इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
एक अन्य रोचक तथ्य यह है कि ताज की परिसीमा में भी उस शव को पुन: छ: मास के लिए एक अस्थायी कब्र में रखा गया। उसके बाद उसको वहाँ रखा गया, जहां उसे अब रखा हुआ समझा जाता है। ये वे महत्त्वपूर्ण तथ्य हैं जिनका सावधानी से परीक्षण होना चाहिए। यदि शाहजहाँ ने वास्तव में ही १० से २२ वर्ष की अवधि में २० सहस्र श्रमिक नियुक्त करके ताजमहल बनवाया होता तो कोई भी सारे क्षेत्र में फैली हुई निर्माण सामग्री और इधर-उधर चलते-फिरते श्रमिकों की कल्पना कर सकता है। ऐसी स्थिति में क्या किसी मृत महारानी के शव को इस प्रकार नीचे रखना सम्भव था जहाँ कि असंख्य साधारण श्रमिकों के पैरों तले और मलबे के नीचे वह रौंदा जाय?
हमारे विचार में इसका बुद्धिमत्तापूर्ण स्पष्टीकरण यह है कि मृत्यु के तुरन्त बाद ही मुमताज़ को बुरहानपुर में ही जहाँ कि उसकी मृत्यु हुई थी, दफना दिया गया। छ: मास बाद जब शाहजहाँ को लगा कि अपनी पत्नी की मृत्यु का बहाना बनाकर, जयसिंह से उसका भव्य पैतृक प्रासाद खाली कराया जा सकता है, तो उसने जयसिंह पर अपने ऐश्वर्यशाली राजप्रासाद को खाली करने के लिए दबाव डालना आरम्भ किया। क्योंकि जयसिंह पर सरलता से मनमानी नहीं चल सकती थी इसलिए शाहजहाँ ने अपने पत्नी का शव उखाड़कर मंगवा लिया जिससे कि जयसिंह को एक प्रकार से इत्यमेत्थम् दिया जा सके। और जब शव वहाँ पर पड़ा हो और बादशाह एवं समस्त मुसलमान सरदार जयसिंह को धमकियां दे रहे हों, तब वह कब तक उनका मुकाबला कर सकता था? उसे अपना पैतृक प्रासाद समर्पण करना ही पड़ा।
कुछ ही महीनों में इसका मध्यवर्ती अष्टकोणीय सिंहासन-कक्ष खोद डाला गया। इसके गर्भ-गृह में दो गड्ढे खोदे गए और उनमें से एक में मुमताज का उखाड़ा गया शव फिर दफना दिया गया। सिंहासन-कक्ष के गर्भ-गृह के ऊपर दो नकली कनें ऐसी बना दी गई कि वे गर्भ-गृह में स्थित दोनों कब्रों के ऊपर सीधी हों। गर्भ-गृह में दूसरा गड्ढा शाहजहाँ के लिए था। अपने गड्ढे के ऊपर की कब्र तो मुमताज़ की कन के साथ पूर्ण की जा सकती थी, क्योंकि ऊपरी भाग को बिना छेड़े ही शाहजहाँ की मृत्यु के बाद उसका शव अत्यन्त सुविधानुसार उसके अधोभाग में रखा जा सकता था। स्वयं को शान से मुमताज़ के बराबर में दफनाने के लिए ऐसा करना आवश्यक था, क्योंकि उसका कोई भी पुत्र उसे नहीं चाहता था, यह वह जानता था। गर्भ-गृह के ऊपर सिंहासन-कक्ष में नकली कब्र बनानी ही पड़ी थीं क्योंकि यदि ऐसा न किया जाता तो शाही शव नीचे पड़े रहते और ऊपर कक्षों को लोग अस्थायी कार्य के लिए उपयोग करते इससे शवों की पवित्रता नष्ट हो जाती।
वेनिस निवासी निकोलावो मनूसी, शाहजहाँ के दरबार-सम्बन्धी अपने विवरण में, जिसका कि वह प्रत्यक्षदर्शी था, कहता है*-"इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि ताजमहल (अर्थात् मुमताज़) के जीवन-काल में ही पुर्तगाली यदि दरबार में पहुंचे होते तो वह उन सभी को अत्यधिक यातना देने के उपरान्त उनके टुकड़े- टुकड़े करवा देती।"एक ही बात है, वे फिर भी पर्याप्त यातना से बच नहीं पाए। कुछ लोगों ने धर्म परिवर्तन कर लिया वह इसलिए कि या तो मृत्यु के भय से या फिर इस इच्छा से कि उन्हें उनकी पत्नियाँ, जो कि शाहजहाँ ने अपने दरबारियों में बाँट दी थीं, प्राप्त हो जाएंगी। जो उनमें से बहुत ही सुन्दर थीं उनको राजकीय प्रासाद के लिए अलग रख लिया गया।"
* स्टोरिया डो मोगोर या मुगल इण्डिया, १६५३-१७०८, लेखक निकोलावो मनूसी, पृष्ठ १७६-७७
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- प्राक्कथन
- पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
- शाहजहाँ के बादशाहनामे को स्वीकारोक्ति
- टैवर्नियर का साक्ष्य
- औरंगजेब का पत्र तथा सद्य:सम्पन्न उत्खनन
- पीटर मुण्डी का साक्ष्य
- शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
- एक अन्य भ्रान्त विवरण
- विश्व ज्ञान-कोश के उदाहरण
- बादशाहनामे का विवेचन
- ताजमहल की निर्माण-अवधि
- ताजमहल की लागत
- ताजमहल के आकार-प्रकार का निर्माता कौन?
- ताजमहल का निर्माण हिन्दू वास्तुशिल्प के अनुसार
- शाहजहाँ भावुकता-शून्य था
- शाहजहाँ का शासनकाल न स्वर्णिम न शान्तिमय
- बाबर ताजमहल में रहा था
- मध्ययुगीन मुस्लिम इतिहास का असत्य
- ताज की रानी
- प्राचीन हिन्दू ताजप्रासाद यथावत् विद्यमान
- ताजमहल के आयाम प्रासादिक हैं
- उत्कीर्ण शिला-लेख
- ताजमहल सम्भावित मन्दिर प्रासाद
- प्रख्यात मयूर-सिंहासन हिन्दू कलाकृति
- दन्तकथा की असंगतियाँ
- साक्ष्यों का संतुलन-पत्र
- आनुसंधानिक प्रक्रिया
- कुछ स्पष्टीकरण
- कुछ फोटोग्राफ