इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
लेखक का यह विश्वास गलत है कि १०५७ हिजरी (१६४८ ई.) में, ताजमहल के पूर्ण होने की तिथि सामने के प्रवेश-द्वार पर खुदी हुई है, इससे केवल यही आभास मिलता है, यदि हुआ है तो, कि हिन्दू प्रासाद पर कुरान की आयतों की खुदाई उस तिथि को पूर्ण हुई। कलाकार इस सम्बन्ध में अस्पष्टता, संक्षेप में अपराध-भावना से मौन हैं। यह सन्देह कि ताजमहल को पूर्ण होने में १८ वर्ष लगे, प्रत्यक्षतया इस तिथि पर आधारित होने से सर्वथा गलत है। १६३० में ताजमहल के निर्माण का आरम्भ मानना स्पष्टतया भूल है, क्योंकि यह सब जानते हैं कि मुमताज़ कदाचित् १६३२ तक जीवित रही। और फिर योजना पर विचार करने, रेखाचित्र बनाने, भूमि प्राप्त करने, अन्य सामग्री एकत्रित करने, श्रमिकों को एकत्रित करने और निर्माण प्रारम्भ करने में कम-से-कम एक-दो वर्ष तो लगने चाहिए। अत: यह विवरण भी यही सिद्ध करता है कि ताजमहल से सम्बन्धित शाहजहाँई कथानक झूठा और वाहियात है। यह १८ वर्ष का दावा भी टैवर्नियर के इस दावे कि ताजमहल को बनने में २२ वर्ष लगे, के विरुद्ध है।
यह पारम्परिक कथन कि शाहजहाँ मुमताज के प्रति शोकाकुल था, कुतर्क का विचित्र उदाहरण है, जो कि झूठा है। यह कल्पना इस विश्वास से उत्पन्न हुई कि ताजमहल नामक एक सुन्दर मकबरे का निर्माता शाहजहाँ था। उस झूठ को सहारा देकर स्थायी रखने के लिए अन्य कल्पनाएँ कर ली गई। किन्तु वे सभी कल्पनाएँ परस्पर विरोध एवं असंगत हैं जैसाकि असत्य का अवश्यम्भावी परिणाम होता है। जो कल्पना यहाँ उभारी गई वह यह है कि शाहजहाँ का मुमताज़ के प्रति विशेष तथा नितान्त प्रेम था, इसका अभिप्राय केवल यह सिद्ध करना है कि उसकी स्मृति में बहुमूल्य स्मारक बनवाया गया। यदि वह उस पर इतना अनुरक्त होता तो इतिहास में इसका उल्लेख प्राप्त होता। किन्तु इस सम्बन्ध में कहीं एक शब्द भी नहीं है। केवल-मात्र विशिष्ट प्रेम, यदि कोई है तो मुगल दरबार के कथानकों में केवल जहाँगीर और उसकी रखेल नूरजहाँ का है। जहाँ तक शाहजहाँ का सम्बन्ध परम्परा मिथ्या आधार पर आरम्भ होती है जैसे कि उसने ताजमहल बनवाया। फिर उसको स्पष्ट करने के लिए-अर्थात् इस पर व्यय हुई असंख्य राशि को प्रामाणिक सिद्ध करने के लिए, और इसकी सुन्दरता-यह अनुमान लगाया जाता है कि वह उसके प्रति अत्यन्तरूपेण आसक्त था। 'कुतर्क' से हमारा यही अभिप्राय है।
अपने वैवाहिक जीवन की १८ वर्ष की अवधि में उसको १४ बच्चे हुए जिसमें ७ जीवित रहे। इसका अभिप्राय है कि कोई भी वर्ष उसका गर्भावस्था के बिना नहीं रहा। इससे अपनी पत्नी के स्वास्थ्य के प्रति शाहजहाँ का उपेक्षा भाव प्रकट होता है। और तो और, अंतिम प्रसव के उपरान्त उसका प्राणान्त ही हो गया। उस समय वह केवल ३७ वर्ष की थी।* क्योंकि उसका प्राणान्त बुरहानपुर में हुआ था। उसका शव वहीं दफनाया गया। यदि शाहजहाँ को उसकी तनिक भी परवाह होती तो वह वहीं उसका स्मारक बनवाता जहाँ उसकी पत्नी को पहले दफनाया गया था। ६ मास बाद शव को आगरा ले जाने के लिए उखाड़ा गया, जो इस्लाम के के नियमों का अनादर और उल्लंघन था। वास्तव में, जैसाकि परम्परागत कथानक में उल्लेख है, यदि ताजमहल को बनने में १० से २२ वर्ष लगे, तो मृत्यु के छ: मास बाद ही शव को मूल कन से उखाड़कर आगरा क्यों लाया गया? किस बात की त्वरा थी?
* पिछली पाद-टिप्पणी में हमने दिखाया है कि किस प्रकार मुल्ला अब्दुल हमीद दावा करता है कि मुमताज अपनी मृत्यु के समय ४० वर्ष में (३७वें नहीं) थी।
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- प्राक्कथन
- पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
- शाहजहाँ के बादशाहनामे को स्वीकारोक्ति
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- शाहजहाँ भावुकता-शून्य था
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