इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
उपरिलिखित उद्धरण सर एच. एम. इलियट द्वारा यह सिद्ध करने के लिए समय-समय पर निकाले गए उन निष्कर्षों के उदाहरण मात्र हैं जो उसके अनुसार मुसलमानी विवरण पड्यन्त्रपूर्ण रचनाएँ सिद्ध होती हैं। हम स्वयं कुछ ऐसे तथ्य प्रस्तुत करना चाहेंगे जो इलियट तथा उनके समान अन्य विलक्षण विद्वानों के भी ध्यान में नहीं आ पाए।
मुस्लिम इतिहास के प्रत्येक विद्यार्थी तथा मध्ययुगीन स्मारकों के दर्शकों को चाहिए कि वे उसके सम्मुख प्रस्तुत विवरणों के मूलाधार का सम्यक् विवेचन करें और सावधानी से यह विचार करें कि अन्य प्रामाणिक विवरणों द्वारा क्या उनका समर्थन होता है ? और क्या वे तर्क की कसौटी पर खरे उतरते हैं? उदाहरणार्थ, ऊपर जो सार-संक्षेप उद्धृत किए हैं उनसे यह स्पष्ट होता है कि आगरा का दुर्ग बहुत प्राचीन हिन्दू दुर्ग है। मुस्लिम इतिहास-ग्रन्थों में जिस धनराशि का उल्लेख किया गया है वह केवल इसकी मरम्मत पर व्यय की गई है। उस राशि को बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया और दुर्ग की मरम्मत को वास्तविक निर्माण कार्य बताकर भ्रम फैलाया गया। और तो क्या, जो राशि मरम्मत पर व्यय की गई वह शाही दबाव डालकर जनता से विशिष्ट कर के रूप में ली गई तथा बिना पारिश्रमिक दिए श्रमिकों से कार्य कराया गया।
आज जहाँगीर के विषय में यह कहा गया है कि उसने मानसिंह के मन्दिर को ध्वस्त कर उसके खंडहरों पर मस्जिद बनाई वहाँ पाठकों को इससे यह भी समझ लेना चाहिए कि जहाँगीर ने मन्दिर के सभी कर्मचारियों को बाहर निकाल दिया या फिर उन्हें मुसलमान बनने पर विवश कर दिया और मुसलमानों के एक समूह को मूर्तियाँ उखाड़कर फेंकने और उस स्थान पर नमाज पढ़ने के लिए नियुक्त किया। जो तुच्छ राशि मूर्तियों को उखड़वाने, विनष्ट धरातल की मरम्मत कराने और कुछ एक मीनारों को बनवाने पर व्यय की गई उसे बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया और इस समस्त कार्य को भ्रमपूर्वक नए भवन अथवा मस्जिद के निर्माण का नाम दिया गया। मुस्लिम शासन के एक हजार वर्ष में समस्त भारत में यही सब होता रहा।
हाँ, यह भी ध्यान रखने की बात है कि मानसिंह जहाँगीर का साला और उसका ऐसा हिन्दू दरबारी था जो भारतवर्ष में मुस्लिम शासन को स्थिर करने के लिए अपने ही सम्बन्धियों के विरुद्ध शाही सेना का नेतृत्व करने के कारण घृणा का पात्र बना। तदपि जहाँगीर ने धर्मान्धतापूर्ण धृष्टता का परिचय देकर अपने साले और प्रबल समर्थक द्वारा निर्मित मन्दिर को ध्वस्त किया। मुगल दरबार में सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित और राजकीय घराने से जिसका रक्त का सम्बन्ध स्थापित हो गया हो, उसकी यदि यह दशा थी तो उनकी दुर्दशा का सहज ही अनुमान किया जा सकता जिनके पास न तो शक्ति थी और न कोई स्थिति ही और न राजकीय रिश्तेदारी।
जो मुकुट, सिंहासन, नगर, दुर्ग, प्रासाद, मकबरे और भवन, मुस्लिम बादशाहों तथा नवाबों द्वारा बनाए जाने के दावे किए जाते हैं वे सब चाटुकारिता की कपोल- कल्पनाएँ हैं जिनकी रचना उन चापलूस मुंशियों ने की है जिनका उद्देश्य राजकीय कृपा-पात्र बनकर मात्र धनोपार्जन करना था।
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