इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
जहाँ तक टैवर्नियर का यह कथन कि उसने "वृहद् कार्य का आरम्भ और समापन देखा था" इसका प्रश्न है, उसने स्पष्टतया संकेत किया है कि वह कार्य विशाल प्रासाद के भीतर और बाहर मचान बंधवाने, दीवारों पर कुरान की आयतें अंकित करने और फिर उस मचान को तुड़वाने के अतिरिक्त अधिक कुछ नहीं था। यह बात उसके इस स्पष्ट कथन से साफ हो जाती है कि "मचान बाँधने पर हुआ व्यय ही सारे कार्य के व्यय से अधिक था।"जैसा कि आज हम इसे देखते हैं यदि शाहजहाँ ने ताजमहल बनवाया था तो टैवर्नियर जैसे किसी भी यात्री का यह कहना निरर्थक हो जाता है कि समूचे कार्य की अपेक्षा मचान बाँधने का व्यय अधिक हुआ। वह भवन जिसके निर्माण के लिए मचान बनवाई जाए उसके सम्पूर्ण व्यय से मचान बाँधने का व्यय वास्तव में बहुत कम हुआ करता है। विपरीत इसके टैवर्नियर कहता है कि मचान बाँधना महंगा पड़ा। यह एक ठोस प्रमाण है कि यह 'सम्पूर्ण कार्य' कुरान की आयतें खुदवाने, दफन के लिए कब्र खुदवाने और एक गुम्बद बनवाने के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं था। इस प्रकार हम देखते हैं कि सभी असंगतियों तथा कपिल्पत गल्पों की व्याख्या सत्य की सहायता लेकर किस प्रकार की जा सकती है।
जहाँ तक मुस्लिम विवरण के कल्पित होने का प्रश्न है हमें सर एच. एम. इलियट* डॉ. टेसीटोरी और डॉ. एस. एम. सेन** जैसे लब्धप्रतिष्ठ इतिहासकारों ने बताया है कि उन पर कभी भी विश्वास नहीं किया जा सकता।
* इलियट एण्ड डौसन का इतिहास, भाग ८। प्राक्कथन में सर एच. एम. इलियट लिखते हैं कि भारत में मुस्लिम काल का इतिहास ढीठ और रोचक धोखा है
* इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस के १९३८ के इलाहाबाद अधिवेशन की कार्यवाही में डॉ. एस. एम. सेन ने अपने अध्यक्षीय भाषण में इटालियन विद्वान् डॉ. टेसीटोरी के इस उद्धरण से अपनी सहमति व्यक्त की कि मुस्लिम इतिहास-लेखक बहुत ही अविश्वसनीय हैं और बिना संगति के उनके शब्दों पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए।
यदि शाहजहाँ ने "जानबूझकर तासी मकान, जहाँ सभी विदेशी आते हैं, के निकट मकबरा बनवाया जिससे कि सम्पूर्ण विश्व इसे देखे और इसकी प्रशंसा करे'', तो प्रश्न यह उठता है कि क्या शोकाकुल और दुःख से पीड़ित शाहजहाँ को यदि उसने वास्तव में मकबरा बनवाया था तो, अपनी बीवी के लिए एक निर्जन और शान्त स्थान की खोज होती अथवा वह किसी भ्रमणशील निम्नस्तरीय विनोदक की भाँति व्यवहार करता? क्या वह अपनी पत्नी की मृत्यु को सार्वजनिक मनोरंजन का उद्देश्य बनाना चाहता था?
यह भी कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि अपहत हिन्दू प्रासाद की निरर्थक पच्चीकारी में १०, १२, १३, १७ या २२ वर्ष का समय लग गया हो जैसा कि विभिन्न विवरणों में बताया गया है, क्योंकि अपव्ययी मुगलों की अपेक्षा शाहजहाँ महाकंजूस, घमण्डी तथा हठीला बादशाह था। इसके अतिरिक्त कोई भी मुगल बादशाह अपने हरम की पाँच हजार बेगमों और रखेलों में से प्रत्येक की मृत्यु पर इस प्रकार इतनी अधिक राशि व्यय नहीं कर सकता था।
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- प्राक्कथन
- पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
- शाहजहाँ के बादशाहनामे को स्वीकारोक्ति
- टैवर्नियर का साक्ष्य
- औरंगजेब का पत्र तथा सद्य:सम्पन्न उत्खनन
- पीटर मुण्डी का साक्ष्य
- शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
- एक अन्य भ्रान्त विवरण
- विश्व ज्ञान-कोश के उदाहरण
- बादशाहनामे का विवेचन
- ताजमहल की निर्माण-अवधि
- ताजमहल की लागत
- ताजमहल के आकार-प्रकार का निर्माता कौन?
- ताजमहल का निर्माण हिन्दू वास्तुशिल्प के अनुसार
- शाहजहाँ भावुकता-शून्य था
- शाहजहाँ का शासनकाल न स्वर्णिम न शान्तिमय
- बाबर ताजमहल में रहा था
- मध्ययुगीन मुस्लिम इतिहास का असत्य
- ताज की रानी
- प्राचीन हिन्दू ताजप्रासाद यथावत् विद्यमान
- ताजमहल के आयाम प्रासादिक हैं
- उत्कीर्ण शिला-लेख
- ताजमहल सम्भावित मन्दिर प्रासाद
- प्रख्यात मयूर-सिंहासन हिन्दू कलाकृति
- दन्तकथा की असंगतियाँ
- साक्ष्यों का संतुलन-पत्र
- आनुसंधानिक प्रक्रिया
- कुछ स्पष्टीकरण
- कुछ फोटोग्राफ