लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :390
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1530
आईएसबीएन :9788128812453

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

160 पाठक हैं

my experiment with truth का हिन्दी रूपान्तरण (अनुवादक - महाबीरप्रसाद पोद्दार)...


बैरिस्टर तो बने लेकिन आगे क्या?

मैं जिस काम के लिए (बारिस्टर बनने) विलायत गया था, उसका मैंने क्या किया,इसकी चर्चा मैंने अब तक छोड़ रखी थी। अब उसके बारे में कुछ लिखने का समय आ गया हैं।

बारिस्टर बनने के लिए दो बातों की जरूरत थी। एक थी 'टर्म पूरी करना' अर्थात् सत्र में उपस्थित रहना। वर्ष में चार सत्र होतेथे। ऐसे बारह सत्रों में हाजिर रहना था। दूसरी चीज थी, कानून की परीक्षा देना। सत्रों में उपस्थिति का मतलब था, 'दावतें खाना' ; यानि हरएक सत्रमें लगभग चौबीस दावते होती थी, उनमें से छह में सम्मिलित होना। दावतों में भोजन करना ही चाहिये, ऐसा कोई नियम नहीं था, परन्तु निश्चित समय परउपस्थिति रहकर भोज की समाप्ति तक वहाँ बैठे रहना जरूरी था। आम तौर पर तो सब खाते-पीते ही थे। खाने में अच्छी-अच्छी चींजे होती थी और पीने के लिएबढ़िया मानी जानेवाली शराब। अलबत्ता, उसके दाम चुकाने होते थे। यह रकम ढाई से साढ़े तीन शिलिंग होती थी ; अर्थात् दो-तीन रुपये का खर्च हुआ। वहाँ यहकीमत बहुत कम मानी जाती थी, क्योंकि बाहर के होटल में ऐसा भोजन करने वालो को लगभग इतने पैसे तो शराब के ही लग जाते थे। खाने की अपेक्षा शराबपीनेवाले को खर्च अधिक होता हैं। हिन्दुस्तान में हम को (यदि हम 'सभ्य' न हुए तो) इस पर आश्चर्य हो सकता हैं। मुझे तो विलायत जाने पर यह सब जानकरबहुत आघात पहुँचा था। और मेरी समझ में नहीं आता था कि शराब पीने के पीछे इतना पैसा बरबाद करने की हिम्मत लोग कैसे करते हैं। बाद में समझना सीखा !इन दावतों में मैं शुरू के दिनों में कुछ भी न खाता था, क्योंकि मेरे काम की चीजों में वहाँ सिर्फ रोटी, उबले आलू और गोभी होती थी। शुरू में तो येरुचे नहीं, इससे खाये नहीं। बाद में जब उनमे स्वाद अनुभव किया तो तो दूसरी चीजें भी प्राप्त करने की शक्ति मुझ में आ गयी।

विद्यार्थियों के लिए एक प्रकार के भोजन की और 'बेंचरों' (विद्या मन्दिर के बड़ो) के लिएअलग से अमीरी भोजन की व्यवस्था रहती थी। मेरे साथ एक पारसी विद्यार्थी थे। वे भी अन्नाहारी बन गये थे। हम दोनो ने अन्नाहार के प्रचार के लिए'बेंचरों' के भोजन में से अन्नाहारी के खाने लायक चीजों की माँग की। इससे हमें 'बेंचरों' की मेंज पर परसे फल वगैरा और दूसरे शाक सब्जियाँ मिलनेलगी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book