जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...
मैंने एजेंट के नाम चिट्ठीलिखी। उस गोरे ने जो धमकी दी थी उसकी चर्चा की और यह आश्वासन चाहा कि सुबह आगे की यात्रा शुरू होने पर मुझे दूसरे यात्रियो के पास अन्दर गी जगह दीजाये। चिट्ठी एजेंड के भेज दी। एजेंट में मुझे संदेशा भेजा, 'स्टैंडरटन से बड़ी सिकरम जाती हैं और कोचवान वगैरा बदल जाते हैं। जिस आदमी के खिलाफआपने शिकायत की हं, वह कल नहीं रहेगा। आपको दूसरे यात्रियों के पास ही जगह मिलेगी।' इस संदेशे से मुझे थोड़ी बेफिकरी हूई। मुझे मारने वाले उस गोरेपर किसी तरह का कोई मुकदमा चलाने का तो मैंने विचार ही नहीं किया था। इसलिए यह प्रकरण यही समाप्त हो गया। सबेरे ईसा सेठ के लोग मुझे सिकरम परले गये, मुझे मुनासिब जगह मिली और बिना किसी हैरानी के मैं रात जोहानिस्बर्ग पहुँच गया।
स्टैंडरटन एक छोटा सा गाँव हैं। जोहानिस्बर्ग विशाल शहर हैं। अब्दुल्ला सेठ ने तार तो वहाँ भी दे ही दियाथा। मुझे मुहम्मद कासिम कमरुद्दीन की दुकान का नाम पता भी दिया था। उनका आदमी सिकरम के पड़ाव पर पहुँचा था, पर न मैंने उसे देखा और न वह मुझेपहचान सका। मैंने होटल में जाने का विचार किया य़ दो-चार होटलो के नाम जान लिये थे। गाडी की। गाडीवाले से कहा कि ग्राण्ड नैशनल होटल में ले चलो।वहाँ पहुँचने पर मैंनेजर के पास गया। जगह माँगी। मैंनेजर ने क्षणभर मुझे निहारा, फिर शिष्टाचार की भाषा में कहा, 'मुझे खेद हैं, सब कमरे भरे पड़ेहैं।' और मुझे बिदा किया। इसलिए मैंने गाड़ीवाले से मुहम्मद कासिम कमरुद्दीन की दुकान पर ले चलने को कहा। वहाँ अब्दुलगनी सेठ मेरी राह देखरहे थे। उन्होंने मेरा स्वागत किया। मैंने होटल की अपनी बीती उन्हे सुनायी। वे खिलखिलाकर हँस पड़े। बोले, 'वे हमें होटन में कैसे उतरनेदेंगे?'
मैंने पूछा, 'क्यों नहीं?'
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