इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
इतिहासविद् शिक्षाशास्त्री तथा सामान्य दर्शक मध्ययुगीन शिल्प पर उस तथाकथित मुस्लिम योगदान के सम्बन्ध में जो उनके मस्तिष्क में सोद्देश्य एवं बड़ी सावधानी से मिथ्या धारणा बैठाई गई है, उसे दूर करने के लिए अब कुछ तत्पर हो गए होंगे। हिन्दू, ईसाई तथा जियोनिस्ट मकबरे के बाहर और भीतर अरबी के अक्षरों को अंकित कर उसे मध्ययुगीन शिल्प में मुसलमानों के योगदान का ढिंढोरा पीटकर उन्हें गलत समझाने का प्रयास भारत तथा समस्त संसार में किया गया है। विश्व- विख्यात ताजमहल, दिल्ली तथा आगरे का लाल किला, आगरा की तथाकथित जामा मस्जिद, दिल्ली की तथाकथित फतेहपुरी मस्जिद तथा अहमदाबाद, जौनपुर, इलाहाबाद, माण्डवगढ़, बिहार, बीजापुर, फतेहपुर सीकरी और औरंगाबाद आदि नगरों के असंख्य स्मारक समस्त संसार को धोखा देने के ऐसे ही उदाहरण हैं। आशा की जाती है कि अनुसंधाता और लेखक आगे आकर मध्ययुगीन प्रत्येक नगर तथा स्मारक पर पृथक्-पृथक् पुस्तकें लिखकर मुस्लिम इतिहास के सम्बन्ध में सर एच. एम. इलियट के शब्दों में 'निर्लज्ज और रोचक धोखे' का पर्दाफाश करेंगे। प्रस्तुत पुस्तक के लेखक को उन्हें सभी आवश्यक निर्देश और स्रोत देने में प्रसन्नता होगी। जनसाधारण कभी यह पूछ सकता है कि १६३०-३१ में मुमताज की मृत्यु से अनेक शती पूर्व ताजमहल यदि विद्यमान था तो क्या रेडियो ऐक्टिव कार्बन १४ के द्वारा उनका परीक्षण कर उसके काल का निर्णय नहीं किया जा सकता? यह विशेषज्ञों के उत्तर देने की बात है, यदि उनके पास ऐसी कोई निर्धान्त पद्धति है तो वे मकबरे तथा ताजमहल के अन्य भागों में प्रयुक्त सामग्री के युग में अन्तर को आसानी से जाँच सकते हैं। किन्तु ऐसा कोई भी परीक्षण तभी उपयुक्त होगा जब उसकी कालावधि के सम्बन्ध में संक्षेप में ज्ञान हो जाए। पाँच-दस वर्ष का अन्तराल विशेष महत्त्वपूर्ण नहीं है, किन्तु जब यह अन्तराल सदियों का हो तो यह निष्कर्ष कि ताजमहल हिन्दू भवन था, जिसे मुस्लिम मकबरा बनाने के लिए हथियाया गया था, इसकी पुष्टि के लिए यह परीक्षण अनुपयुक्त होगा।
हमारी सरकार को चाहिए कि ताजमहल तथा अन्य मध्ययुगीन भवनों से सम्बन्धित दर्शक साहित्य, इतिहास, पुरातत्त्व सम्बन्धी अभिलेख तथा राजकीय प्रमाणपत्रों में वह स्वयं संशोधन करें। और समस्त जन-समाज अपना इतिहास-सम्बन्धी दृष्टिकोण एवं स्वरूप को पूर्णतया बदलने के लिए स्वयं को सन्नड करे।
नई दिल्ली
- पुरुषोत्तम नागेश ओक
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