लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

160 पाठक हैं

my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...

दुखद प्रसंग-1


मैं कह चुका हूँ कि हाईस्कूल में मेरे थोड़े ही विश्वासपात्र मित्र थे। कहा जासकता हैं कि ऐसी मित्रता रखने वाले दो मित्र अलग-अलग समय में रहे। एक का संबन्ध लम्बे समय तक नहीं टीका, यद्यपि मैंने मित्र को छोड़ा नहीं था।मैंने दूसरी सोहब्बत की, इसलिए पहले ने मुझे छोड़ दिया। दूसरी सोहब्बत मेरे जीवन का एक दुःखद प्रकरण हैं। यह सोहब्बत बहुत वर्षो तक रही। इससोहब्बत को निभाने में मेरी दृष्टि सुधारक की थी। इन भाई की पहली मित्रता मेरे मझले भाई के साथ थी। वे मेरे भाई की कक्षा में थे। मैं देख सका था किउनमें कई दोष हैं। पर मैंने उन्हें वफादार मान लिया था। मेरी माताजी, मेरे जेठे भाई और मेरी धर्मपत्नी तीनों को यह सोहब्बत कड़वी लगती थी। पत्नी काचेतावनी को तो मैं अभिमानी पति क्यों मानने लगा? माता की आज्ञा का उल्लंघन मैं करता ही न था। बड़े भाई की बात मैं हमेशा सुनता था। पर उन्हें मैंनेयह कह कर शान्त किया : "उसके जो दोष आप बाताते हैं, उन्हें मैं जानता हूँ। उसके गुण तो आप जानते ही नहीं। वह मुझे गलत रास्ते नहीं ले जायेगा,क्योंकि उसके साथ मेरी सम्बन्ध उसे सुधारने के लिए ही हैं। मुझे यह विश्वास हैं कि अगर वह सुधर जाये, तो बहुत अच्छा आदमी निकलेगा। मैं चाहताहूँ कि आप मेरे विषय में निर्भय रहें। " मैं नहीं मानता कि मेरी इस बात से उन्हें संतोष हुआ, पर उन्होंने मुझ प विश्वास किया और मुझे मेरे रास्तेजाने दिया।

बाद में मैं देख सका कि मेरी अनुमान ठीक नहीं था। सुधार करने के लिए भी मनुष्य को गहरे पानी में नहीं पैठना चाहिये। जिसेसुधारना हैं उसके साथ मित्रता नहीं हो सकती। मित्रता में अद्वैत-भाव होता हैं। संसार में ऐसी मित्रता क्वचित् ही पायी जाती है। मित्रता समानगुणवालों के बीच शोभती और निभती हैं। मित्र एक-दूसरे को प्रभावित किये बिना रह ही नहीं सकते। अतएव मित्रता में सुधार के लिए बहुत अवकाश रहताहैं। मेरी राय हैं कि घनिष्ठ मित्रता अनिष्ट हैं, क्योंकि मनुष्य दोषों को जल्दी ग्रहण करता हैं। गुण ग्रहण करने के लिए प्रयास की आवश्यकता हैं। जोआत्मा की, ईश्वर की मित्रता चाहता हैं, उसे एकाकी रहना चाहिये, अथवा समूचे संसार के साथ मित्रता रखनी चाहिये। ऊपर का विचार योग्य हो तो अथवा अयोग्य,घनिष्ठ मित्रता बढ़ाने का मेरा प्रयोग निष्फल रहा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book