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ताजमहल मन्दिर भवन है

पुरुषोत्तम नागेश ओक

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15322
आईएसबीएन :9788188388714

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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...


कीन अपनी हैंडबुक के पृष्ठ १५४ पर लिखता है-"श्रमिक बलात् काम पर लगाए गए और कर्मचारियों को नकद बहुत थोड़ा दिया जाता था जबकि उनका दैनिक भत्ता लुटेरे अधिकारियों द्वारा काट लिया जाता था। अत्यल्प भोजन और अत्यधिक परिश्रम की पीड़ा से वे कालकवलित होते रहते थे। मरणासन्न एवं निराशा की अवस्था में वे मुमताज की स्मृति को कोसने में यह कहकर चीखते होंगे-

दया कर हे दीनबन्धु! हम निरीहों पर।
दी जा रही है हमारी बलि बेगम के मजार पर।


क्योंकि इस प्रकार मरनेवालों का अनुपात अत्यधिक था इसलिए कोई आश्चर्य की बात नहीं कि समय-समय पर भूखे पेट काम करने वाले मजदूरों के जत्थों की खोज की जाती रहती होगी। इसमें भी आश्चर्य नहीं कि जब आयतें खुदवाने का कार्य पूर्ण हुआ हो तब तक कुल मिलाकर काम करनेवालों की संख्या २० हजार तक पहुंच गई हो और उनमें से बहुत सारे भूख और चाबुकों की मार से मरते रहे होंगे। यह भी आश्चर्य नहीं कि इस कारण उस छोटे-से कार्य में विभिन्न विवरणों के अनुसार १० से २२ वर्ष लग गए हों। यह सब स्वाभाविक ही है कि जब वर्ष-भर प्रत्येक दिन सेना की टुकड़ी ऐसे व्यक्तियों की खोज में जाती रहती थी कि जिनसे बेगार करवाई जा सके, तब वे विलाप करते होंगे, विद्रोह करते होंगे, मर जाते होंगे या फिर भाग जाते होंगे। जो शासक दीन श्रमिकों के प्रति दयावान नहीं और उनको पारिश्रमिक न देता हो उससे क्या यह आशा की जाती है कि वह ताजमहल जैसे भव्य-भवन का निर्माण कराए?

वह क्रूर तथा अत्याचारी शासक जिसके आदेश पर उन श्रमिकों ने हिन्दू भवन को मुस्लिम मकबरे जैसा बना दिया, उसे उसके जीवन की किंचित् भी चिन्ता नहीं थी। अपने श्रम का पारिश्रमिक माँगने पर उसने उनके हाथ कटवाकर उन्हें दण्डित कर दिया। उनके हाथ उनको यह शिक्षा देने के लिए काट दिए गए जिससे कि वे स्थायी रूप से अपनी जीविका अर्जन करने में असमर्थ हो जाएँ और अपने पूर्वजों से चली आ रही तथा उनसे सीखी उस कला का न वे स्वयं उपयोग कर सकें और न भावी पीढ़ी को ही भविष्य में सिखा सकें। अधिकांश शिल्पी हिन्दू थे अत: उन्हें मारकर अथवा अपंग बनाकर शाहजहाँ ने मुस्लिम विश्वास के आधार पर अपने मुस्लिम धर्म का पालन करने में गर्व अनुभव किया होगा।

मौलवी मोइनुद्दीन की पुस्तक (पृष्ठ १७) में भी क्रूरता का उल्लेख है। वह लिखता है-"कतिपय योरोपियन लेखकों ने ताजमहल के निर्माण के सम्बन्ध में निन्दनीय आक्षेप किए हैं। ऐसा कहा जाता है कि कर्मचारियों ने बहुत कष्ट सहे। उनको भूखा रखा गया और उनके साथ निर्दयता का व्यवहार किया गया।"

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    अनुक्रम

  1. प्राक्कथन
  2. पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
  3. शाहजहाँ के बादशाहनामे को स्वीकारोक्ति
  4. टैवर्नियर का साक्ष्य
  5. औरंगजेब का पत्र तथा सद्य:सम्पन्न उत्खनन
  6. पीटर मुण्डी का साक्ष्य
  7. शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
  8. एक अन्य भ्रान्त विवरण
  9. विश्व ज्ञान-कोश के उदाहरण
  10. बादशाहनामे का विवेचन
  11. ताजमहल की निर्माण-अवधि
  12. ताजमहल की लागत
  13. ताजमहल के आकार-प्रकार का निर्माता कौन?
  14. ताजमहल का निर्माण हिन्दू वास्तुशिल्प के अनुसार
  15. शाहजहाँ भावुकता-शून्य था
  16. शाहजहाँ का शासनकाल न स्वर्णिम न शान्तिमय
  17. बाबर ताजमहल में रहा था
  18. मध्ययुगीन मुस्लिम इतिहास का असत्य
  19. ताज की रानी
  20. प्राचीन हिन्दू ताजप्रासाद यथावत् विद्यमान
  21. ताजमहल के आयाम प्रासादिक हैं
  22. उत्कीर्ण शिला-लेख
  23. ताजमहल सम्भावित मन्दिर प्रासाद
  24. प्रख्यात मयूर-सिंहासन हिन्दू कलाकृति
  25. दन्तकथा की असंगतियाँ
  26. साक्ष्यों का संतुलन-पत्र
  27. आनुसंधानिक प्रक्रिया
  28. कुछ स्पष्टीकरण
  29. कुछ फोटोग्राफ

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