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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...


ऐसी किफायत हर एक संस्था के लिए आवश्यक हैं।फिर भी मैं जानता हूँ कि हमेशा यह मर्यादा रह नहीं पाती। इसीलिए इस छोटी-सी उगती हुई संस्था के आरम्भिक निर्माण काल का विवरण देना मैंने उचितसमझा हैं। लोग रसीद की परवाह नहीं करते थे। फिर भी उन्हे आग्रह पूर्वक रसीद दी जाती थी। इसके कारण आरम्भ से ही पाई-पाई का हिसाब साफ रहा, और मैंमानता हूँ कि आज भी नेटाल कांग्रेस के दफ्तर में सन् 1894 के पूरे-पूरे ब्योरेवाले बही-खाते मिलने चाहिये। किसी भी संस्था का बारीकी से रखा गयाहिसाब उनकी नाक हैं। इसके अभाव में वह संस्था आखिर गन्दी और प्रतिष्ठा-रहित हो जाती हैं। शुद्ध हिसाब के बिना शुद्ध सत्य की रक्षाअसम्भव हैं।

कांग्रेस का दूसरा अंग उपनिवेश में जन्मे हुए पढ़े-लिखे हिन्दुस्तानियो की सेवा करना था। इसके लिए 'कॉलोनियल बॉर्नइंडियन एज्युकेशनल ऐसोसियेशन' की स्थापना की गयी। नवयुवक ही मुख्यतः उसके सदस्य थे। उन्हें बहुत थोड़ा चंदा देना होता था। इस संस्था के द्वारा उनकीआवश्यकताओ का पता चलता था और उनकी विचार-शक्ति बढ़ती थी। हिन्दुस्तानी व्यापारियों के साथ उनका सम्बन्ध कायम होता था और स्वयं उन्हे भी समाजसेवा करने के अवसर प्राप्त होते थे। यह संस्था वाद-विवाद मंडल जैसी थी। इसकी नियमित सभाये होती थी। उनमे वे लोग भिन्न-भिन्न विषयों पर अपने भाषणकरते और निबन्ध पढ़ते थे। इसी निमित्त से एक छोटे से पुस्तकालय की भी स्थापना हुई थी।

कांग्रेस का तीसरा अंग था बाहरी कार्य। इसमे दक्षिण अफ्रीका के अंग्रेजो में और बाहर इंग्लैंड तथा हिन्दुस्तान मेंनेटाल की सच्ची स्थिति पर प्रकाश डालने का काम होता था। इस उद्देश्य से मैंने दो पुस्तिकाये लिखी। पहली पुस्तिका नाम था 'दक्षिण अफ्रीका में रहनेवाले प्रत्येक अंग्रेज से बिनती'। उसमें नेटाल- निवासी भारतीयो की स्थिति का साधारण दिग्दर्शन प्रमाणों सहित कराया गया था। दूसरी पुस्तक का नाम था'भारतीय मताधिकार - एक बिनती' उसमें भारतीय मताधिकार का इतिहास आंकड़ो और प्रमाणो-सहित दिया गया था। ये दोनो पुस्तिकाये काफी अध्ययन के बाद लिखीगयी थी। इनका व्यापक प्रचार किया गया था। इस कार्य के निमित्त से दक्षिण अफ्रीका में हिन्दुस्तानियो के मित्र पैदा हो गये। इंग्लैंड में तथाहिन्दुस्तान में सब पक्षों की तरफ से मदद मिली, कार्य करने की दिशा प्राप्त हुई औऱ उसने निश्चित रुप धारण किया।

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