इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
उसी ४०वीं पंक्ति में निहित शब्द 'नींव रखी' स्वयं में स्पष्ट हैं। वे एक नहीं दो अर्थों में प्रयुक्त हुए हैं। प्रथमतः, शव सदा किसी गर्त में ही दाबा जाता है, अत: गर्त को भरने के लिए शव के ऊपर मिट्टी डालने की क्रिया 'कन की नींव रखी' मानी जाएगी। द्वितीयत: इसका एक अर्थ लाक्षणिक भी है। हिन्दू प्रासाद में शव को दफनाकर शाहजहाँ ने मुसलमानी कब्र की नींव रखी। नींव रखी' जैसा लाक्षणिक किन्तु साभिप्राय शब्द-प्रयोग असामान्य नहीं है। उदाहरणार्थ कोई कह सकता है कि अपनी विजय-यात्राओं द्वारा नेपोलियन ने फ्रैंच-साम्राज्य की नींव रखी। क्या इसका अभिप्राय यह है कि नेपोलियन ने फ्रैंच-साम्राज्य के भवन के लिए ईंट, गारे और पत्थरों का आदेश दिया था। इसी प्रकार शाहजहाँ ने किसी प्रकार की भवन-निर्माण सामग्री के लिए आदेश दिये बिना अपनी पत्नी की कब्र की नींव रखी। क्योंकि उसने इस कार्य के लिए एक अधिकृत भवन को चुन लिया था। यह भी ध्यान में रखने की बात है कि अनेक मुस्लिम कथाकारों ने 'नींव रखी' जैसे भ्रामक शब्द का प्रयोग कर इस झूठ को प्रचलित करने का प्रयत्न किया कि मुसलमान बादशाहों ने बड़े-बड़े भवन निर्माण कराए।
यह ऐसा है कि जिसके विषय में हम सभी इतिहासकारों से आग्रह करेंगे कि वे इनकी तार्किक एवं वैधानिक व्याख्या करें। आज तक हमारे इतिहासकार अनुपयुक्त पद्धति से शब्दावलियों और वाक्य पंक्तियों की गलत व्याख्या, महत्त्वपूर्ण उद्धरणों की उपेक्षा, अवास्तविकता के संसार में काल्पनिक अनुमान, साधारण और स्वाभाविक अर्थों की तोड़-मरोड़, तर्कसंगत एवं वैधानिक साक्ष्य की ओर से आँखें मूंदकर धोखेबाज तथा असत्य वक्ताओं पर विश्वास करते रहे। यदि भारतीय इतिहास को इसकी अनेक गलत धारणाओं एवं संकेतों से मुक्त करना है तो ऐसी असन्तोषकारक एवं असंगत पद्धति का पूर्णत: परित्याग करना होगा।
भवन पर व्यय किए गए जिन ४० लाख रुपयों की जो बात बादशाहनामे में मिलती है, उसका स्पष्टीकरण भी सहज है। हम अपने पाठकों को आरम्भ में ही सूचित कर देना चाहते हैं कि मुसलमानी दरबारी इतिहासकारों की अपने राजकीय संरक्षकों की अतिशयोक्तिपूर्ण प्रशंसा में आँकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर कहने अथवा बताने की सबसे बड़ी दुर्बलता रही है।*
* इलियट एण्ड डौसन के इतिहास, खण्ड ६, पृष्ठ २५३ पर लिखा है-डे सैकी भी सम्पत्ति खर्च, हाथियों तथा घोड़ों की संख्या, भवनों के मूल्य आदि के विषय में अपने संस्मरणों (मैायर्स ऑफ जहाँगीर) जिनका प्राइस ने अनुवाद किया है, एन्डरसन के सार में दिए गए उचित विवरण से तुलना करने पर, अतिशयोक्ति का उल्लेख करता है।
इन अतिशयोक्तियों को ध्यान में रखते हुए हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि उस मकबरे को बनाने में लगभग तीस लाख रुपए व्यय हुए होंगे।
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