इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
इस प्रकार न तो उच्चवंश और न ही आसक्तिमय विशेषताओं, शारीरिक सुन्दरता, विशिष्ट अनुरक्ति और पद की श्रेष्ठता के कारण (क्योंकि वह प्रथम पत्नी नहीं थी और न ही वह महारानी बनने की अधिकारिणी थी) अर्जुमन्दबानो बेगम किसी अनुपम मकबरे की विशिष्टता की अधिकारिणी थी।
शाहजहाँ और मुमताज़ दोनों ही, इस प्रकार नितान्त निर्दयी और दुष्ट थे, वे रोमियो और जूलियट की भाँति कोमल-हृदय प्रेमी भी नहीं थे जैसाकि भ्रान्त जनता को विश्वास दिलाया जाता रहा है।
जब अप्रैल, १९७४ में बुरहानपुर में मैंने एक फोटोग्राफर से वहाँ विद्यमान मुमताज़ के फोटो के लिए बात की तो उसने पूछा कि मुझे मकबरे का बाहरी परिदृश्य चाहिए अथवा भीतरी कब्र का।
इससे यह संकेत मिलता है कि बुरहानपुर में भी मुमताज़ को हथियाये गए भवन के भीतर ही दफनाया गया जबकि जो विवरण हमें उपलब्ध हैं उनका दावा है कि मुमताज़ को खुले उद्यान में दफनाया गया था। इसलिए यह स्पष्ट है कि वास्तव में मुमताज़ को बुरहानपुर में पहले उद्यान महल में दफनाया गया ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार उसको दोबारा आगरा में उद्यान प्रासाद में अर्थात् ताजमहल में, दफनाया गया।
यह एक और विवरण है जिसे ३ लम्बी सदियों तक भोली-भाली जनता से छिपाकर रखा गया है। इससे इस बात पर भी प्रकाश पड़ता है कि किस प्रकार इतिहासकार मुस्लिम-कथन को बिना प्रमाण और खोज के स्वीकार करते रहे हैं।
शाहजहाँ ने किसी प्रकार से मुमताज़ को पूर्व-निर्मित प्रासादों में पहले बुरहानपुर में और दोबारा उससे अच्छे प्रासाद में आगरा में केवल इसलिए दफनाया कि इससे दो हिन्दू अपने प्राचीन पूर्वजों के प्रासादों से हाथ धो बैठें। इस प्रकार एक शव के द्वारा शाहजहाँ दो विभिन्न हिन्दू प्रासादों को दो विभिन्न एवं दूरस्थ नगरों में अनुचित कार्य के लिए प्रयोग करने में सफल हो गया।
दोनों ही अवस्थाओं में ऐतिहासिक विवरण दो बार दफन पर विचित्र व्याख्या करते हुए मुमताज़ का पहली बार बुरहानपुर में एक उद्यान में और कुछ मास पश्चात् आगरा में मानसिंह के उद्यान में दफनाने का उल्लेख करते हुए बड़ी सावधानी से इस बात को छिपा गए कि दोनों ही स्थानों पर उसको उन उद्यानों में स्थित भवनों के अन्दर दफनाया गया था। बाद में बड़े छल-कपट से उन विवरणों में यह जोड़ा गया कि शाहजहाँ ने आगरा में मकबरा बनाने में, जिसका नाम ताजमहल है, करोड़ों रुपया व्यय किया।
यदि शाहजहाँ को मुमताज की कब्र पर भव्य भवन बनाने की इच्छा होती तो वह बुरहानपुर में ही यह कार्य कर लेता। इस प्रकार वह दोहरा खर्चा, पहले एक बार बुरहानपुर में एक मकबरा बनाकर और दूसरा उससे अच्छा आगरा में, और फिर उस खर्चे का कोई हिसाब भी न रखना, नहीं करता। क्या शाहजहाँ को करने के लिए इससे अच्छे काम नहीं थे कि वह अपनी मृत पत्नी के शव की उखाड़-खोदी करता हुआ दूरस्थ नगरों में वास्तुकला का प्रयोग करता फिरे!
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