इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
मौलवी मोइनुद्दीन की पुस्तक के पृष्ठ २१ पर अंकित है-"मकबरे के चारों ओर सोने की रेलिंग थी (बाद में उसके स्थान पर संगमरमर की जालियाँ लगवा दी गईं) जो १६३२ तक तैयार हो गई थी और शाहजहाँ ने मकबरे के रख-रखाव के लिए एक उपनगर की स्थापना की जिससे कि धनोपार्जन हो सके तथा आसपास की पहाड़ियों को इसलिए समतल करवा दिया कि वे उस उपनगर के विकास में बाधक सिद्ध न हों. ये विवरण विशेष महत्त्व के हैं, क्योंकि किसी अंग्रेज पर्यटक द्वारा प्रस्तुत इस समय का कोई अन्य विवरण उपलब्ध नहीं है।"
प्रसंगवशात् उपरिलिखित विवरण में जो 'पहाड़ी' शब्द आया है, वे वास्तव में राजपूत निर्माताओं द्वारा ताज की सुरक्षा के लिए बनाई गई थीं। ताज के समीप अभी भी उनमें से कुछ पहाड़ियाँ विद्यमान हैं।
यहाँ पर इन पहाड़ियों की स्थापना का उद्देश्य था कि शिलाक्षेपक यन्त्रों को निकट लाकर हिन्दू भवन पर शिलाओं की वर्षा को रोका जा सके।
इन सुरक्षात्मक पहाड़ियों के अतिरिक्त ताजप्रासाद की सुरक्षा के लिए एक अन्य सुरक्षा-सज्जा थी, वह थी परिखा। जबकि पृष्ठ भाग में स्वयं यमुना नदी परिखा का कार्य करती थी। ताजमहल के पूर्व की ओर लाल पत्थरों की दीवार के बाहर एक सूखी परिखा आज भी देखी जा सकती है।
ये सुरक्षात्मक संरचनाएँ भी यही सिद्ध करती हैं कि ताजमहल का निर्माण राजप्रासाद के रूप में हुआ था, मकबरे के रूप में नहीं।
उपर्युक्त उद्धरण का विवेचनात्मक अध्ययन आश्चर्यजनक है। कोई चांदी के द्वारों की चर्चा करता है तो कोई मकबरे के चारों ओर सोने की रेलिंग की। यदि इनको शाहजहाँ द्वारा लगाया गया होता तो इसका कोई कारण और ऐसा उल्लेख भी नहीं कि क्यों और किसने उनको वहाँ से हटाया?
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