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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

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my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...


तरह-तरह दवाओं की जो बोतले खरीदीथी वे व्यर्थ गई और शल्य-क्रिया नहीं हुई। वैद्यराज प्रवीण और प्रसिद्ध थे। मेरा ख्याल हैं कि अगर वे शल्य-क्रिया होने देते, तो घाव भरने मेंदिक्कत न होती।शल्य-क्रिया उस समय के बम्बई के प्रसिद्ध सर्जन के द्वारा होने को थी। पर अन्तकाल समीप था, इसलिए उचित उपाय कैसे हो पाता? पिताजीशल्य-क्रिया कराये बिना ही बम्बई से वापस आये। साथ में इस निमित्त से खरीदा हुआ सामान भी लेते आये। वे अधिक जीने की आशा छोड़ चुके थे। कमजोरीबढ़ती गयी और ऐसी स्थिति आ पहुँची कि प्रत्येक क्रिया बिस्तर पर ही करना जरुरी हो गया। लेकिन उन्होंने आखिरी घड़ी तक इसका विरोध ही किया औरपरिश्रम सहने का आग्रह रखा। वैष्णव धर्म का यह कठोर शासन हैं। बाह्य शुद्धि अत्यन्त आवश्यक हैं। पर पाश्चत्य वैद्यक-शास्त्र ने हमें सिखाया किमल-मूत्र-विसर्जन की और स्नानादि की सह क्रियायें बिस्तर पर लेटे-लेटे संपूर्ण स्वच्छता के साथ की जा सकची हैं और रोगी को कष्ट उठाने की जरुरतनहीं पड़ती ; जब देखों तब उसका बिछौना स्वच्छ ही रहता हैं। इस तरब साधी गयी स्वच्छता को मैं तो वैष्णव धर्म का ही नाम दूँगा। पर उस समय स्नानादिके लिए बिछौना छोड़ने का पिताजी का आग्रह देखकर मैं अश्चर्यचकित ही होता था और मन में उनकी स्तुति किया करता था।

अवसान की घोर रात्रि समीप आई। उन दिनों मेरे चाचाजी राजकोट में थे। मेरा कुछ ऐसा ख्याल हैं किपिताजी की बढ़ती हुई बीमारी के समाचार पाकर ही वे आये थे। दोनों भाईयों के बीच अटूट प्रेम था। चाचाजी दिन भर पिताजी के बिस्तर के पास ही बैठे रहतेऔर हम सबको सोने की इजाजत देकर खुद पिताजी के बिस्तर के पास रोते। किसी को ख्याल नहीं था कि यह रात आखिरी सिद्ध होगी। वैसे डर तो बराबर बना ही रहताथा। रात के साढ़े दस या ग्यारह बजे होगें। मैं पैर दबा रहा था। चाचाजी ने मुझसे कहा :'जा, अब मैं बैठूगाँ।' मैं खुश हुआ और सीधा शयन-कक्ष मेंपहुँचा। पत्नी तो बेचारी गहरी नींद में थी। पर मैं सोने कैसे देता? मैंने उसे जगाया। पाँच-सात मिनट ही बीते होगे, इतने में जिस नौकर की मैं ऊपरचर्चा कर चुका हूँ, उसने आकर किवाड़ खटखटाया। मुझे धक्का सा लगा। मैं चौका। नौकर ने कहा: 'उठो, बापू बहुत बीमार हैं।' मैं जानता था वे बहुतबीमार तो थे ही, इसलिए यहाँ 'बहुत बीमार' का विशेष अर्थ समझ गया। एकदम बिस्तर से कूद गया।

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