इतिहास और राजनीति >> ताजमहल मन्दिर भवन है ताजमहल मन्दिर भवन हैपुरुषोत्तम नागेश ओक
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पी एन ओक की शोघपूर्ण रचना जिसने इतिहास-जगत में तहलका मचा दिया...
इन युद्धों के अतिरिक्त शाहजहाँ के अधीनस्थ अनेक क्षेत्र अक्सर अकाल- पीड़ित रहे। शान्ति और समृद्धि से दूर शाहजहाँ का राज्य भारतीय इतिहास का भयावह काल था, इससे बिना किसी आधार, प्रमाण अथवा साक्ष्य के दिल्ली में तथाकथित जामा मस्जिद और लाल किला और आगरा में ताजमहल के निर्माण का श्रेय शाहजहाँ को दिया जाना मिथ्या सिद्ध होता है।
तैमूरलंग ने अपने संस्मरणों में पुरानी दिल्ली और जामा मस्जिद दोनों का उल्लेख किया है। तैमूरलंग सन् १३९८ के क्रिसमस के दिनों में पुरानी दिल्ली में था, इसका अभिप्राय हुआ शाहजहाँ के शासनारूढ़ होने से २३० वर्ष पूर्व। तैमूरलंग लिखता है* - "रविवार के दिन मुझे यह बताया गया कि एक बड़ी संख्या में धर्मद्रोही हिन्दू पुरानी दिल्ली की जामा मस्जिद में, शस्त्रास्त्रों से सज्जित होकर एकत्रित हुए और अपनी सुरक्षा के लिए तैयारी कर रहे थे।" यह इस बात को सीधा झूठ सिद्ध करता है कि शाहजहाँ ने जामा मस्जिद बनवाई और पुरानी दिल्ली की नींव भी रखी।
१. मलफजात-ए-तैमूरी या तुजकए-तैमूरी, भाग ३, पृ० ४४६-४४७ का अनुवाद।
तैमूरलंग पुरानी दिल्ली के दुर्ग का विशेष रूप से उल्लेख करता है। वह कहता है*-"मेरा मस्तिष्क जिसमें अब दिल्ली-निवासियों के विध्वंस की बात नहीं थी, मैंने नगरों के परिभ्रमण के लिए घुड़सवारी की। सीरी गोलाकार नगर है, भवन उत्तुंग हैं, वे ईंट तथा पत्थरों से बने किलों से घिरे हुए और सुदृढ़ हैं। पुरानी दिल्ली में भी वैसा ही एक सुदृढ़ दुर्ग है किन्तु वह सीरी की अपेक्षा बड़ा है, सीरी के दुर्ग से दिल्ली के दुर्ग तक, जो कि पर्याप्त दूर है, पत्थर और सीमेंट से बनी एक सुदृढ़ दीवार है। जहाँपनाह कहा जानेवाला भागनगर की आबादी के मध्य में स्थित है। तीनों नगरों की चारदीवारी में ३० प्रवेश-द्वार हैं, सात दक्षिण में पूर्व की ओर तथा ६ उत्तर में पश्चिम की ओर। सीरी के सात प्रवेश-द्वार हैं, चार बाहर की ओर, ३ भीतर को जहाँपनाह की ओर। पुरानी दिल्ली की चारदीवारी में दस प्रवेश-द्वार हैं, उनमें से कुछ अन्दर की ओर और कुछ बाहर की ओर खुलते हैं "नगर के मुसलमान निवासियों की सुरक्षा के लिए मैंने एक अधिकारी की नियुक्ति की"
* मलफजात-ए-तैमूरी या तुजकए-तैमूरी, भाग ३, पृ०४४७-४४८
इस प्रकार शाहजहाँ से २३० वर्ष पूर्व ही हमारे पास तैमूरलंग की पुरानी दिल्ली, उसका दुर्ग, नगर के द्वार तथा मुस्लिम बस्तियां, विशेषतया, वह क्षेत्र जो अब जामा मस्जिद है, का उल्लेख विद्यमान है। यह आश्चर्य की बात है कि इस प्रकार के स्पष्ट विवरण के बावजूद भारतीय इतिहास की पुस्तकें दृढ़ता से दावा करती हैं कि उपरिवर्णित सभी भवन तथा पुरानी दिल्ली स्वयं शाहजहाँ ने बनवाए थे।
सर एच. एम. इलियट का मध्ययुगीन मुसलमानी इतिहासों के प्रति यह कथन कि “स्वार्थयुक्त और जान-बूझकर किया गया धोखा है" सत्य सिद्ध होता है।
जब पुरानी दिल्ली की नींव रखने, और पुरानी दिल्ली के (लाल) किले और जामा मस्जिद को बनवाने का झूठा श्रेय शाहजहाँ को दिया जाता है, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि आगरा के ताजमहल का श्रेय भी, जिसका कि वह भागी नहीं है, उसे ही दिया जाता रहा है।
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