इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
उत्तर भारत के आगरा नगर में यमुना नदी के तट पर एक सुन्दर भव्य भवन खड़ा है, जो ताजमहल नाम से विख्यात है। भारत में आनेवाले पर्यटकों का यह प्रमुख आकर्षण केन्द्र तथा विश्व में अति प्रसिद्ध भवनों में एक है। तीन सौ वर्ष के भ्रामक प्रचार के दबाव के फलस्वरूप दर्शकों का ध्यान इसके अन्य विशेष लक्षणों को छोड़कर केवल उन दो कब्रों की ओर ही केन्द्रित किया जाता है जो इस भवन के अन्दर हैं। परिणामस्वरूप इसके इतिहास तथा शिल्पकला, इन दोनों के विस्तृत अध्ययन में अपार क्षति हुई है।
जब तक हमने विश्व की जनता और शासकों के दृष्टिकोण को अपनी १९६५ में प्रकाशित पुस्तक 'ताजमहल राजपूती महल था' द्वारा सावधान नहीं किया, तब तक सर्वत्र यही विश्वास किया जाता था कि ताजमहल मौलिकतया मुस्लिम मकबरा ही है। अभिज्ञ सामान्य दर्शक तो केवल पारम्परिक सार्वलौकिक किंवदन्तियों पर विश्वास करता है कि ताजमहल का निर्माण भारत के पाँचवें मुगल-शासक शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज के प्रति रसिक वृत्ति के कारण हुआ है। उनका विश्वास है कि उसकी मृत्यु पर निराश बादशाह ने उसकी स्मृति में अपने प्रेम का प्रतीक यह विस्तीर्ण और विशाल ताजमहल बनवाया था।
इतिहास और पुरातत्त्व से सम्बन्धित इतिहास के छात्र, शिक्षक, विद्वान्, अनुसन्धानकर्ता तथा शासकीय अधिकारी भी सामान्य दर्शक से अधिक जानकारी कदाचित् ही रखते हैं। इतिहास के अध्यापक और अधिकारी ताजमहल के विषय में अधिकाधिक मिथ्या विवरण ही अपनी स्मृति में लिए फिरते हैं। यदि उन विवरणों को एकत्रित कर तुलना की तुला पर रखा जाय तो उन सभी विवरणों को बड़ी सरलता से परस्पर विरोधी, बनावटी, असंगत एवं कपोल-कल्पित सिद्ध किया जा सकता है।
विगत तीन सौ वर्षों से शाहजहाँ के ताजमहल का निर्माता होने के विषय में ऐसी काल्पनिक तथा रहस्यपूर्ण कथाओं की झड़ी लगी रही है कि उनके विषय में किसी को तनिक भी सन्देह क्यों नहीं हुआ, यही आश्चर्य है। विश्व के लगभग प्रत्येक भाग से भारतीय इतिहास के ज्ञाता एक के बाद एक, दोहरा रहे हैं कि किस प्रकार ताजमहल का मूल्य ४० लाख से ९ करोड़ कुछ भी हो सकता है। तुर्की, ईरानी, इटालियन अथवा फ्रांसीसी कोई भी इसका शिल्पकार हो सकता है। इसके निर्माण की अवधि १० से २२ वर्ष तक कुछ भी हो सकती है और ताजमहल की उस तथाकथित बेगम को ताजमहल के तहखाने में उसकी मृत्यु के ६ मास से लेकर ९ वर्ष तक के भीतर कभी भी दफनाया गया होगा। ऐसे ये कुछ ही उदाहरण हैं ताजमहल की कथा की हास्यास्पद विसंगति के। इसी प्रकार की अन्य अनेक बातें हैं जिनका भण्डाफोड़ हम अगले पृष्ठों में करेंगे।
हमें यह जानकर आश्चर्य होता है कि किस प्रकार विगत सौ वर्षों तक संसार इस नितान्त भ्रामक बात पर विश्वास करता रहा कि ताजमहल सदृश अद्भुत स्मारक, कम-से-कम भारत में, किसी के यौन-प्रेम की स्मृति में बनाया जा सकता है। रोमांटिक काल्पनिक कथाओं में तो इस प्रकार का भोला विश्वास ठीक माना जा सकता है किन्तु मध्ययुगीन मुसलमानी राजदरबारों के कटु तथ्यों के प्रसंग में इसे कठिनाई से ही युक्तियुक्त माना जा सकता है।
'काल्पनिक कब्र' की कथा पर विश्वास करने से पूर्व दो प्रश्न पूछे जा सकते हैं। प्रथम यह कि मुमताज, जो कि शाहजहाँ की पाँच हजार प्रेयसियों में से एक थी, की मृत्यु से पूर्व शाहजहाँ के उसके प्रति प्रेमानुराग का ऐतिहासिक लेखा-जोखा कहाँ है ? दूसरे यह कि मुमताज की मृत्यु पर उसकी स्मृति में भव्य भवन बनवानेवाले शाहजहाँ ने अपनी प्रेमिका के जीवन-काल में उसके लिए कितने भवन बनवाए?
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