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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...


इन दिनों नियमों काप्रभाव स्वयं मुझ पर क्या पड़ेगा, इसकी जाँच मुझे करानी पड़ी थी। मैं अक्सर मि. कोट्स के साथ रात को घूमने जाया करता था। कभी-कभी घर पहुँचनेमें दस बज जाते थे। अतएव पुलिस मुझे पकड़े तो? यह डर जितना मुझे था उससे अधिक मि. कोट्स को था। अपने हब्शियों को तो वे ही परवाने देते थे। लेकिनमुझे परवाना कैसे दे सकते थे? मालिक अपने नौकर को ही परवाना देने का अधिकारी था। मैं लेना चाहूँ और मि. कोट्स देने को तैयार हो जायें, तो वहनहीं दिया जा सकता था, क्योंकि वैसा करना विश्वासघात माना जाता।

इसलिए मि. कोट्स या उनके कोई मित्र मुझे वहाँ के सरकारी वकील डॉ. क्राउजे के पासले गये। हम दोनो एक ही 'इन' के बारिस्टर निकले। उन्हे यह बाच असह्य जान पड़ी कि रात नौ बजे के बाद बाहर निकलने के लिए मुझे परवाना लेना चाहिये।उन्होंने मेरे प्रति सहानुभूति प्रकट की। मुझे परवाना देने के बदले उन्होंने अपनी तरफ से एक पत्र दिया। उसका आशय यह थी कि मैं चाहे जिस समयचाहे जहाँ जाऊँ, पुलिस को उसमें दखम नहीं देना चाहिये। मैं इस पत्र को हमेशा अपने साथ रखकर घूमने निकलता था। कभी उसका उपयोग नहीं करना पड़ा।लेकिन इसे तो केवल संयोग ही समझना चाहिये।

डॉ. क्राउजे ने मुझे अपने घर आने का निमंत्रण दिया। मैं कह सकता हूँ कि हमारे बीच में मित्रताहो गयी थी। मैं कभी-कभी उनके यहाँ जाने लगा। उनके द्वारा उनके अधिक प्रसिद्ध भाई के साथ मेरी पहचान हुई। वे जोहानिस्बर्ग में पब्लिकप्रोसिक्युटर नियुक्त हुए थे। उनपर बोअर युद्ध के समय अंग्रेज अधिकारी का खून कराने का षड़यंत्र रचने के लिए मुकदमा चला था और उन्हें सात साल केकारावास की सजा मिली थी। बेंचरों ने उसकी सनद भी छीन ली थी। लड़ाई समाप्त होने पर डॉ. क्राउजे जेल से छूटे, सम्मानपूर्वक ट्रान्सवाल की अदालत मेंफिर से प्रविष्ट हुए और अपने धन्धे में लगे। बाद में सम्बन्ध मेरे लिए सार्वजनिक कार्यों में उपयोगी सिद्ध हुए और मेरे कई सार्वजजनिक काम इनकेकारण आसान हो गये थे।

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