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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...


पटरी पर चलने का प्रश्न मेरे लिए कुछगम्भीर परिणामवाला सिद्ध हुआ। मैं हमेशा प्रेसिडेंट स्ट्रीट के रास्ते एक खुले मैंदान में घूमने जाया करता था। इस मुहल्ले में प्रेसिडेंट क्रूगर काघर था। यह घर सब तरह के आडंबरो से रहित था। इसके चारो ओर कोई अहाता नहीं था। आसपास के दूसरे घरो में और इसमे कोई फर्क नहीं मालूम होता था।प्रिटोरिया में कई लखपतियों के घर इसकी तुलना में बहुत बडे, शानदार और अहातेवाले थे। प्रेसिडेंट की सादगी प्रसिद्ध थी। घर के सामने पहरा देनेवाले संतरी को देखकर ही पता चलता था कि यह किसी अधिकारी का घर है। मैं प्रायः हमेशा ही इस सिपाही के बिल्कुल पास से होकर निकलता था, पर वह मुझेकुछ नहीं कहता था। सिपाही समय-समय पर बदला करते थे। एक बार एर सिपाही में बिना चेताये, बिना पटरी पर से उकर जाने को कहे, मुझे धक्का मारा, लात मारीऔर नीचे उतार दिया। मैं तो गहरे सोच में पड़ गया। लात मारने का कारण पूछने से पहले ही मि. कोट्स ने, जो उसी समय घोडे पर सवार होकर गजर रहे थे, मुझेपुकारा और कहा, 'गाँधी, मैंने सब देखा हैं। आप मुकदमा चलाना चाहे तो मैं गवाही दूँगा। मुझे इस बात का बहुत खेद हैं कि आप पर इस तरह हमला कियागया।'

मैंने कहा, 'इसमे खेद का कोई कारण नहीं हैं। सिपाही बेचारा क्या जाने? उसके लिए काले-काले सब एक से ही हैं। वह हब्शियों को इसी तरहपटरी पर से उतारता होगा। इसलिए उसने मुझे भी धक्का मारा। मैंने तो नियम ही बना लिया हैं मुझ पर जो भी बीतेगी, उसके लिए मैं कभी अदालत में नहींजाऊँगा। इसलिए मुझे मुकदमा नहीं चलाना हैं।'

'यह तो आपने अपने स्वभाव के अनुरुप ही बात कहीं हैं। पर आप इस पर फिर सेसोचियें। ऐसे आदमी को कुछ सबक तो देना ही चाहिये।'

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