इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
अब कोई नए दृष्टिकोण से खोज करना आरम्भ करता है तो उसको अनेक कठिनाइयों में एक सबसे बड़ी कठिनाई लोगों की चली-चलाई मान्यता है। उदाहरणार्थ इतिहास के प्रकाण्ड अध्यापक कभी-कभी, पूर्ण ईमानदारी से, इस आधार पर ऐतिहासिक खण्डनों की ओर ध्यान देना अस्वीकार कर देते हैं कि उसके मूल ऐतिहासिक स्रोत उद्धृत नहीं किये हैं। उनके इस प्रकार के रुख में दो गलतियाँ हैं। एक तो उनका यह घमण्ड करना कि वे निर्णायक हैं, जबकि वे इसके योग्य नहीं हैं। उनकी शैक्षिक तथा आधिकारिक स्थिति कुछ भी हो, किन्तु उनको यह समझना चाहिए कि वे सत्य की खोज करने वाले दल के साधारण व्यक्ति हैं तथा खोज में अग्नणी के सहायक हैं। इस दृष्टि से विचार किया जाय तो उनका स्वयं को निर्णायक मानकर गलती निकालने की तत्परता दिखाना नितान्त अनुपयुक्त है, दूसरी कमी यह है कि उनका एक विशिष्ट प्रकार का तथा निर्णय के उद्घोषक का-सा रुख और जिस प्रकार से वे आपत्ति उठाते हैं कि जो स्रोत उद्धृत किया गया है वह मौलिक नहीं गौण है, बड़ा ही विचित्र, उदासीन और अनुत्तरदायित्वपूर्ण है। वे अनुभव करते हैं कि मेरी खोज की उपेक्षा करना उनके लिए न्यायसंगत है। इससे वे अपने शैक्षिक विचारों की वमनेच्छा से मुक्ति पा जाते हैं। ऐसे सभी को हम कहना चाहते हैं कि स्रोत के मौलिक अथवा गौण होने सम्बन्धी आपत्ति तभी संगत है जबकि जो तथ्य उद्घाटित हुए हैं वे स्वीकार न किये गए हों। यहाँ तक कि न्यायालय भी युगों पुराने तथ्यों को ध्यान में रखता है। उसी प्रकार इतिहास के विद्वान् तथा अन्य अध्येताओं को भी उन तथ्यों को ध्यान में रखना ही होता है जोकि निर्विवाद हैं।
उदाहरणार्थ परवर्ती पृष्ठों पर जब हम विंसेंट स्मिथ और इलियट एण्ड डौसन को उद्धृत करेंगे तो केवल इसलिए कि पाठकों की सुविधा हेतु उनके सम्मुख तुरंत परिशोधित, परिपक्व, अनूदित तथा संक्षिप्त साक्ष्य प्रस्तुत कर सकें। जब तक उनके द्वारा उद्धृत तथ्यों पर सन्देह नहीं किया जाता तब तक हम पर यह आरोप कि 'मूल स्रोत उद्धृत नहीं किया गया' यदि सर्वथा शरारतपूर्ण नहीं तो अन्यायपूर्ण तो है ही। ऐसे कितने लोग हैं जो प्रयत्नपूर्वक एकत्रित किये गए मूल स्रोत का मूल्यांकन कर सकते हैं ? और यदि उन मूल स्रोतों को इतने लोग बरतें तो फिर वे भावी पीढ़ी के लिए कितने दिनों तक सुरक्षित रह सकेंगे? और यदि पग-पग पर अनुसन्धाता को कुतर्क के जाल में फँसाकर कि प्रत्येक दृष्टिकोण पर सभी भाषाओं में मौलिक प्रमाणों को प्रस्तुत नहीं किया गया है, तब क्या अनुसन्धान किया जा सकेगा? इस प्रकार तो एक शब्द भी लिखना असम्भव हो जाएगा। क्या आपत्तिकर्ताओं ने स्वयं जो ग्रन्थ लिखे हैं, उस समय ऐसा प्रयत्न किया था?
विद्वान् पाठक जब इस प्रकार की कोई आपत्ति उठाने की सोचता है तो उससे पूर्व हम उससे निवेदन करना चाहेंगे कि वह यह विचार कर ले कि उद्धृत तथ्य तथा शब्दों पर उसका कोई विवाद तो नहीं है। यदि वे तथ्य और शब्द विवादास्पद नहीं हैं तो फिर उन्हें किसी प्रकार के प्राथमिक अथवा माध्यमिक स्रोतरूपी आधार-स्तम्भ की आवश्यकता नहीं है।
ताजमहल के हिन्दू प्रासाद होने की खोज भारत सरकार के पुरातत्त्व विभाग के दृष्टिकोण को बदलने में सहायक होगी। अब तक तो वे यह धारणा बनाए हुए थे कि यदि कोई दो मकबरे और गुम्बद जनसाधारण के निरीक्षण के लिए खोल दिये जाएँ तो यही उनकी पर्याप्त उदारता होगी। किन्तु जब एक बार यह स्वीकार कर लिया गया कि ताजमहल प्रासाद था तब फिर वह साधारण दया पर्याप्त नहीं होगी। आवृत भूगर्भ, बहुत से मीनार, संगमरमर की ऊपरी मंजिल, दुर्ग की ओर जानेवाली सुरंग, सबकी अच्छी तरह सफाई करके उनको जनसाधारण के निरीक्षण के लिए खोलना होगा।
परवर्ती पृष्ठों का आनन्द लेते हुए पाठक इस दूरगामी प्रभाव से सावधान होगा कि हमारी खोज विश्व तथा भारतीय, दोनों इतिहासों पर आधारित है। इस पुस्तक का नितान्त विस्फोटक प्रभाव यह है कि विगत ३०० वर्षों से सारे ताजमहल के सम्बन्ध में गद्य अथवा पद्य में जो कुछ भी रोमांचक और छद्म- ऐतिहासिक लिखा गया है उसे यह पुस्तक एक ही झटके में तहस-नहस कर देती है। शिल्पशास्त्री और इतिहासविद् परवर्ती पृष्ठों को पढ़ने पर पाएंगे कि उन्हें अभी बहुत कुछ सीखना है और जो कुछ उन्होंने अब तक सीखा है उसमें से बहुत कुछ उनको भुलाना होगा। इतिहास-लेखक तथा शिल्पशास्त्री को प्रारंभिक आघात, भय और अविश्वास को भुलाकर अब अपने भारत-अरब शिल्प के रहस्यमय सिद्धान्तरूपी पारम्परिक अन्धविश्वास को उखाड़ फेंकने के लिए तैयार होना चाहिए। और उनको उसकी अपेक्षा मध्ययुगीन ऐतिहासिक स्थलों के विशुद्ध प्राचीन भारतीय शिल्प के दृष्टिकोण को सीखना चाहिए। इतिहास और शिल्पशास्त्र की पुस्तकों में उपयुक्त संशोधन, आज या कल, करना ही होगा।
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- प्राक्कथन
- पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
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- टैवर्नियर का साक्ष्य
- औरंगजेब का पत्र तथा सद्य:सम्पन्न उत्खनन
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- शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
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- शाहजहाँ भावुकता-शून्य था
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- बाबर ताजमहल में रहा था
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- ताजमहल सम्भावित मन्दिर प्रासाद
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- साक्ष्यों का संतुलन-पत्र
- आनुसंधानिक प्रक्रिया
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- कुछ फोटोग्राफ