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ताजमहल मन्दिर भवन है

पुरुषोत्तम नागेश ओक

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15322
आईएसबीएन :9788188388714

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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...


इतने प्रभावी कारणों के विद्यमान होते हुए भी यह प्रचारित किया जाता रहा है कि पूर्ववर्ती वृत्तान्तों में कहीं भी वर्तमानकाल में ताजमहल नाम से ज्ञात प्रासाद का कोई भी उल्लेख उपलब्ध नहीं है, किन्तु सौभाग्य से बाबर जो भारत में मुगल- साम्राज्य का संस्थापक और शाहजहाँ का प्रपितामह था, ताजमहल के सम्बन्ध में स्पष्ट एवं त्रुटिरहित विवरण, यदि हममें उसे समझने की सूझ-बूझ हो तो, छोड़ गया है। इस प्रकार हमारा तीसरा उत्तर यह है कि पूर्ववर्ती इतिहास में ताजमहल एवं अन्य भवनों के सम्बन्ध में, यद्यपि स्पष्ट उल्लेख प्राप्त होते हैं, तदपि कपटपूर्ण पारम्परिक प्रशिक्षण द्वारा बुद्धि के कुण्ठित हो जाने के कारण हम उनके महत्त्व को ग्रहण करने में असमर्थ रहे। ताजमहल के सम्बन्ध में यही बात है।

बादशाह बाबर अपने संस्मरण (भाग २, पृष्ठ १९२) में हमें बताता है*, 'गुरुवार (१० मई, १५२६) को मध्याह्नोत्तर मैंने आगरा में प्रवेश किया और सुलतान यह स्मरणीय है कि बाबर ने दिल्ली और आगरा पर, इब्राहीम लोदी को पानीपत में पराजित करने पर, अधिकार किया था। इस प्रकार उसने उन हिन्दू प्रासादों पर अधिकार कर लिया जिन पर एक अन्य विदेशी विजेता इब्राहीम लोदी अधिकार किए हुए था। इसलिए बाबर आगरा के उस प्रासाद को जिस पर उसने. अधिकार किया था, इब्राहीम का प्रासाद कहता है।
* मैमॉयर्स ऑफ जहिर-एद-दीन मोहम्मद बाबर, हिन्दुस्तान का बादशाह, भाग २, पृष्ठ १९२ और २५१चाहताई तुर्की में स्वयं उसके द्वारा लिखित। जोन लेडन तथा विलियम अर्सकाइन द्वारा अनुवादित तथा सर ल्यूकास किंग द्वारा संशोधित दो भागों में, हम्फ्री मिल्फोर्ड, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से १९२१ में प्रकाशित।

उसका विवरण देते हुए बाबर कहता है कि राजप्रासाद पत्थरों के श्रृंखलाबद्ध स्तम्भों से सज्जित है। यह ताजमहल के स्तम्भ-पीठ के कोनों पर स्थित-चार सुन्दर श्वेत स्तम्भों की ओर स्पष्ट संकेत है। फिर उसने एक भव्य महाकक्ष का विवरण दिया है जो स्पष्टतया वह कक्ष है जिसमें मुमताज़ और शाहजहाँ की बनावटी कः हैं। बाबर आगे कहता है कि इसके मध्य में एक गुम्बद है। हमें विदित है कि केन्द्रीय बनावटी मकबरोंवाले कक्ष में गुम्बद है। यह मध्य में स्थित माना जाता है, क्योंकि यह चारों ओर से दस कमरों से घिरा हुआ है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि बाबर १० मई, १५२६ से अपनी मृत्युपर्यन्त २६ दिसम्बर, १५३० तक उस प्रासाद में रहा था, जो वर्तमान में ताजमहल के नाम से जाना जाता है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि मुमताज़ (ताज की तथाकथित मलिका) की लगभग १६३० में मृत्यु से कम-से-कम १०० वर्ष पूर्व ताजमहल के अस्तित्व का स्पष्ट प्रमाण हमें उपलब्ध है। इस प्रकार के स्पष्ट उल्लेख के बावजूद भी ताजमहल से सम्बन्धित हमारे इतिहास और अन्य विवरण समस्त विश्व में बड़ी विनम्रता से दावा करते फिरते हैं कि दुखी शाहजहाँ ने एक खुले मैदान में अपनी पत्नी की मृत्यु पर उसके लिए ताजमहल नाम का एक मकबरा बनवाया।

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    अनुक्रम

  1. प्राक्कथन
  2. पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
  3. शाहजहाँ के बादशाहनामे को स्वीकारोक्ति
  4. टैवर्नियर का साक्ष्य
  5. औरंगजेब का पत्र तथा सद्य:सम्पन्न उत्खनन
  6. पीटर मुण्डी का साक्ष्य
  7. शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
  8. एक अन्य भ्रान्त विवरण
  9. विश्व ज्ञान-कोश के उदाहरण
  10. बादशाहनामे का विवेचन
  11. ताजमहल की निर्माण-अवधि
  12. ताजमहल की लागत
  13. ताजमहल के आकार-प्रकार का निर्माता कौन?
  14. ताजमहल का निर्माण हिन्दू वास्तुशिल्प के अनुसार
  15. शाहजहाँ भावुकता-शून्य था
  16. शाहजहाँ का शासनकाल न स्वर्णिम न शान्तिमय
  17. बाबर ताजमहल में रहा था
  18. मध्ययुगीन मुस्लिम इतिहास का असत्य
  19. ताज की रानी
  20. प्राचीन हिन्दू ताजप्रासाद यथावत् विद्यमान
  21. ताजमहल के आयाम प्रासादिक हैं
  22. उत्कीर्ण शिला-लेख
  23. ताजमहल सम्भावित मन्दिर प्रासाद
  24. प्रख्यात मयूर-सिंहासन हिन्दू कलाकृति
  25. दन्तकथा की असंगतियाँ
  26. साक्ष्यों का संतुलन-पत्र
  27. आनुसंधानिक प्रक्रिया
  28. कुछ स्पष्टीकरण
  29. कुछ फोटोग्राफ

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