भूत की तरह उन्हें पकड़ लिया और निश्चय किया कि कलाई चाहें उखजड जाये पर सींखचे न छोड़ूगा। मुझ पर जो बीत रही थी उसे अन्दरबैठे हुए यात्री देख रहे थे। वह गोरा मुझे गालियाँ दे रहा था, खींच रहा था, मार भी रहा था। पर मैं चुप था। वह बलवान था और मैं बलहीन। यात्रियोंमें से कईयो को दया आयी और उनमें से कुछ बोल उठे, 'अरे भाई, उस बेचारे को वहाँ बैठा रहने दो। उसे नाहक मारो मत। उसकी बात सच हैं। वहाँ नहीं को उसेहमारे पास अन्दर बैठने दो।' गोरे ने कहा, 'हरगिज नहीं।' पर थोडा शरमिन्दा वह जरूर हुआ। अतएव उसने मुझे मारना बन्द कर दिया और मेरी बाँह छोड़ दी।दो-चार गालियाँ तो ज्यादा दी, पर एक होटंटाट नौकर दूसरी तरफ बैठा था, उसे अपने पैरो के सामने बैठाकर खुद बाहर बैठा। यात्री अन्दर बैठ गये। सीटीबजी। सिकरम चली। मुझे शक हो रहा था कि मैं जिन्दा मुकाम पर पहुँच सकूँगा या नहीं। वह गोरा मेरी ओर बराबर घूरता ही रहा। अंगुली दिखाकर बड़बड़ातारहा, 'याद रख, स्टैंडरटन पहुँचने दे फिर तुझे मजा चखाऊँगा।' मैं तो गूंगा ही बैठा रहा और भगवान से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करता रहा।
रात हुई। स्टैंडरटन पहुँचे। कई हिन्दुस्तानी चेहरे दिखाई दिये। मुझे कुछतसल्ली हुई। नीचे उतरते ही हिन्दुस्तानी भाईयों ने कहा, 'हम आपको ईसा सेठ की दुकान पर ले जाने के लिए खडे हैं। हमे अब्दुल्ला का तार मिला हैं।' मैंबहुत खुश हुआ। उनके साथ सेठ ईसा हाजी सुमार की दुकान पर पहुँचा। सेठ और उसके मुनीम-गुमाश्तो नें मुझे चारो ओर से घेर लिया। मैंने अपनी बीतीउन्हें सुनायी। वे बहुत दुखी हुए और अपने कड़वे अनुभवो का वर्णन करके उन्होंने मुझे आश्वस्त किया। मैं सिकरम कम्पनी के एजेंट को अपने साथ हुएव्यवहार की जानकारी देना चाहता था।
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