इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
५. तदपि एक अन्य विवरण भी प्राप्त होता है जो ताजमहल का निर्माण- काल १७ वर्ष अनुमानित करता है। इसका उल्लेख श्री अरोड़ा की पुस्तक में है। वे लिखते हैं-"शाहजहाँ ने अपने शासनारूढ़ होने के चतुर्थ वर्ष १६३१ में ताजमहल का निर्माण आरम्भ करवाया। दूरस्थ देशों के अनेक कलाविदों ने अनेक नमूने बनाए किन्तु आफंदी का ही नमूना स्वीकार किया गया। उसके आधार पर मुमताज़ के मृत्यु-वर्ष १६३० में ही एक कोष्ठ का नमूना तैयार किया गया है। भव्य मकबरा १६४८ में पूर्ण हुआ।"
* सिटी ऑफ दी ताज, ले. आर. सी. अरोड़ा, मुद्रक हिबर्नियन प्रेस, १५ पुर्तुगीज चर्च स्ट्रीट, कलकत्ता।
यह निश्चय नहीं है कि मुमताज़ की मृत्यु १६३० में हुई। यदि यह अनुमान लगा लिया जाए कि १६३० में उसकी मृत्यु हुई तो यह लगभग वर्ष के अन्त में हुई होगी। इस स्थिति में बादशाह के लिए यह सम्भव है कि उसने अपने स्वप्नलोक के मकबरे का निर्माण सोचा हो, उसके लिए बहुत बड़ी राशि स्वीकृत की गई हो, अपनी योजना की दूर-दूर तक घोषणा की हो, कलाकारों द्वारा योजना बनवाई गई हो, उनको शाहजहाँ के पास भेजा गया हो, उनमें से जैसा कि हमें बताया गया है, उसने एक को स्वीकार किया हो, तब एक कोष्ठाकृति तैयार की गई हो, आवश्यक कर्मचारी एकत्रित किए गए हों, अनेक प्रकार की प्रचुर मात्रा में निर्माण- सामग्री एकत्रित करवाई गई हो, कार्य आरम्भ करवाया गया हो, सबकुछ १६३० में ही, क्या यह सम्भव है? यह मनघड़न्त गल्प है कि इतिहास? क्या शाहजहाँ को अपने शासनारूढ़ होने के दो वर्ष के भीतर इतनी शान्ति और सुरक्षा प्राप्त थी जो वह इस प्रकार के भावुक कार्य को सम्पन्न करा सकता? आधुनिक काल में भी, जबकि आवागमन के साधन सुलभ हैं तथा असंख्य शिल्प तथा अभियान्त्रिको के विद्यालय विद्यमान हैं, जहाँ प्रवीण शिल्पकला-विशेषज्ञ उपलब्ध हो सकते हैं, क्या इतनी शीघ्रता से यह सब सम्भव है ? दुर्भाग्य की बात है कि ऐसी विसंगतियाँ होने पर भी किसी इतिहासकार के मन में वे किसी प्रकार का सन्देह उत्पन्न नहीं करा सकीं।
६. ऐसा ही एक विवरण हमें दि कोलम्बिया लिपिंगकौट गजेटियर* में प्राप्त है। और कुछ नहीं तो, अन्यों की अपेक्षा इसमें कुछ निश्चितता है। वह लिखता है-"सुन्दर ताजमहल (१६३०-७८ में निर्मित) संभवतः संसार में सर्वाधिक आकर्षक मकबरा है.." आदि-आदि। जो तर्क ऊपर दिए जा चुके हैं वे सब इस गजेटियर के उल्लेख पर भी लागू होते हैं। जैसे कि यह निश्चित नहीं है कि मुमताज़ १६३० में मरी थी, तब एक ही वर्ष के भीतर मकबरे की योजना करना, उसमें से एक को चुनना, भवन- निर्माण सामग्री मँगवाना आदि-आदि कैसे सम्भव हो सका?
उपरिलिखित उदाहरण पाठकों के विचारार्थ पर्याप्त हैं कि ताजमहल की निर्माणावधि से सम्बन्धित सभी विवरण परस्पर विरोधी, असंगत, भद्दे एवं अव्यवस्थित हैं।
हमारी अवधारणा के अनुसार वास्तविक सत्य इन सब विरोधाभासों का भ्रमजाल तोड़कर एक सर्वसम्मत विवरण प्रस्तुत कर सकता है। हमारा स्पष्टीकरण यह है कि जब एक बार मुमताज़ को हिन्दू प्रासाद में दफना दिया गया तब सम्भव है कि उसकी कब्र को ढकने, नकली कब्र बनवाने, कुरान की आयतें खुदवाने आदि की अनियमितता एवं संकोचशीलता के कारण इसमें १०, १२, १३, १७ या २२ वर्ष लग गए हों। जब कभी भी किसी भवन में परिवर्तन, पुनर्नवीनीकरण और मरम्मत (ताजमहल की स्थिति में यह सब अनुपयुक्त हैं) होती है, तो नए मालिक की इच्छानुसार यह कार्य शनैः-शनै: होता है और वर्षों तक चलता है। जो विभिन्न विवरण हमने इससे पूर्व उद्धृत किए हैं, इस दृष्टि से उनके सत्य होने का आभास-सा होता है।
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