इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
यह है वह जो टैवर्नियर ने लिखा है* :
'आगरा के सभी मकबरों में, जिन्हें देखने के लिए दर्शक आते हैं, शाहजहाँ की पत्नी का मकबरा सर्वाधिक सुन्दर है। उसने इसे जानबूझकर तासी मकान, जहाँ कि सभी विदेशी आते हैं, उसके निकट बनवाया, जिससे कि सारा संसार इसे देखे और इसकी प्रशंसा करे। तासी मकान छ: बड़े-बड़े आँगनोंवाला वृहदाकर बाजार है। सभी आँगन ड्योढ़ियों से घिरे हैं जिनके अन्दर व्यापारियों के उपयोग के लिए कक्ष बने हैं और वहाँ प्रचुर मात्रा में रुई का व्यापार होता है। मैंने स्वयं इस वृहद् निर्माण कार्य को जिसे २२ वर्षों में २० सहस्र श्रमिकों ने निरन्तर कार्य करके पूर्ण किया, आरम्भ और समाप्त होते देखा है। किसी व्यक्ति को इसकी वास्तविकता जानने के लिए कि इस पर अपार धन व्यय हुआ है, इतना पर्याप्त है। ऐसा कहा जाता है कि मात्र मचान बाँधने का खर्चा सारे खर्च से अधिक था, क्योंकि लकड़ी के अभाव में सभी मचानों के साथ ही मेहराबों के अवलम्ब भी ईंटों के बनवाने पड़े। इस कार्य में अत्यधिक श्रम और व्यय करना पड़ा।"शाहजहाँ ने अपने लिए भी नदी के दूसरी ओर एक मकबरा बनवाना आरम्भ किया, किन्तु उस लड़ाई के कारण जो उसके अपने ही लड़कों के साथ हुई, उसी योजना में बाधा उपस्थित हो गई।"
* ट्रैवल्स इन इंडिया, भाग १, पृ.१०९-१११, लेखक जीन बैपटिस्ट टैवर्नियर, औबोन का ताल्लुकेदार, १९७६ के फ्रैंच संस्करण से लेखक के जीवन-वृत्त, नोट्स, परिशिष्ट इत्यादि सहित डॉ. बी. बाल, एल. एल. डी., एफ. आर. एस., एम. जी. एस. द्वारा अनुवादित तथा मैकमिलन एण्ड कं. लन्दन द्वारा १८८९ में दो भागों में प्रकाशित।
हमें उपरिलिखित उद्धरण का बड़ी ही समालोचनात्मक दृष्टि से परीक्षण करना चाहिए। इसका परीक्षण करते समय हमें यह ध्यान में रखना होगा कि पूर्व अध्याय में उद्धृत महाराष्ट्रीय ज्ञान-कोश में कहा गया है कि टैवर्नियर के किसी प्रकार के विद्वान् न होने के कारण उसका ध्यान केवल सम्पदा एवं वाणिज्य की ओर ही आकृष्ट हुआ था।
जैसा कि पूर्ववर्ती अध्याय में उल्लेख किया गया है कि मुमताज की मृत्यु १६२९ अथवा १६३२ में होने से उसका शव पहले बुरहानपुर के एक खुले उद्यान में दफनाया गया। लगभग छ: मास बाद (जैसा वे कहते हैं) उसे आगरा ले जाया गया। इसका अभिप्राय यह हुआ कि १६३२ के अन्त से पूर्व मुमताज़ का शव आगरा पहुँच गया था। अब यदि हम टैवर्नियर के इस कथन पर विश्वास करें कि उसने 'निर्माण- कार्य आरम्भ होते देखा था' (१६४१ में उसके भारत आने के बाद) तो निश्चय ही मुमताज का शव लगभग एक दशक तक धूप तथा वर्षा आदि में खुला पड़ा रहा होगा। यहाँ पर हमें एक अन्य कठिनाई का भी सामना करना पड़ रहा है कि टैवर्नियर के विवरण और मुसलमानी विवरणों में पर्याप्त विरोधाभास है। मुसलमानी वृत्तान्त के अनुसार जल्दी-से-जल्दी ताजमहल का निर्माण १६४३ में पूर्ण हुआ।
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- प्राक्कथन
- पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
- शाहजहाँ के बादशाहनामे को स्वीकारोक्ति
- टैवर्नियर का साक्ष्य
- औरंगजेब का पत्र तथा सद्य:सम्पन्न उत्खनन
- पीटर मुण्डी का साक्ष्य
- शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
- एक अन्य भ्रान्त विवरण
- विश्व ज्ञान-कोश के उदाहरण
- बादशाहनामे का विवेचन
- ताजमहल की निर्माण-अवधि
- ताजमहल की लागत
- ताजमहल के आकार-प्रकार का निर्माता कौन?
- ताजमहल का निर्माण हिन्दू वास्तुशिल्प के अनुसार
- शाहजहाँ भावुकता-शून्य था
- शाहजहाँ का शासनकाल न स्वर्णिम न शान्तिमय
- बाबर ताजमहल में रहा था
- मध्ययुगीन मुस्लिम इतिहास का असत्य
- ताज की रानी
- प्राचीन हिन्दू ताजप्रासाद यथावत् विद्यमान
- ताजमहल के आयाम प्रासादिक हैं
- उत्कीर्ण शिला-लेख
- ताजमहल सम्भावित मन्दिर प्रासाद
- प्रख्यात मयूर-सिंहासन हिन्दू कलाकृति
- दन्तकथा की असंगतियाँ
- साक्ष्यों का संतुलन-पत्र
- आनुसंधानिक प्रक्रिया
- कुछ स्पष्टीकरण
- कुछ फोटोग्राफ