इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
हेवेल अपनी मान्यता के अनुसार कितना स्पष्ट है कि जब वह दावा करता है कि ताजमहल प्राचीन भारतीय शैली पर बना है तथा शाहजहाँ का कोई भी समकालीन उसकी निर्माणाकृति नहीं तैयार कर सकता था। हेवेल अपने से पूर्व शाहजहाँ के दरबारी इतिहास बादशाहनामे में उल्लिखित इस तथ्य से परिचित नहीं था कि ताजमहल प्राचीन हिन्दू भवन है। यदि हेवेल के समय यह तथ्य प्रकट हो गया होता तो उसको प्रसन्नता होती कि वास्तु-विद्या-सम्बन्धी उसके निष्कर्ष का इतिहास में समर्थन उपलब्ध है तब वह पर्सीब्रौन और फर्गुसन से कहीं अधिक सम्मान भारतीय वास्तुविद्या के अधिकारी विद्वान् के रूप में प्राप्त करता।
प्रसंगवशात् हम अपने पाठकों का ध्यान हेवेल के उस कथन की ओर ले जाना चाहते हैं कि गुम्बद तथा उसके शीर्ष पर अधोमुख कमलयुक्त किरीट विशुद्ध भारतीय प्राचीन नमूने पर है। हिन्दू शिल्प का मूल भारतीय शिल्प-शास्त्र में विद्यमान है।
भारतीय शिल्पशास्त्र के उसके सभी अंगों एवं उपांगों सहित पूर्ण अध्ययन एवं खोज की आवश्यकता है। इस पर शोधकार्य भारतीय पुराविद्याओं में पारंगत* महान् इंजीनियर रावसाहब के वी. वजे, एल. सी. आई. ने किया है। इससे भारतवर्ष की सहनों वर्ष की उस शिल्प-साधना तथा प्रकाण्ड ज्ञान का स्पष्ट आभास पाठकों को मिलेगा जो भारत की गुफा-मन्दिरों, भवनों, घाटों, प्रासादों, नहरों, पुलों तथा दुर्गों में छिपा है तथा एक ऐसा सुन्दरतम भवन जिसे प्राचीन हिन्दू शिल्पशास्त्र ने बनाया है-उसका नाम है ताजमहल। भारतीय शिल्पशास्त्र की वंश-परम्परारूपी वृक्ष का सावधानी से परीक्षण करने के उपरान्त पाठक अनुभव करेंगे कि यह किस प्रकार की तुच्छ कल्पना थी कि वह शाहजहाँ ही था जिसने ताजमहल को हथिया लिया था।
* हम श्री जी. जी. जोशी के, स्व. श्री बजे की जीवनी और कार्य का विवरण देने के लिए आभारी हैं। पाठक श्री जोशी के मराठी साप्ताहिक, पूना से प्रकाशित शिल्प-संसार के २६-५-६५ के अंक में प्रकाशित श्री बजे पर लेख देख सकते हैं। श्री वजे पर एक दूसरा लेख मराठी मासिक 'विश्वकर्मा विकास' के दिवाली अंक में श्री एम. एम. ताम्बट का प्रकाशित हुआ था।
प्राचीन भारतीय अभियान्त्रिकी तथा वास्तुशिल्प में प्रवीण स्व. श्री के. वी. वजे १६ दिसम्बर, १८६९ को एक दीन परिवार में जन्मे थे।
उन्होंने १८९१ में पूना इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की उपाधि प्राप्त की थी।
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- प्राक्कथन
- पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
- शाहजहाँ के बादशाहनामे को स्वीकारोक्ति
- टैवर्नियर का साक्ष्य
- औरंगजेब का पत्र तथा सद्य:सम्पन्न उत्खनन
- पीटर मुण्डी का साक्ष्य
- शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
- एक अन्य भ्रान्त विवरण
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- ताज की रानी
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- ताजमहल सम्भावित मन्दिर प्रासाद
- प्रख्यात मयूर-सिंहासन हिन्दू कलाकृति
- दन्तकथा की असंगतियाँ
- साक्ष्यों का संतुलन-पत्र
- आनुसंधानिक प्रक्रिया
- कुछ स्पष्टीकरण
- कुछ फोटोग्राफ