लोगों की राय

इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है

ताजमहल मन्दिर भवन है

पुरुषोत्तम नागेश ओक

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15322
आईएसबीएन :9788188388714

Like this Hindi book 0

पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...

बाबर ताजमहल में रहा था


इतिहास के अध्यापक कभी-कभी बड़े भोलेपन से यह पूछ बैठते हैं कि यदि ताजमहल शाहजहाँ से शताब्दियों पूर्व से विद्यमान था तो यह किस प्रकार हुआ कि इसके पूर्व-प्रसंग उपलब्ध नहीं हैं? इस प्रश्न के तीन उत्तर हैं। प्रथमतः उस समय राजप्रासाद होने के कारण स्मारक की भौति जन-सामान्य के लिए खुला नहीं था जैसा कि वह अब है, और वह सतर्कता से आरक्षित था। वह केवल प्रतिष्ठित व्यक्तियों के लिए आमन्त्रण का ही अधिगम्य था, या फिर विजेता के लिए। इसलिए उन दिनों के विज्ञापन एवं संचार-व्यवस्था के युग के समान कोई उसके विषय में प्रसंगों की प्राप्ति की अपेक्षा नहीं कर सकता।

दूसरा उत्तर यह है कि प्राचीन और मध्ययुगीन भारत में विस्मय-विमुग्ध कर देनेवाले आकर्षक भवन, प्रासाद और मन्दिर इतनी अधिक संख्या में थे कि मात्र वर्णन के आधार पर उन्हें एक-दूसरे से वरीयता नहीं दी जा सकती थी। वह सब जो हम तक पहुँचा अथवा किसी यात्री द्वारा उल्लेख किया गया वह यही है कि "वे अवर्णनीय रूप से सुन्दर हैं" या "आश्चर्यजनक, आर्कषक, भव्य हैं।" उदाहरणार्थ, ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत भारत में लगभग ५६८ देशी शासक थे। उनमें से बहुतों के पास बहुत से सुन्दर और सुसज्जित प्रासाद थे। क्या उनमें से किसी एक को दूसरे से वरीयता प्राप्त है ? क्या वे, जिन्होंने उनको देखा है, केवल यही नहीं कह पाए कि वे अद्वितीय थे? उसी प्रकार मध्ययुगीन इतिहास भारतीय भवनों एवं प्रासादों की प्रशंसा से भरे पड़े हैं, परन्तु समस्या यह है कि किस प्रकार इतना समय बीत जाने पर, उनमें विभिन्नता प्रस्थापित की जाए। यह भी स्मरण रखने की बात है कि प्रत्येक ऐतिहासिक उथल-पुथल के साथ-साथ उनकी अधिकृति और स्थानों के नाम तथा सड़कों के नाम बदलते रहे। अपने मध्ययुगीन नाम और स्थान के अनुसार जिस भवन को हम आज देखते हैं, उनको पहचानने में भी कठिनाई होती है। मुस्लिम इतिहासों में एक स्पष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया गया है कि मुहम्मद गज़नी कहता है, 'मथुरा का भव्य कृष्ण मन्दिर तो २०० वर्षों में भी पूर्ण नहीं हो पाया होगा और विदिशा (वर्तमान भिलसा) का मन्दिर ३०० वर्ष में पूरा हो पाया होगा।' वे जो कहते हैं कि हमें शाहजहाँ से पूर्व ताजमहल के अस्तित्व का उल्लेख नहीं मिलता उनसे हम प्रतिप्रश्न करते हैं कि मुस्लिम आक्रामकों से पूर्व मथुरा और विदिशा के उन भव्य मन्दिरों का उल्लेख क्यों नहीं मिलता? इसका उत्तर सरल है: या तो पहले के विवरण उपलब्ध नहीं हैं या फिर किसी विवरण-विशेष को इसलिए सुरक्षित रखने की चिन्ता नहीं की गई, क्योंकि भारत में ऐसे मन्दिरों की भरमार थी। यहाँ तक कि केवल एक ही नगर में, शक्ति एवं समृद्धिशाली भारतीय शासक के पास कम-से- कम एक दर्जन प्रासाद होते थे जो सुन्दरता और लागत में एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धी होते थे। तब केवल विभिन्न विवरणों के आधार पर एक का दूसरे से भिन्नत्व किस प्रकार प्रतिष्ठित किया जा सकता था? कोई उल्लेख, यदि होता तो केवल इतना कि अमुक भवन अमुक राजा का है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्राक्कथन
  2. पूर्ववृत्त के पुनर्परीक्षण की आवश्यकता
  3. शाहजहाँ के बादशाहनामे को स्वीकारोक्ति
  4. टैवर्नियर का साक्ष्य
  5. औरंगजेब का पत्र तथा सद्य:सम्पन्न उत्खनन
  6. पीटर मुण्डी का साक्ष्य
  7. शाहजहाँ-सम्बन्धी गल्पों का ताजा उदाहरण
  8. एक अन्य भ्रान्त विवरण
  9. विश्व ज्ञान-कोश के उदाहरण
  10. बादशाहनामे का विवेचन
  11. ताजमहल की निर्माण-अवधि
  12. ताजमहल की लागत
  13. ताजमहल के आकार-प्रकार का निर्माता कौन?
  14. ताजमहल का निर्माण हिन्दू वास्तुशिल्प के अनुसार
  15. शाहजहाँ भावुकता-शून्य था
  16. शाहजहाँ का शासनकाल न स्वर्णिम न शान्तिमय
  17. बाबर ताजमहल में रहा था
  18. मध्ययुगीन मुस्लिम इतिहास का असत्य
  19. ताज की रानी
  20. प्राचीन हिन्दू ताजप्रासाद यथावत् विद्यमान
  21. ताजमहल के आयाम प्रासादिक हैं
  22. उत्कीर्ण शिला-लेख
  23. ताजमहल सम्भावित मन्दिर प्रासाद
  24. प्रख्यात मयूर-सिंहासन हिन्दू कलाकृति
  25. दन्तकथा की असंगतियाँ
  26. साक्ष्यों का संतुलन-पत्र
  27. आनुसंधानिक प्रक्रिया
  28. कुछ स्पष्टीकरण
  29. कुछ फोटोग्राफ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book