इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
हम पाठकों को बतलाना चाहते हैं कि इस पुस्तक में हम ताजमहल से सम्बन्धित कोई भी विवरण अथवा सूचना, चाहे वह कल्पित हो अथवा विश्वसनीय, उसकी उपेक्षा नहीं करेंगे। अपने पूर्ववर्ती इतिहासकारों की भाँति हम अनेक परस्पर विरोधी विवरणों को भी यों ही नहीं छोड़ देंगे। वास्तव में उन कथानकों का यह दिखाने के लिए हम स्वागत करेंगे कि झूठे और कल्पित विवरणों की तर्कसंगत व्याख्या तथा सत्य की सहायता से उनमें किस प्रकार सन्धि स्थापित की जा सकती है।
मुस्लिम वृत्तान्त यह मानने पर सही हो सकते थे कि मुमताज़ का शव उसकी मृत्यु के कुछ ही मास बाद आगरा लाया गया था। उसे तभी लाया जा सकता था जब यदि कोई मकबरा तैयार हो और उपलब्ध हो। यदि शाहजहाँ को नए मकबरे की नींव ही खुदवानी पड़ी होती तो कब में शान्ति से पड़े हुए शव को नहीं लाया जाता। यदि उसको नया मकबरा ही बनवाना होता तो उसमें दफनाने के लिए मुमताज का शव १२ या १३ वर्ष बाद ही आगरा लाया जाता जैसाकि कुछ लोगों द्वारा यह कहा गया कि ताजमहल को तैयार होने में इतना समय लगा था।
अधिकृत हिन्दू प्रासाद के रूप में मकबरा पहले ही तैयार था, यह हम शाहजहाँ के अपने दरबारी इतिहास-लेखक मुल्ला अब्दुल हमीद को उद्धृत करके पहले ही प्रमाणित कर चुके हैं।
छ: मास की अवधि जो मुमताज़ के शव को बुरहानपुर से आगरा लाने में बीती उसके विषय में यह कहा जा सकता है कि वह समय राजप्रासाद को उसके वास्तविक वैधानिक स्वामी जयसिंह से खाली करवाने तथा मुमताज को दफनाने के लिए उसके गर्भगृह में कब्र खोदने में लगा।
आगरा पहुँचने पर, जैसा कि शाहजहाँ का दरबारी इतिहास-लेखक हमें बताता है, मुमताज़ को मानसिंह के ऊँचे गुम्बदवाले प्रासाद में दफनाया गया, जो उस समय उसके पौत्र जयसिंह के अधिकार में था। इस विवरण के अनुसार शव के आगरा पहुँचने और ऊँचे गुम्बदवाले हिन्दू भवन में उसको दफनाने में कुछ भी समय नहीं खोया गया अतः इससे स्पष्ट है कि ताजमहल के निर्माण से सम्बन्धित सभी मुस्लिम- वृत्तान्त कल्पित हैं। हम उनका विस्तारपूर्वक विश्लेषण करते हुए इसको सिद्ध करेंगे।
मुमताज के कब्र से निकाले हुए शव को आगरे के हिन्दू प्रासाद में दफनाकर शाहजहाँ को आगामी परिवर्तन शीघ्रता से करवाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। कारीगर, जिनके नाम मुस्लिम-वृत्तान्तों में उपलब्ध हैं, वे उनके नाम हैं जिन्होंने भूगर्भ में कब्र की खुदाई की, उसे बनाया और ताजमहल के मेहराबों तथा दीवारों पर कुरान की आयतें खोदीं। इस सीमा तक तो शिल्पकारों और कारीगरों के जो नाम विभिन्न विवरणों में उपलब्ध होते हैं, वे सत्य हो सकते हैं।
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